श्रीराम नवमी: धर्म, मर्यादा और भक्ति का पर्व

06 April 2025
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श्रीराम नवमी: धर्म, मर्यादा और भक्ति का पर्व

 

 

 

श्रीराम नवमी हिन्दू धर्म का एक अत्यंत पवित्र और ऐतिहासिक पर्व है, जो भगवान विष्णु के सातवें अवतार मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व हर वर्ष चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आता है, जो चैत्र नवरात्रि के अंतिम दिन भी होता है। यह केवल एक जन्मोत्सव नहीं, बल्कि धर्म की स्थापना और अधर्म के विनाश की स्मृति है।
भगवान श्रीराम का दिव्य जन्म
पौराणिक मान्यता के अनुसार त्रेतायुग में रावण और अन्य राक्षसी शक्तियों के अत्याचार बढ़ जाने से पृथ्वी पर असंतुलन उत्पन्न हो गया था। पृथ्वी देवी ने यह दुख भगवान ब्रह्मा और फिर भगवान विष्णु तक पहुँचाया। तब भगवान विष्णु ने वचन दिया कि वे स्वयं अयोध्या में राजा दशरथ के घर राम के रूप में अवतार लेंगे।
राजा दशरथ की तीन रानियाँ – कौशल्या, कैकयी और सुमित्रा – थीं, परंतु दीर्घकाल तक संतान न होने के कारण वे अत्यंत चिंतित थे। ऋषि वशिष्ठ की सलाह पर राजा दशरथ ने महर्षि ऋष्यश्रृंग के द्वारा पुत्रकामेष्टि यज्ञ करवाया। यज्ञ के पश्चात अग्निदेव यज्ञकुंड से प्रकट हुए और उन्होंने एक दिव्य खीर राजा दशरथ को दी, जिसे तीनों रानियों में वितरित किया गया।
कुछ महीनों पश्चात कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी से भरत और सुमित्रा से जुड़वां पुत्र लक्ष्मण व शत्रुघ्न का जन्म हुआ। भगवान श्रीराम का जन्म पुनर्वसु नक्षत्र में, कर्क लग्न में, उस समय हुआ जब सूर्य मेष राशि में था। इस ज्योतिषीय विवरण का उल्लेख निर्णय सिन्धु जैसे ग्रंथों में भी मिलता है:
“चैत्रे नवम्यां प्राक् पक्षे दिवा पुण्ये पुनर्वसौ ।
उदये गुरुगौरांश्चोः स्वोच्चस्थे ग्रहपञ्चके ॥
मेषं पूषणि सम्प्राप्ते लग्ने कर्कटकाह्वये ।
आविरसीत्सकलया कौसल्यायां परः पुमान् ॥”
रामायण और रामचरितमानस में वर्णित जन्मकथा
श्रीराम के जीवन और चरित्र का विस्तृत वर्णन वाल्मीकि रामायण और गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस में मिलता है।
गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने ग्रंथ रामचरितमानस की रचना का आरंभ भी रामनवमी के दिन ही, विक्रम सम्वत् १६३१ (सन् १५७४ ई.) में अयोध्या नगरी में किया था। बालकाण्ड में श्रीराम के जन्म का अनुपम वर्णन किया गया है:
“भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी।
हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी॥
लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी।
भूषन वनमाला नयन बिसाला सोभासिन्धु खरारी॥”
इसमें श्रीराम के करुणामय, सौम्य और दिव्य स्वरूप की सुंदर छवि प्रस्तुत की गई है।
श्रीराम: मर्यादा पुरुषोत्तम
श्रीराम केवल एक राजा या योद्धा नहीं थे, वे मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में पूजनीय हैं। वे धर्म, कर्तव्य, शील और आदर्श आचरण के प्रतीक हैं। उन्होंने जीवन के हर पहलू में मर्यादा का पालन कर यह दिखाया कि एक व्यक्ति कैसे अपने परिवार, समाज और राष्ट्र के प्रति कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए ईश्वरत्व को प्राप्त कर सकता है।
वे एक आज्ञाकारी पुत्र, आदर्श भाई, एक तपस्वी पति और न्यायप्रिय राजा के रूप में आज भी प्रेरणा हैं।
रामनवमी का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
रामनवमी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की जड़ों से जुड़ा एक आत्मिक उत्सव है। यह पर्व न केवल श्रीराम के जन्म की स्मृति है, बल्कि यह अधर्म पर धर्म की विजय, असत्य पर सत्य की जीत और अंधकार पर प्रकाश के आगमन का प्रतीक भी है।
इस दिन भक्तजन व्रत रखते हैं, मंदिरों में विशेष पूजा होती है, भजन-कीर्तन किए जाते हैं और रामायण तथा रामचरितमानस का पाठ किया जाता है। घरों में श्रीराम के जन्म के प्रतीक स्वरूप पालना झुलाया जाता है, और आरती की जाती है।
पूजा विधि में विशेष रूप से जल, रोली, चावल व फूलों से भगवान की पूजा की जाती है। अनेकों लोग इस दिन पवित्र नदियों में स्नान कर पुण्य प्राप्त करते हैं।
चैत्र नवरात्रि का समापन और रामनवमी
रामनवमी, चैत्र नवरात्रि के समापन का दिन होता है। नौ दिन तक माँ दुर्गा के नव रूपों की आराधना के बाद यह दिन विजय, पवित्रता और शांति का प्रतीक बन जाता है। देवी की पूजा के साथ-साथ इस दिन श्रीराम के अवतरण की खुशी में भक्तजन विशेष हवन, भंडारा और राम जन्मोत्सव मनाते हैं।
रामनवमी: एक जीवंत परंपरा
यह पर्व भारत सहित नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, इंडोनेशिया जैसे देशों में भी श्रद्धा से मनाया जाता है। अयोध्या, वाराणसी, चित्रकूट, सीतामढ़ी, रामेश्वरम जैसे तीर्थ स्थलों पर रामनवमी पर विशेष आयोजन होते हैं। अयोध्या में सरयू नदी के किनारे लाखों श्रद्धालु स्नान कर भगवान श्रीराम का जन्मोत्सव मनाते हैं।
निष्कर्ष
रामनवमी केवल एक पर्व नहीं, बल्कि आत्मा के पुनर्जागरण का अवसर है। यह दिन हमें प्रेरणा देता है कि कैसे हम अपने जीवन में श्रीराम के गुणों – सत्य, संयम, सेवा और मर्यादा – को अपनाकर श्रेष्ठ नागरिक और श्रेष्ठ आत्मा बन सकते हैं।
श्रीराम का जन्म केवल अयोध्या में नहीं, हर उस हृदय में होता है जो सत्य, धर्म और भक्ति से ओत-प्रोत हो।
“राम वही जो रघुनंदन हो, राम वही जो मर्यादा में हो।”
जय श्रीराम!
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