हनुमान चालीसा की एक पंक्ति में छिपा विज्ञान और वेद-पुराणों का ज्ञान

23 June 2025

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हनुमान चालीसा की एक पंक्ति में छिपा विज्ञान और वेद-पुराणों का ज्ञान

हनुमान चालीसा, तुलसीदास जी द्वारा रचित एक भक्ति-काव्य है, जो न केवल हनुमान जी की महिमा का गुणगान करता है, बल्कि उसमें छुपे गूढ़ अर्थ और वैज्ञानिक संदर्भ भी होते हैं। इस लेख में हम विशेष रूप से उस पंक्ति का विश्लेषण करेंगे जिसमें कहा गया है —
“युग सहस्र योजन पर भानु, लील्यो ताहि मधुर फल जानु”।

यह पंक्ति न केवल भक्ति से भरी है, बल्कि इसमें प्राचीन भारतीय गणित और खगोल विज्ञान का भी अद्भुत प्रमाण है। आइए इसे विस्तार से समझते हैं।

पंक्ति का शाब्दिक और वैज्ञानिक अर्थ

“युग सहस्र योजन पर भानु” का अर्थ है कि हनुमान जी ने ‘युग × सहस्र × योजन’ की दूरी पर स्थित सूर्य को एक फल समझकर निगल लिया। यहाँ ‘भानु’ से सूर्य की ओर संकेत है।

❇️गणना का वैज्ञानिक पक्ष
युग: प्राचीन भारतीय माप के अनुसार, एक युग को 12,000 वर्ष माना गया है।
सहस्र: इसका अर्थ होता है 1,000
योजन: यह एक प्राचीन दूरी मापक है, जिसे सामान्यतः 8 मील माना जाता है।

इस प्रकार, कुल दूरी होगी

12,000 (युग) × 1,000 (सहस्र) × 8 (योजन) = 9,60,00,000 मील।

इसे किलोमीटर में बदलने पर (1 मील = 1.6 किमी),
9,60,00,000 × 1.6 = 15,36,00,000 किलोमीटर यानी लगभग 15.36 करोड़ किलोमीटर।

NASA द्वारा वैज्ञानिक दूरी

NASA के अनुसार पृथ्वी और सूर्य के बीच की औसत दूरी लगभग 14.96 करोड़ किलोमीटर (149.6 मिलियन किमी) है। तुलसीदास जी की गणना के साथ इसका अंतर मात्र 2-3% है, जो अत्यंत सटीक माना जा सकता है।

वेद-पुराणों में सूर्य की दूरी के संदर्भ

वेदों और पुराणों में सूर्य की दूरी का उल्लेख कई स्थानों पर मिलता है, जो तुलसीदास की गणना को और पुष्ट करता है।
सूर्य सिद्धांत (Surya Siddhanta) में लिखा है कि सूर्य की दूरी पृथ्वी से लगभग 15 लाख योजन है। यदि योजन को 8 मील (12.8 किलोमीटर) मानें, तो यह दूरी लगभग 1.92 करोड़ किलोमीटर बनती है।
विष्णु पुराण में सूर्य की दूरी 17 लाख योजन बताई गई है, जो तुलसीदास की दूरी के करीब ही है।
ऋग्वेद में सूर्य की किरणों को ब्रह्माण्ड की अनंत गहराइयों तक पहुँचने वाला कहा गया है, जो प्राचीन समय में सौर ऊर्जा के खगोल विज्ञान का सूक्ष्म ज्ञान दर्शाता है।

तुलसीदास जी: एक भक्तकवि और विद्वान

तुलसीदास जी केवल एक महान भक्तकवि ही नहीं थे, बल्कि वे वेदों और पुराणों के गहन अध्ययनकर्ता भी थे। उन्होंने हनुमान चालीसा में ऐसे तत्वों को काव्यात्मक रूप दिया जो विज्ञान और भक्ति का संगम हैं।

उनकी यह पंक्ति दर्शाती है कि वेद-पुराणों से प्राप्त वैज्ञानिक और गणितीय ज्ञान को वे सरल एवं प्रभावी भाषा में जनता तक पहुँचाना चाहते थे।

आधुनिक विज्ञान और प्राचीन ज्ञान की संगति

जब तुलसीदास जी ने सूर्य की दूरी के लिए ‘युग सहस्र योजन’ का प्रयोग किया, तब आधुनिक खगोल विज्ञान और अंतरिक्ष अन्वेषण का कोई अस्तित्व नहीं था। फिर भी यह गणना इतनी सटीक है कि आज के आधुनिक उपकरणों द्वारा नापा गया अंतर अत्यंत न्यूनतम है।

यह साबित करता है कि प्राचीन भारतीय ज्ञान प्रणाली न केवल आध्यात्मिक थी, बल्कि उसमें खगोल विज्ञान, गणित और भौतिक विज्ञान का समृद्ध भंडार था।

निष्कर्ष: भक्ति में समाहित विज्ञान का चमत्कार

हनुमान चालीसा की यह पंक्ति “युग सहस्र योजन पर भानु, लील्यो ताहि मधुर फल जानु” केवल भक्ति का परिचायक नहीं, बल्कि विज्ञान का चमत्कार भी है। तुलसीदास जी ने भक्तिपरक शब्दों के माध्यम से सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी का इतना सटीक अनुमान प्रस्तुत किया जो आज के वैज्ञानिक माप से मेल खाता है।

यह लेख हमें यह याद दिलाता है कि भारतीय वेद-पुराणों में छिपा ज्ञान कितना विशाल और गूढ़ है। जब हम भक्ति के साथ इस ज्ञान को समझते हैं, तो यह हमारे लिए एक प्रेरणा और गौरव का विषय बन जाता है।
जय श्री राम
जय हनुमान जी की

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