मंत्र-पुरश्चरण विधि : Vedic Mantra Purashcharan Method
भारतीय वैदिक परंपरा में मंत्र को केवल शब्द नहीं, बल्कि चैतन्य शक्ति का स्वरूप माना गया है।
ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद, उपनिषदों तथा पुराणों में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि
मंत्र तभी फलित होता है जब वह जाग्रत और सिद्ध हो।
मंत्र को जाग्रत करने की शास्त्रोक्त प्रक्रिया को ही Vedic Mantra Purashcharan Method कहा जाता है।
पुरश्चरण का उद्देश्य मंत्र को साधक के प्राण, मन और चेतना से जोड़कर उसे कार्यक्षम बनाना है।
बिना पुरश्चरण के मंत्र का प्रयोग करना वैसा ही है जैसे बिना अग्नि प्रज्वलन के यज्ञ करना।
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पुरश्चरण का तात्पर्य और उसके पाँच अंग
शास्त्रों के अनुसार Vedic Mantra Purashcharan Method में मंत्र की पाँच अनिवार्य क्रियाएँ होती हैं।
इनके पूर्ण होने पर ही मंत्र सिद्ध होकर फल देता है।
- मंत्र-जप
- हवन
- अर्पण
- तर्पण
- मार्जन
1. मंत्र-जप: Vedic Mantra Purashcharan Method की आधारशिला
गुरु द्वारा प्राप्त मंत्र का मानसिक, उपांशु अथवा वाचिक रूप से शुद्ध उच्चारण ही मंत्र-जप कहलाता है।
सामान्यतः अधिकांश मंत्र सवा लाख (1,25,000) जप से सिद्ध माने जाते हैं।
पुरश्चरण में मंत्र के अक्षरों की संख्या को एक लाख से गुणा कर जप-संख्या निर्धारित की जाती है।
इस विधि से किया गया जप साधक के भीतर दिव्य तेज उत्पन्न करता है।
2. हवन: अग्नि के माध्यम से मंत्र-शक्ति का संचार
हवन-कुंड में विधिपूर्वक अग्नि प्रज्वलित कर मंत्रोच्चार सहित आहुति देना हवन कहलाता है।
जप की कुल संख्या का दशांश हवन किया जाता है।
मंत्र के अंत में “स्वाहा” शब्द का प्रयोग अनिवार्य है।
3. अर्पण: देवताओं के प्रति कृतज्ञता
दोनों हाथों से अंजलि बनाकर जल अर्पित करना अर्पण कहलाता है।
यह देवताओं के लिए किया जाता है।
हवन का दशांश अर्पण किया जाता है और मंत्र के अंत में “अर्पणमस्तु” बोला जाता है।
4. तर्पण: पितृ-ऋण से मुक्ति की प्रक्रिया
दाहिने हाथ से जल लेकर बाईं ओर गिराना तर्पण कहलाता है।
अर्पण का दशांश तर्पण किया जाता है।
मंत्र के अंत में “तर्पयामि” शब्द का उच्चारण किया जाता है।
5. मार्जन: शुद्धि और संरक्षण
कुशा को जल में डुबोकर मंत्रोच्चार सहित जल छिड़कना मार्जन कहलाता है।
तर्पण का दशांश मार्जन किया जाता है।
यह साधक और वातावरण की सूक्ष्म शुद्धि करता है।
पुरश्चरण के पश्चात् विधि
पाँचों अंगों के पूर्ण होने पर पुरश्चरण सम्पन्न होता है।
इसके पश्चात् ब्राह्मण-भोजन कराया जा सकता है।
शास्त्रों के अनुसार, पुरश्चरण के बाद ही मंत्र-प्रयोग फलदायी होता है।
साधना की सफलता हेतु शास्त्रीय नियम
साधना को गोपनीय रखें, केवल गुरु-प्रदत्त मंत्र का ही प्रयोग करें।
साधना-काल में ब्रह्मचर्य, शुद्ध आहार और संयम अनिवार्य है।
एकांत और शांति में जप करें तथा पूर्ण एकाग्रता बनाए रखें।
उपसंहार: Vedic Mantra Purashcharan Method का महत्व
मंत्र-पुरश्चरण कोई तांत्रिक प्रदर्शन नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि और अनुशासन की साधना है।
वेद-पुराणोक्त Vedic Mantra Purashcharan Method के पालन से साधक
आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होता है।
शास्त्रों का स्पष्ट निर्देश है —
“श्रद्धावान् लभते ज्ञानम्”
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