Umbilical Cord: नाभि की नाल का महत्व और जीवन का खजाना
गर्भावस्था के दौरान शिशु और माता का सबसे गहरा संबंध Umbilical Cord यानी नाभि की नाल से बनता है। यह केवल साधारण धागा नहीं है। बल्कि यह शिशु को रक्त, ऑक्सीजन, पोषण और प्रतिरक्षा देती है।
Umbilical Cord का महत्व
लोग अक्सर गर्भनाल को बेकार मान लेते हैं। हालाँकि, यह शिशु का पहला प्राकृतिक पोषण स्रोत और सुरक्षा कवच है। इसमें मिलता है:
- शिशु के कुल रक्त का लगभग एक-तिहाई भाग
- मस्तिष्क और अंगों के विकास के लिए ऑक्सीजन और पोषण
- संक्रमण से बचाने वाली प्रतिरक्षा कोशिकाएँ
- ऊर्जा और मजबूती के लिए आयरन
- अंगों की मरम्मत और निर्माण के लिए स्टेम कोशिकाएँ
अस्पतालों में Umbilical Cord क्यों तुरंत काट देते हैं?
आजकल अस्पतालों में जन्म के तुरंत बाद नाल काटना सामान्य हो गया है। इसके अलावा माता-पिता को बताया जाता है कि यह सुरक्षित है। लेकिन सच्चाई यह है कि जल्दी नाल काटने से शिशु अपने ही रक्त और पोषण से वंचित हो जाता है।
Umbilical Cord के पीछे की सच्चाई
नाल और प्लेसेंटा का रक्त कई बार अनुसंधान, औषधि और सौंदर्य प्रसाधन में इस्तेमाल होता है। इसके अलावा इसे स्टेम सेल बैंकिंग में भी लिया जाता है। इसी कारण डॉक्टर माता-पिता को समझाते हैं कि नाल बेकार है। अधिक जानकारी के लिए Azaad Bharat देखें।
Delayed Cord Clamping क्यों ज़रूरी है?
यदि नाल काटने से पहले कुछ मिनट प्रतीक्षा की जाए, तो शिशु को पूरा रक्त और पोषण मिलता है। इस प्रक्रिया को Delayed Cord Clamping कहते हैं। वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि यह फायदेमंद है। साथ ही प्राचीन परंपराएँ भी इसे सही मानती हैं।
नवजात शिशु की नाल छेदन विधि
नाल छेदन को सही तरीके से करने के लिए ये कदम अपनाएँ:
- सबसे पहले जन्म के बाद 3–4 मिनट प्रतीक्षा करें।
- इसके बाद जब नाल का रक्त-संचार बंद हो जाए, तभी उसे काटें।
- नाभि से लगभग आठ अंगुल ऊपर रेशमी धागा बाँधें और फिर उसके ऊपर से नाल काटें।
भारतीय परंपरा और Umbilical Cord
भारतीय परंपरा में नाल छेदन केवल चिकित्सा प्रक्रिया नहीं थी। इसके साथ कई संस्कार जुड़े थे। उदाहरण के लिए, शिशु को घी और शहद का मिश्रण चखाना। इसके अलावा माँ का पूर्व दिशा की ओर मुख करके स्तनपान कराना। इन परंपराओं का उद्देश्य शिशु को स्वास्थ्य और शुभ शुरुआत देना था।
निष्कर्ष
Umbilical Cord केवल धागा नहीं बल्कि शिशु का प्राकृतिक अमृत-भंडार है। यदि माता-पिता थोड़ी प्रतीक्षा करें, तो शिशु को सम्पूर्ण रक्त और पोषण मिल सकता है।
इसलिए ज़रूरी है कि माता-पिता जागरूक रहें। अंततः नाल छेदन में कुछ मिनट की देरी शिशु के पूरे जीवन की सेहत और शक्ति का आधार बन जाती है।
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