07 April 2025
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त्रिफला: आयुर्वेद की अमृततुल्य औषधि
एक साधारण मिश्रण, असाधारण लाभ
परिचय
भारतीय आयुर्वेद में हजारों वर्षों से उपयोग में लाई जाने वाली एक अत्यंत चमत्कारी औषधि है — त्रिफला। यह नाम स्वयं में तीन फलों के संयोजन का प्रतीक है – हरड़ (हरितकी), बहेड़ा (विभीतकी) और आंवला (आमलकी)। इन तीनों औषधीय फलों का यह संतुलित मिश्रण शरीर, मन और आत्मा – तीनों के स्वास्थ्य के लिए अत्यंत प्रभावकारी माना गया है।
त्रिफला केवल एक औषधि नहीं, बल्कि एक पूर्ण रसायन कल्प है, जो शरीर की शुद्धि, पुनर्निर्माण और संतुलन के लिए कार्य करता है। आइये इसे गहराई से समझें।
त्रिफला का चमत्कारी प्रभाव – वर्ष दर वर्ष
आयुर्वेदिक ग्रंथों और अनुभवजन्य अनुसंधानों के अनुसार, यदि त्रिफला का सेवन नियमित रूप से 12 वर्षों तक किया जाए, तो इसके प्रभाव आश्चर्यजनक होते हैं:
1 वर्ष – शरीर की सुस्ती दूर होती है, ऊर्जा का संचार होता है।
2 वर्ष – पुराने व जटिल रोगों का नाश होता है।
3 वर्ष – नेत्रों की ज्योति में आश्चर्यजनक वृद्धि होती है।
4 वर्ष – चेहरा कान्तिमान व सौंदर्यपूर्ण हो जाता है।
5 वर्ष – बुद्धि में अत्यंत तीव्रता और स्पष्टता आती है।
6 वर्ष – शरीर में बल, पराक्रम और सहनशक्ति का विकास होता है।
7 वर्ष – सफेद बाल काले होने लगते हैं, युवावस्था लौटने लगती है।
8 वर्ष – सम्पूर्ण शरीर में युवाशक्ति का अनुभव होता है।
10 वर्ष – सरस्वती स्वरूप वाणी की सिद्धि प्राप्त होती है, ज्ञान का प्रकाश फैलता है।
11-12 वर्ष – ऐसा कहा जाता है कि व्यक्ति की वाणी सत्य हो जाती है।
उम्र के अनुसार त्रिफला सेवन विधि
त्रिफला सेवन में मात्रा का निर्धारण आयु के अनुसार किया जाता है:
•मात्रा निर्धारण: उम्र × 0.12 ग्राम = प्रति दिन सेवन की मात्रा
उदाहरण: यदि कोई व्यक्ति 50 वर्ष का है, तो:
50 × 0.12 = 6 ग्राम प्रति दिन
इस प्रकार, 12 वर्ष तक त्रिफला सेवन को पूर्ण त्रिफला कल्प कहा जाता है।
त्रिफला के औषधीय प्रयोग: शरीर का समग्र समाधान
कब्ज निवारण
5 ग्राम त्रिफला चूर्ण रात को गर्म दूध या पानी के साथ लें – कब्ज दूर करता है।
त्रिफला व ईसबगोल की भूसी मिलाकर शाम को लें – पेट साफ और हल्का रहता है।
नेत्रज्योति में वृद्धि
त्रिफला को पानी में भिगोकर सुबह-शाम उसका जल पिएं और आंखें धोएं।
त्रिफला + गाय का घी + शहद = नेत्ररोगों के लिए अमोघ औषधि।
त्वचा व चर्मरोग
त्रिफला + नीम + हल्दी + चिरायता का काढ़ा = दाद, खाज, खुजली में लाभदायक।
त्रिफला की राख शहद में मिलाकर लगाने से त्वचा के चकत्ते मिटते हैं।
पाचन और भूख में वृद्धि
त्रिफला चूर्ण से पाचन शक्ति में सुधार होता है, लाल रक्त कोशिकाएं बढ़ती हैं।
भूख खुलकर लगती है, पोषण बेहतर होता है।
मोटापा व चरबी घटाना
त्रिफला का गर्म काढ़ा + शहद = मोटापा और चरबी कम करता है।
लगातार प्रयोग से शरीर हल्का और लचीला बनता है।
मधुमेह और मूत्र विकार
त्रिफला + शहद = मधुमेह और प्रमेह में अत्यंत उपयोगी।
मूत्र संबंधी जलन, रुकावट व संक्रमण में राहत मिलती है।
मुँह व दाँत की समस्याएं
त्रिफला पानी में भिगोकर गरारे करें या मंजन करें – छाले, मुँह की दुर्गंध, अरुचि दूर होती है।
दाँत मजबूत व चमकदार बनते हैं।
टॉन्सिल्स व गले के रोग
त्रिफला के पानी से बार-बार गरारे करने से टॉन्सिल्स की सूजन और दर्द दूर होता है।
स्मृति और मानसिक शक्ति
त्रिफला, तिल का तेल और शहद मिलाकर सेवन करें – स्मृति व मेधा शक्ति बढ़ती है।
मानसिक थकान दूर होती है, एकाग्रता में सुधार होता है।
त्रिफला रसायन कल्प
त्रिफला + शहद + घृतकुमारी = सप्त धातु पोषक, वृद्धावस्था निवारक।
नियमित सेवन से दृष्टिदोष, मोतियाबिंद, रतौंधी जैसे नेत्र रोगों से रक्षा मिलती है।
बाल काले, मजबूत व चमकदार होते हैं।
शरीर का संपूर्ण शुद्धिकरण होता है।
विशेष सूत्र – त्रिफला का सेवन कैसे करें?
सोने से पहले – कब्ज व पेट की समस्या के लिए गर्म दूध या पानी के साथ।
भिगोकर जल पीना – नेत्रों, त्वचा व मूत्ररोगों में लाभ।
शहद या घी के साथ – नेत्र, बुद्धि, त्वचा और स्मृति के लिए।
काढ़ा बनाकर सेवन – चर्मरोग, मोटापा व सर्दी-खाँसी में।
निष्कर्ष
त्रिफला केवल एक औषधि नहीं, बल्कि जीवनशैली का हिस्सा बनने योग्य रसायन कल्प है। इसके नियमित व संयमित सेवन से न केवल रोगों से मुक्ति मिलती है, बल्कि शरीर, मन और आत्मा – तीनों का उत्थान होता है।
यदि आप दीर्घायु, तेजस्विता, नेत्रज्योति, स्मृति, और संपूर्ण स्वास्थ्य की इच्छा रखते हैं, तो त्रिफला को अपनी दिनचर्या में स्थान देना आपके लिए एक दिव्य उपहार सिद्ध हो सकता है।
“त्रिफला से आरोग्य, आरोग्य से आराधना – यही आयुर्वेद की संकल्पना है।”
स्वस्थ रहें, आयुर्वेद अपनाएं।
जय आयुर्वेद!
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