दीपावली पर दीप और पटाखे क्यों?






दीपावली: दीपक व पटाखे क्यों जलाए जाएँ — why we burst crackers on Diwali

why we burst crackers on Diwali

संक्षेप: यह लेख आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से बताता है कि दीपावली पर हम दीपक क्यों जलाते हैं और पटाखे क्यों फोड़ते हैं — विशेषकर पितृ-स्मरण, भगवान श्रीराम की अयोध्या वापसी, तथा कार्तिक मास की परंपराओं के संदर्भ में।

why we burst crackers on Diwali — परिचय

दीपावली केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि भारत की आत्मा का उत्सव है—जहाँ प्रकाश, धर्म, श्रद्धा, पितृ-स्मरण और आध्यात्मिक जागरण का संगम होता है। दीपक जलाने और आकाश में प्रकाश फैलाने की परंपरा के पीछे गहन धार्मिक और सांस्कृतिक कारण निहित हैं। इस लेख में हम उन परंपराओं और कथाओं को विस्तृत रूप से प्रस्तुत कर रहे हैं।

why we burst crackers on Diwali — पितृ-स्मरण और उल्का-दान

हिंदू धर्म में श्राद्ध पक्ष के बाद आरम्भ होने वाला कार्तिक मास अत्यंत पवित्र माना गया है। श्राद्ध के दिनों में पितरों का आह्वान कर उनकी सेवा की जाती है; जब श्राद्ध समाप्त होते हैं तो यह माना जाता है कि पितर अपने लोकों की ओर चले जाते हैं।

उसी समय से जुड़ी परंपरा है—उल्का-दान—जिसमें आकाश या स्थानों पर प्रकाश फैला कर पितरों के मार्ग को प्रकाशित किया जाता था, ताकि वे सहजता से अपने लोकों तक पहुँच सकें। आधुनिक रूप में यह परंपरा घर-घर दीपक जलाने, पथों और घाटों को रोशन करने तथा आकाशीय प्रकाश (आतिशबाज़ी) के रूप में प्रकट हुई है।

इस तरह के धार्मिक विधान सदियों से लोकपरंपरा का हिस्सा रहे हैं और आज भी परिवार और समाज इन्हें श्रद्धा के साथ निभाते हैं।

भगवान श्रीराम की अयोध्या वापसी — दीपावली का प्रमुख भाव

दीपावली के सबसे प्रसिद्ध प्रसंगों में से एक है—भगवान श्रीराम का अयोध्या लौटना। चौदह वर्षों के वनवास और रावण पर विजय के पश्चात श्रीराम, सीता और लक्ष्मण के अयोध्या आगमन पर नगरवासियों ने सम्पूर्ण नगरी को दीपों से सजाया था।

जब अयोध्या की प्रत्येक गली-हर नुक्कड़ दीपों से जगमगाती थी, तब वह दृश्य धर्म की विजय, अज्ञान पर ज्ञान की जीत और जीवन में पुनः प्रकाश आने का प्रतीक बन गया। आज जब हम दीप जलाते हैं और आकाश में प्रकाश फैलाते हैं, तो वह उसी आनंद और उल्लास की स्मृति को जिंदा रखने का तरीका है।

माँ लक्ष्मी का स्वागत और कार्तिक मास का महत्त्व

कार्तिक अमावस्या की रात्रि को देवी लक्ष्मी के आगमन का समय माना गया है। परम्परा के अनुसार वह उन घरों में विराजमान होती हैं जिनमें प्रकाश, स्वच्छता और श्रद्धा होती है। अतः घरों की सफाई, दीप-आलेख और पूजा-विधि इस उद्देश्य से की जाती है कि देवी का आशीर्वाद प्राप्त हो।

कार्तिक मास में की जाने वाली साधनाएँ—दीपदान, जप, दान और स्नान—को श्रेष्ठ कर्म माना गया है और इसे आत्मिक उन्नयन एवं पारिवारिक समृद्धि का मार्ग बताया गया है।

शुभ ध्वनि, मंगल-प्रचार और आतिशबाज़ी का सांस्कृतिक संदर्भ

प्राचीन काल में शंख, नगाड़े और वाद्य यंत्रों की ध्वनि को मंगलकारी माना गया। ध्वनि द्वारा नकारात्मक ऊर्जाएँ हटाने और वातावरण को पवित्र करने की परंपरा रही है। बाद में जब आतिशबाज़ी का प्रयोग आया, तो उसमें भी इसी मंगलभाव और आकाशीय प्रकाश का प्रतीक जोड़ दिया गया।

इस प्रकार आतिशबाज़ी, दीपदान और अलौकिक रोशनी को लोक-उत्सव का अभिन्न अंग माना गया और यह रीति-रिवाज आज तक संरक्षित है।

दीप का दार्शनिक अर्थ

दीप का अर्थ केवल बाहरी अंधकार को मिटाना नहीं है—यह आन्तरिक अज्ञान को दूर करने का प्रतीक भी है। जब हम दीप जलाते हैं, तो यह एक आध्यात्मिक संदेश देता है: “मैं प्रकाश बनकर दूसरों के मार्ग को उज्जवल करूँ।”

सच्ची दीपावली तब होती है जब हमारा आत्मिक दीप जले—जहाँ लोभ, क्रोध, ईर्ष्या का अंधकार घटे और प्रेम, सेवा, सत्य का प्रकाश बढ़े।

निष्कर्ष

दीपावली पर दीपक जलाना और पटाखे फोड़ना अनेक सांस्कृतिक और धार्मिक भावों का संयोजन है—पितृ-स्मरण (उल्का-दान), भगवान श्रीराम की अयोध्या वापसी का उत्सव, माता लक्ष्मी का स्वागत और सम्पूर्ण समाज में प्रकाश एवं शुभता का संचार।

यह परंपरा हमें याद दिलाती है कि असली प्रकाश भीतर से आता है—जब हमारा अंतःकरण प्रकाशमान होगा तभी बाहर का अंधकार चिरकाल के लिए घटेगा।