मनाचे श्लोक बैन: क्यों निशाने पर हिंदू संत? (Why Hindu Saints Targeted)
हाल ही में मराठी फिल्म ‘मनाचे श्लोक’ पर सेंसर बोर्ड ने रोक लगा दी है। वजह बताई गई कि इस नाम का संबंध महान हिंदू संत समर्थ रामदास स्वामी से है। वे छत्रपति शिवाजी महाराज के गुरु थे। उन्होंने हिंदू समाज में आत्मबल, चरित्र और राष्ट्रभक्ति का दीप जलाया। यह निर्णय एक गहरी चिंता को जन्म देता है। आखिर why hindu saints targeted बार-बार?
संतों की विरासत पर प्रहार क्यों? (Why Hindu Saints Targeted Again and Again)
भारत भूमि ने अनगिनत संतों को जन्म दिया। संत कबीर, तुलसीदास, ज्ञानेश्वर, समर्थ रामदास स्वामी, संत श्री आशारामजी बापू जैसे संतों ने समाज में सदाचार, संयम, योग, ध्यान और आत्मज्ञान का संदेश दिया। लेकिन आज फिल्म और मीडिया जगत में इन्हीं संतों की छवि को तोड़-मरोड़कर दिखाया जा रहा है।
- संत श्री आशारामजी बापू पर बिना प्रमाण मीडिया ट्रायल चलाकर उन्हें बदनाम करने का प्रयास किया गया।
- कई वेब सीरीज़ में हिंदू देवताओं का मज़ाक उड़ाया जाता है।
- दूसरे धर्मों पर बात करते ही “धर्मभावना आहत” का मुद्दा उठाया जाता है।
इन घटनाओं से स्पष्ट है कि why hindu saints targeted का प्रश्न किसी षड्यंत्र से कम नहीं है।
मनाचे श्लोक – गौरव का प्रतीक
‘मनाचे श्लोक’ समर्थ रामदास स्वामी की अमर रचना है। उन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज जैसे पराक्रमी राजा को धर्म, नीति और आत्मबल का मार्ग दिखाया। ऐसे पवित्र नाम से किसी फिल्म को रोकना सिर्फ धार्मिक भावना का विषय नहीं है। यह हिंदू संत परंपरा को कमजोर करने की साजिश भी हो सकता है।
सनातन संस्कृति की आवाज़ दबाने की कोशिश
आज के दौर में जब युवा वर्ग पश्चिमी संस्कृति से प्रभावित हो रहा है, तब संतों की शिक्षाएँ जीवन में संतुलन और संस्कार लाती हैं। अफसोस की बात है कि इन्हीं शिक्षाओं को “पुरातन” या “कट्टरता” के नाम पर दबाया जा रहा है। मीडिया और कुछ तथाकथित ‘बुद्धिजीवी’ लगातार हिंदू संतों और सनातन संस्कृति को निशाना बना रहे हैं।
विचारणीय प्रश्न
- क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सिर्फ हिंदू आस्थाओं का मज़ाक उड़ाने के लिए है?
- क्या संतों के आदर्शों को दिखाना अब “आपत्तिजनक” बन गया है?
- क्या भारत का बहुसंख्यक समाज अपनी ही परंपराओं से डरने लगा है?
निष्कर्ष: सनातन संस्कृति की रक्षा क्यों आवश्यक है
फिल्म ‘मनाचे श्लोक’ पर लगी रोक केवल एक मूवी का मामला नहीं है। यह उस प्रवृत्ति का प्रतीक है जिसमें हिंदू संतों, परंपराओं और सनातन धर्म को बार-बार निशाना बनाया जाता है।
समय आ गया है कि समाज इस मानसिक गुलामी से बाहर निकले। हमें उन संतों की आवाज़ सुननी चाहिए जिन्होंने कहा —
“धर्म वही जो समाज को जोड़ता है, और अधर्म वह जो संस्कृति को तोड़ता है।”
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