श्री हनुमान जन्मोत्सव विशेष

11 April 2025

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श्री हनुमान जन्मोत्सव विशेष

 

 

 

 

अंजनी माता की अद्भुत आराधना और गर्भसंस्कार

 

चैत्र पूर्णिमा का दिन केवल एक पर्व नहीं, बल्कि एक प्रेरणा है – माँ अंजनी के तप, श्रद्धा और शक्ति की, और उनके गर्भ से जन्मे उस दिव्य बालक की, जो आगे चलकर रामभक्त, ज्ञानवान, अजेय और अमर बनकर पूरी सृष्टि के लिए आदर्श बन गया।

 

माता अंजनी (पूर्वजन्म में अप्सरा पुंजिकस्थला) ने वानरी योनि में जन्म लेने के बाद अपने जीवन को तपस्या और भक्ति के लिए समर्पित कर दिया। उत्तम संतान प्राप्ति की इच्छा से उन्होंने हिमालय की पर्वतों पर जाकर भगवान शिवजी की घोर तपस्या की।

 

पवनदेव की सहायता से शिवजी की दिव्य ऊर्जा उनके गर्भ में प्रवेश कर गई, जिसके फलस्वरूप दिव्य बालक हनुमान जी का जन्म हुआ।

 

गर्भसंस्कार और माँ अंजनी की तपस्या

 

गर्भकाल में माँ अंजनी प्रतिदिन राम नाम का जप करती थीं।

उन्होंने शुद्ध आहार, सात्विक विचार, और ध्यानपूर्ण जीवनशैली अपनाई।

वे जानती थीं कि उनका पुत्र कोई साधारण बालक नहीं, बल्कि युगपुरुष होगा।

 

पौराणिक कथा का सार

 

पूर्व जन्म में अप्सरा पुंजिकस्थला को श्रापवश वानरी योनि में जन्म लेना पड़ा। इस जन्म में वह माँ अंजनी बनीं। उन्होंने गहन तपस्या और ईश्वर भक्ति के द्वारा शिवजी को प्रसन्न किया। शिवजी ने उन्हें एक दिव्य संतान को जन्म देने का वरदान दिया।

 

पवनदेव के माध्यम से शिवजी की ऊर्जा उनके गर्भ में प्रविष्ट हुई और चैत्र पूर्णिमा के दिन हनुमानजी का जन्म हुआ। इसी कारण उन्हें पवनपुत्र हनुमान कहा जाता है।

 

चैत्र पूर्णिमा का विशेष महत्व

 

यह दिन हमें प्रेरणा देता है कि माँ अंजनी जैसी माताएँ गर्भकाल में भक्ति, ध्यान और सात्विक जीवनशैली से संतान के उज्ज्वल भविष्य की नींव रख सकती हैं।

यह समय गुणों और भक्ति की ऊर्जा को अपने जीवन में उतारने का श्रेष्ठ अवसर है।

 

हनुमानजी को प्राप्त अष्ट सिद्धियाँ और नव निधियाँ

 

अष्ट सिद्धियाँ:

अणिमा – सूक्ष्म बनने की शक्ति

महिमा – विशाल रूप धारण करने की शक्ति

गरिमा – अत्यधिक भारी होने की शक्ति

लघिमा – अत्यंत हल्का होने की शक्ति

प्राप्ति – इच्छित वस्तु की प्राप्ति

प्राकाम्य – इच्छित कार्य की सिद्धि

ईशित्व – प्रभुता प्राप्त करने की शक्ति

वशित्व – दूसरों को वश में करने की शक्ति

 

नव निधियाँ:

पद्म

महापद्म

शंख

मकर

कच्छप

मुकुंद

नंद

नील

खर्व

 

साधक को क्या करना चाहिए?

 

गर्भधारण से पहले संयम, ब्रह्मचर्य और सात्विकता का पालन करें।

गर्भकाल में भक्ति, जप, ध्यान और सद्ग्रंथों का श्रवण करें।

बच्चों को भगवान के भक्तों की जीवनियाँ पढ़ाएँ।

हनुमानजी की भक्ति करें, राम नाम का जप करें और हनुमान चालीसा का नित्य पाठ करें।

 

हनुमान जन्मोत्सव – केवल तिथि नहीं, एक प्रेरणा

 

हनुमान जन्मोत्सव केवल एक पावन तिथि नहीं, यह माता अंजनी के महान तप और श्रेष्ठ गर्भसंस्कार की प्रेरणादायी गाथा है। यह वह दिन है जब हम समझ सकते हैं कि एक माँ अपने तप और भक्ति से भगवान समान संतान को जन्म दे सकती है।

 

संतान की उन्नति केवल शिक्षा से नहीं, बल्कि गर्भसंस्कार से होती है।

हनुमानजी का जीवन इसका आदर्श प्रमाण है।

 

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