व्यसन का शौक, कुत्ते की मौत।

व्यसन का शौक, कुत्ते की मौत।

26 June 2022

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नशा एक खतरनाक दुर्व्यसन है । यह दुर्व्यसन जब किसी के जीवन में आ जाता है , तो उसे खोखला कर देता है और उसे विनाश की कगार पर लाकर खड़ा कर देता है ।

व्यसन व्यक्ति की प्रगति के सभी मार्गों को अवरुद्ध कर देता है । प्रारंभ में मनुष्य उसे आनंद की वस्तु समझकर अपनाता है , उसे मनोरंजन का साधन मानता है तथा उसे उच्चस्तर एवं गौरव का प्रतीक मानकर गले लगाता है परन्तु बाद में सिवाय पश्चाताप के उसके पास कुछ भी शेष नहीं रहता ।

संत श्री आशारामजी आश्रमों द्वारा युवा सेवा संघ के माध्यम से समय- समय पर व्यसन मुक्ति अभियान चलाए जाते है ।

शराब शैतान की खोज है,शराब का सुख मृगतृष्णा के सुख के समान है,शराब पीना मानो मौत को बुलाना,ड्रग्स मानो मौत को निमंत्रण देना,व्यसनी स्वयं को करें दुःखी साथ मे परिवार को भी दुःख देता है।

ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के कैन्सर रिसर्च संस्था ने यह सिद्ध किया है की तम्बाकू के सेवन से मनुष्य अपने जीवन के 22 वर्ष नष्ट कर देता है,अर्थात वह 22 वर्ष पहले ही मर जाता है ।

तम्बाकू खाने से नष्ट होनेवाले यही 22 वर्ष यदि सत्संग तथा सत्कर्मों में लगायें जाय तो मानव में से महामानव का प्रागट्य हो सकता है ।

सभी तरह के व्यसन शरीर को हानि पहुँचाते हैं , और इससे भी बढ़कर तो ये सर्वोत्तम एवं दुर्लभ मनुष्य जन्म को व्यर्थ में ही नष्ट कर डालते है !

मादक पदार्थों में दारू सबसे अधिक भयानक है। इससे लाखों घर बर्बाद हुए हैं। भारत भर में दारूबन्दी के लिए विस्तृत स्तर पर प्रयत्न हो रहे हैं। अमेरिका और रूस जैसे देशों में भी दारू का इस्तेमाल कम होता जा रहा है।

दारू में एक प्रकार का विष होता है। उसमें कुछ अनुपात में अल्कोहल होता है। जिस कक्षा का दारू होता है उसमें उतनी मात्रा में विष भी होता है। वाइन में 10 प्रतिशत, बीयर जो साधारण कक्षा दारू माना जाता है उसमें 30 प्रतिशत, व्हिस्की तथा ब्रान्डी में 40 से 50 प्रतिशत तक अर्थात आधा हिस्सा अल्कोहल होता है।

आश्चर्य की बात यह है कि जिस दारू में अधिक मात्रा में अल्कोहल होता है उतना वह अधिक अच्छी किस्म का दारू माना जाता है, क्योंकि उससे अधिक नशा उत्पन्न होता है। सुविख्यात डॉक्टर डॉक का अभिप्राय है कि अल्कोहल एक प्रकार का सूक्ष्म विष है जो क्षण मात्र में सारे शरीर में फैल जाता है। रक्त, नाड़ियों तथा दिमाग के कार्यों में विघ्न डालता है। शरीर के कुछ अंगों सूजन आती है। तदुपरांत, शरीर के विविध गोलकों (चक्रों) को बिगाड़ देता है। कई बार वह सारे शरीर को बेकार बना देता है। कभी पक्षाघात भी हो जाता है।

थोड़ा सा विष खाने से मृत्यु हो जाती है। दारू के रूप में हर रोज विषपान किया जाये तो कितनी हानि होती है, इसका विचार करना चाहिए। कुछ डॉक्टरों ने शराबियों के शरीर को चीरकर देखा है कि उसके सब अंग विषाक्त हो जाते हैं। आँतें प्रायः सड़ जाती हैं। दिमाग कमजोर हो जाता है। रक्त की नाडियाँ आवश्यकता से अधिक चौड़ी हो जाती हैं। दिमाग शरीर का राजा है। उसके संचालन में खाना-पीना, उठना बैठना, चलना फिरना जैसी क्रियाओं में मन्दता आ जाती है। इस प्रकार सारा शरीर प्रायः बेकार हो जाता है।

आदमी जब दारू पीता है,तब दिमाग उसके नियन्त्रण में नहीं रहता। कुछ का कुछ बोलने लगता है। लड़खड़ाता है। उसके मुँह से खराब दुर्गन्ध निकलती है। वह रास्ते में कहीं भी गिर पड़ता है।इस प्रकार नशे का बुरा प्रभाव दिमाग पर पड़ता है। दिमाग की संचालन शक्ति धीरे-धीरे नष्ट होती जाती है। कुछ लोग पागल बन जाते हैं। कभी अकाल मृत्यु का शिकार हो जाते हैं। इंग्लैंड, जर्मनी, अमेरिका आदि देशों में जहाँ अधिक मात्रा में दारू पिया जाता है वहाँ के डॉक्टरों का अभिप्राय है कि अधिकतर रोग दारू पीने वालों को सताते हैं। प्लेटिन महोदय इस विषय पर लिखते हैं कि शरीर के केन्द्रस्थान पर अल्कोहल की बहुत भयानक असर पड़ती है। इसी कारण से दारू पीने वालों में कई लोग पागल हो जाते हैं।

शराबियों के बच्चे प्रायः मूर्खता, पागलपन, पक्षाघात, क्षय आदि रोगों के शिकार बनते हैं। दारू तथा मांसाहार में होनेवाली अशांति, उद्वेग और भयंकर रोगों को विदेशी लोग अब समझने लगे हैं। करीब पाँच लाख लोगों ने दारू, मांस जैसे आसुरी आहार का त्याग करके भारतीय शाकाहारी व्यंजन लेना शुरु किया है। शराबी लोग स्वयं तो डूबते हैं साथ ही साथ अपने बच्चों को भी डुबोते हैं। आगे चलकर उपरोक्त महोदय कहते हैं कि दारू पीने वाले लोग अत्यन्त दुर्बल होते हैं। ऐसे लोगों को रोग अधिकाधिक परेशान करते हैं।

दारू के शौकीन लोग कहते हैं कि दारू पीने से शरीर में शक्ति, स्फूर्ति और उत्तेजना आती है। परन्तु उनका यह तर्क बिल्कुल असंगत और गलत है। थोड़ी देर के लिए कुछ उत्तेजना आती है लेकिन अन्त में भयंकर दुष्परिणाम भुगतने पड़ते हैं।

दारू पीने वालों की स्त्रियों की कल्पना करो। उनको कितने दुःख सहन करना पड़ता है। शराबी लोग अपनी पत्नी के साथ क्रूरता पूर्ण बर्ताव करते हैं। दारू पीने वाला मनुष्य मिटकर राक्षस बन जाता है। वह राक्षस भी शक्ति एवं तेज से रहित। उसके बच्चे भी कई प्रकार से निराशा महसूस करते हैं। सारा परिवार पूर्णतया परेशान होता है। दारू पीने वालों की इज्जत समाज में कम होती है। ये लोग भक्ति, योग तथा आत्मज्ञान के मार्ग पर नहीं चल सकते। आदमी ज्यों-ज्यों अधिक दारू पीता है त्यों-त्यों अधिकाधिक कमजोर बनता है।

पाश्चात्य शिक्षा के रंग में हुए लोग कई बार मानते हैं कि दारू का थोड़ा इस्तेमाल आवश्यक और लाभप्रद है। वे अपने आपको सुधरे हुए मानते हैं। लेकिन यह उनकी भ्रांति है। डॉ. टी.एल. निकल्स लिखते हैं-“जीवन के लिए किसी भी प्रकार और किसी भी मात्रा में अल्कोहल की आवश्यकता नहीं है। दारू से कोई भी लाभ होना असंभव है। दारू से नशा उत्पन्न होता है लेकिन साथ ही साथ अनेक रोग भी पैदा होते हैं। जो लोग सयाने हैं और सोच समझ सकते हैं, वे लोग मादक पदार्थों से दूर रहते हैं। भगवान ने मनुष्य को बुद्धि दी है, इससे बुद्धिपूर्वक सोचकर उसे दारू से दूर रहना चाहिए।”

जीव विज्ञान के ज्ञाताओं का कहना है कि शराबियों के रक्त में अल्कोहल मिल जाता है अतः उसके बच्चे को आँख का कैन्सर होने की संभावना है। दस पीढ़ी तक की कोई भी संतान इसका शिकार हो सकती है। शराबी अपनी खाना-खराबी तो करता ही है, दस पीढ़ियों के लिए भी विनाश को आमंत्रित करता है।

बोतल का दारू दस पीढ़ी तक विनाशकारी प्रभाव रखता है तो राम नाम की प्यालियाँ इक्कीस पीढ़ियों को पार लगाने का सामर्थ्य रखे, यह स्वाभाविक है।

जाम पर जाम पीने से क्या फायदा

रात बीती सुबह को उतर जायेगी।

तू हरि रस की प्यालियाँ पी ले

तेरी सारी ज़िन्दगी सुधर जाएगी।।

डायोजिनीज को उनके मित्रों ने महँगे शराब का जाम भर दिया। डायोजिनीज ने कचरापेटी में डाल दिया। मित्रों ने कहाः “इतनी कीमती शराब आपने बिगाड़ दी?”

“तुम क्या कर रहे हो?” डायोजिनीज ने पूछा।

“हम पी रहे हैं।” जवाब मिला।

“मैंने जो चीज कचरापेटी में उड़ेली वही चीज तुम अपने मुँह में उड़ेलकर अपना विनाश कर रहे हो। मैंने तो शराब ही बिगाड़ी लेकिन तुम शराब और जीवन दोनों बिगाड़ रहे हो।”

दुर्बल मनवाला व्यक्ति विकारों-दुर्व्यसनों में फँसता जाता है । ऐसी परिस्थिति में व्यसनों से मुक्ति इस प्रकार हो सकती है |

यदि अपने पास संकल्पबल न हो तो जिनके पास अपूर्व संकल्पबल हो उनका सहारा लेना चाहिए । संत-महापुरुष , आत्मज्ञानी महात्मा उनके समक्ष प्रार्थना करने से , व्रत लेने से उनके संकल्प और आशीर्वाद मदद रूप होते है ।

शराब छोड़ने का प्रयोग :- प्रातःकाल उठकर दोनों हाथों को देखों । पांच बार मन –ही –मन कहो : “आज मै अपने मुँह में इस जहर को नहीं डालूँगा …. दारू नहीं पिऊँगा …. नहीं पिऊँगा ।”

प्रातः स्नानादि के बाद कटोरी में थोडा जल लो । ललाट पर उस पानी का तिलक करो । दृढ़ संकल्प करो की अब मैं अपना भाग्य बदलूँगा । ‘हरी ॐ…. हरी ॐ….हरी ॐ’ लगभग सवा सौ बार इस मंत्र का जप करो । पानी में निहारो और तीन घूँट वह पानी पी जाओ । रात्रि को सोते समय भी ऐसा करो ।चमत्कारिक ईश्वरीय सहायता अवश्य मिलेगी ।

बीडी , सिगरेट , गुटखा – पानमसाला छोड़ने का प्रयोग :- सौंफ 100 ग्राम , अजवायन 100 ग्राम , सेंधा नमक 30 ग्राम , दो बड़े निम्बू का रस मिश्रीत करके तवे पर सेंक लो । जब बीडी , सिगरेट , गुटखा अथवा पानमसाले की तलब लगे तब इसका मुखवास लो । इससे रक्त की शुद्धि होगी तथा तम्बाकू के व्यसन से मुक्ति मिलेगी ।

संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित ‘ व्यसन का शौक ….कुत्ते की मौत ’ पोस्टर अथवा कैलेण्डर को अपने कार्यालय एवं शयनकक्ष में टाँगे ।

इससे भी व्यसन छोड़ने में आपको मदद मिलेगी । यह मानव जीवन बड़ा दुर्लभ है । ईश्वर जीव पर कृपा करके उसे जन्म – मरण के दुःख से मुक्त होने के लिए मनुष्य शरीर देता है ।

आओ अपने और अपने परिवार के खुशियों के लिए ,अपने और अपने परिवार के अच्छे स्वास्थ्य के लिए आज ही व्यसन मुक्ति बनें।

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