11 दिसंबर 2021
azaadbharat.org
गीता में ऐसा उत्तम और सर्वव्यापी ज्ञान है कि उसकी रचना हुए हजारों वर्ष बीत गए हैं किन्तु उसके बाद उसके समान किसी भी ग्रंथ की रचना नहीं हुई है। 18 अध्याय एवं 700 श्लोकों में रचित तथा भक्ति, ज्ञान, योग एवं निष्कामता आदि से भरपूर यह गीता ग्रन्थ विश्व में एकमात्र ऐसा ग्रन्थ है जिसकी जयंती मनायी जाती है।
इस साल श्रीमद्भगवद्गीता जयंती 14 दिसंबर को है।
श्रीमद्भगवद्गीता ने किसी मत, पंथ की सराहना या निंदा नहीं की, अपितु मनुष्यमात्र की उन्नति की बात कही है। गीता जीवन का दृष्टिकोण उन्नत बनाने की कला सिखाती है और युद्ध जैसे घोर कर्मों में भी निर्लेप रहने की कला सिखाती है। मरने के बाद नहीं, जीते-जी मुक्ति का स्वाद दिलाती है गीता!
‘गीता’ में 18 अध्याय हैं, 700 श्लोक हैं, 94569 शब्द हैं। विश्व की 578 से भी अधिक भाषाओं में गीता का अनुवाद हो चुका है।
‘यह मेरा हृदय है’- ऐसा अगर किसी ग्रंथ के लिए भगवान ने कहा है तो वह गीताजी हैं। ‘गीता मे हृदयं पार्थ।- गीता मेरा हृदय है।’
गीता ने गजब कर दिया- धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे… युद्ध के मैदान को भी धर्मक्षेत्र बना दिया। युद्ध के मैदान में गीता ने योग प्रकटाया। हाथी चिंघाड़ रहे हैं, घोड़े हिनहिना रहे हैं, दोनों सेनाओं के योद्धा प्रतिशोध की आग में तप रहे हैं। किंकर्तव्यविमूढ़ता से उदास बैठे हुए अर्जुन को भगवान श्रीकृष्ण ज्ञान का उपदेश दे रहे हैं।
आजादी के समय स्वतंत्रता सेनानियों को जब फाँसी की सजा दी जाती थी, तब ‘गीता’ के ही श्लोक बोलते हुए वे हँसते-हँसते फाँसी पर लटक जाते थे।
श्री वेदव्यास ने महाभारत में गीता का वर्णन करने के उपरान्त कहा हैः
गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्रविस्तरैः।
या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्माद्विनिःसृता।।
‘गीता सुगीता करने योग्य है अर्थात् श्री गीता को भली प्रकार पढ़कर अर्थ और भाव सहित अंतःकरण में धारण कर लेना मुख्य कर्तव्य है, जो कि स्वयं श्री पद्मनाभ विष्णु भगवान के मुखारविन्द से निकली हुई है, फिर अन्य शास्त्रों के विस्तार से क्या प्रयोजन है?’
गीता सर्वशास्त्रमयी है । गीता में सारे शास्त्रों का सार भरा हुआ है। इसे सारे शास्त्रों का खजाना कहें तो भी अतिशयोक्ति न होगी। गीता का भलीभाँति ज्ञान हो जाने पर सब शास्त्रों का तात्त्विक ज्ञान अपने आप हो सकता है। उसके लिए अलग से परिश्रम करने की आवश्यकता नहीं रहती।
वराहपुराण में गीता की महिमा का बयान करते-करते भगवान ने स्वयं कहा हैः
गीताश्रयेऽहं तिष्ठामि गीता मे चोत्तमं गृहम्।
गीताज्ञानमुपाश्रित्यत्रींल्लोकान्पालयाम्यहम्।।
‘मैं गीता के आश्रय में रहता हूँ। गीता मेरा श्रेष्ठ घर है। गीता के ज्ञान का सहारा लेकर ही मैं तीनों लोकों का पालन करता हूँ।’
श्रीमद्भगवदगीता केवल किसी विशेष धर्म या जाति या व्यक्ति के लिए ही नहीं, वरन् मानवमात्र के लिए उपयोगी व हितकारी है। चाहे किसी भी देश, वेश, समुदाय, संप्रदाय, जाति, वर्ण व आश्रम का व्यक्ति क्यों न हो, यदि वह इसका थोड़ा-सा भी नियमित पठन-पाठन करे तो उसे अनेक अनेक आश्चर्यजनक लाभ मिलने लगते हैं।
श्रीमद्भगवद्गीता के ज्ञानामृत के पान से मनुष्य के जीवन में साहस, सरलता, स्नेह, शांति और धर्म आदि दैवी गुण सहज में ही विकसित हो उठते हैं। अधर्म, अन्याय एवं शोषण का मुकाबला करने का सामर्थ्य आ जाता है। भोग एवं मोक्ष दोनों ही प्रदान करने वाला, निर्भयता आदि दैवी गुणों को विकसित करनेवाला यह गीता ग्रन्थ पूरे विश्व में अद्वितीय है।
सशरीर स्वर्ग में जाकर शस्त्र ले आने की क्षमता वाले अर्जुन को भी गीता के अमृत के बिना किंकर्त्तव्यविमूढ़ता ने घेर रखा था। गीता माता ने अर्जुन को सशक्त बना दिया। गीता माता अहिंसक पर वार नहीं कराती और हिंसक व्यक्तियों के आगे हमें डरपोक नहीं होने देती।
देहं मानुषमाश्रित्य चातुर्वर्ण्ये तु भारते।
न श्रृणोति पठत्येव ताममृतस्वरूपिणीम्।।
हस्तात्त्यक्तवाऽमृतं प्राप्तं कष्टात्क्ष्वेडं समश्नुते।
पीत्वा गीतामृतं लोके लब्ध्वा मोक्षं सुखी भवेत्।।
भरतखण्ड में चार वर्णों में मनुष्य देह प्राप्त करके भी जो अमृतस्वरूप गीता नहीं पढ़ता है या नहीं सुनता है वह हाथ में आया हुआ अमृत छोड़कर कष्ट से विष खाता है। किन्तु जो मनुष्य गीता सुनता है, पढ़ता है तो वह इस लोक में गीतारूपी अमृत का पान करके मोक्ष प्राप्त कर सुखी होता है।
विदेशों में श्री गीताजी का महत्व समझकर स्कूल, कॉलेजों में पढ़ाने लगे हैं, भारत सरकार भी अगर बच्चों एवं देश का भविष्य उज्ज्वल बनाना चाहती है तो सभी स्कूलों, कॉलेजों में गीता अनिवार्य कर देना चाहिए।
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