05 November 2025
मंदिर का धन अब मंदिर के धर्म के काम आएगा
— एक नई चेतना, धर्मरक्षण की दिशा में ऐतिहासिक परिवर्तन
भारत की आत्मा “धर्म” में बसती है।
और धर्म की आत्मा — “मंदिर” में।
मंदिर केवल पत्थर की दीवार नहीं, बल्कि एक जीवंत केंद्र है — जहाँ संस्कृति, आस्था और समाज सब एक सूत्र में बंधे रहते हैं।
लेकिन जब मंदिरों का धन मंदिर से निकलकर सरकारी कोष में जाने लगा, तब से धर्म कमजोर होने लगा।
आज समय है इस सत्य को पहचानने का —
“जब तक मंदिर स्वतंत्र नहीं, तब तक धर्म सुरक्षित नहीं।”
️ मंदिर — भारत की प्राणशक्ति
मंदिरों ने ही भारत को हजारों वर्षों तक जीवित रखा।
✴️मंदिरों से ही गुरुकुल चले, जहाँ संस्कार और शिक्षा दोनों मिले।
✴️मंदिरों से ही अन्नक्षेत्र चले, जहाँ कोई भूखा नहीं सोया।
✴️मंदिरों से ही गौशालाएँ, आश्रम और विद्या केंद्र फले-फूले।
✴️और मंदिरों से ही कला, संगीत, शास्त्र और संस्कृति को जीवन मिला।
यानी मंदिर समाज के हर वर्ग को जोड़ने वाला केंद्र था —
आस्था का भी, अर्थ का भी, और सेवा का भी।
⚖️ लेकिन जब आस्था “राजनीति” के हाथों में गई
स्वतंत्रता के बाद, हिंदू मंदिरों को “राज्य नियंत्रण” में लाया गया।
सिर्फ तमिलनाडु में ही 44,000 मंदिर आज सरकार के अधीन हैं।
हजारों करोड़ रुपये की आय — सरकारें तय करती हैं कि कहाँ खर्च होगी।
पर क्या सरकार को यह अधिकार होना चाहिए कि भक्त द्वारा भगवान को चढ़ाया गया पैसा सड़क बनाने या सरकारी विज्ञापनों में जाए?
क्या यह धर्म का सम्मान है — या धर्म का शोषण?
⚔️ न्यायालयों की चेतावनी: “देवता की संपत्ति है, राज्य की नहीं”
️ हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट (2024)
“मंदिरों के कोष को सरकारी कल्याण योजनाओं में नहीं लगाया जा सकता।
यह देवता की संपत्ति है और केवल धार्मिक कार्यों में उपयोग होना चाहिए।”
— (LawTrend, 2024)
️ मद्रास हाईकोर्ट (2023)
“सरकार मंदिरों के फंड से अपने इंफ्रास्ट्रक्चर या विवाह हॉल नहीं बना सकती।
देवता की आय देवता की सेवा में ही जानी चाहिए।”
— (Times of India, 2023)
⚜️ सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण
“राज्य का कर्तव्य धर्म की रक्षा करना है, न कि उस पर अधिकार जमाना।”
धर्म बचाना मतलब केवल पूजा नहीं, चेतना बचाना है
आज हिंदू समाज को समझना होगा —
धर्म केवल आस्था नहीं, एक जीवन प्रणाली है।
जब मंदिर का पैसा बाहर जाएगा —
गौशालाएँ बंद होंगी,
वेदपाठी भूखे रहेंगे,
संतों के आश्रम कमजोर होंगे,
और आने वाली पीढ़ियाँ अपनी जड़ों से कट जाएँगी।
धर्म तभी जीवित रहेगा जब उसका अर्थतंत्र (Temple Economy) जीवित रहेगा।
मंदिर का कोष, दान और सेवा — ये ही धर्म की रीढ़ हैं।
अब समाधान क्या है?
मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त किया जाए।
मंदिर समितियाँ भक्तों और धर्माचार्यों द्वारा संचालित हों।
मंदिर आय का पारदर्शी उपयोग हो।
हर दान की जानकारी सार्वजनिक हो — ताकि जनता को भरोसा रहे।
धर्म आधारित विकास योजना बने।
मंदिरों की आय से:
वैदिक गुरुकुल,
संस्कृत विद्यालय,
गौशाला और
धर्मशाला जैसे केंद्र विकसित किए जाएँ।
युवाओं में धर्मचेतना जागृत की जाए।
ताकि वे जानें कि धर्म केवल “रिवाज़” नहीं, बल्कि उनकी “पहचान” है।
️ जागो भारत, अब धर्म तुम्हें पुकार रहा है
अब समय है कि हर हिंदू, हर भक्त यह कहे —
“मेरा दान मेरे देवता के काम आएगा, राजनीति के नहीं।”
अब वक्त है कि
मंदिरों की आज़ादी,
धर्म की गरिमा,
और समाज की आत्मा —
तीनों की रक्षा एक साथ की जाए।
क्योंकि जब धर्म बचेगा, तभी संस्कृति बचेगी।
और जब संस्कृति बचेगी — भारत फिर से विश्वगुरु बनेगा।
निष्कर्ष
मंदिर का पैसा मंदिर में रहेगा —
तो मंदिर जीवित रहेगा।
मंदिर जीवित रहेगा —
तो धर्म जीवित रहेगा।
और जब धर्म जीवित रहेगा —
तो भारत अमर रहेगा।
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