1 August 2022
जिस दिन ब्रह्माजी ने नागो को रक्षा का उपाय बताया था, वह पंचमी तिथि थी। आस्तिक मुनि ने सावन की पंचमी को ही नागों को यज्ञ में जलने से बचाया और इनके ऊपर दूध डालकर जलते हुए शरीर को शीतलता प्रदान किया। इस समय ही नागों ने आस्तिक मुनि से कहा कि नागपंचमी को जो भी मेरी पूजा करेगा उसे नागदंश का भय नहीं रहेगा।
नाग पंचमी को नाग देवता की कैसे और क्यो पूजन करें ? जानिए:
श्रावणमास अर्थात त्यौहारों का महीना ऐसी भी इस मास की एक अलग विशेषता है । श्रावण मास का पहला त्यौहार ‘नागपंचमी’ है । इस दिन स्त्रियां उपवास करती हैं । नए वस्त्र, अलंकार परिधान कर नागदेवता की पूजा करती हैं तथा दूध का भोग लगाती हैं ।
पूर्वज एवं नागों का एक-दूसरे से संबंध
र्भुवलोक एवं पितृलोक में फंसे हुए पूर्वज अधिकांश रूप से काले नागों के रूप में अपने वंशजों को दर्शन कराते हैं । सात्त्विक पूर्वज पीले रंग के नागों के रूप में दर्शन एवं आशीर्वाद देते हैं । घर, संपत्ति एवं परिजनों के प्रति बहुत ही आसक्ति वाले पूर्वजों को पृथ्वी पर नागयोनी में जन्म मिलता है । मनुष्य जन्म में दूसरों को कष्ट पहुंचाकर वाममार्ग से संपत्ति अर्जित करनेवाले पूर्वजों को उनके अगले जन्म में पाताल में काले नागों के रूप में जन्म मिलता है ।
देवता के कार्य में सहभागी तथा सज्जन प्रवृत्ति के लोग पितृलोक में निवास करने के पश्चात शिवलोक के पास स्थित दैवीय नागलोक में पीले नागों के रूप में वास करते हैं ।
नागपंचमी का इतिहास:
आपको बता दे कि सभी नागों की उत्पत्ति कश्यप ऋषी एवं कद्रू से उत्पत्ति हुई ।
सर्पयज्ञ करने वाले जनमेजय राजा को आस्तिक नामक ऋषि ने प्रसन्न कर लिया था । जनमेजय ने जब उनसे वर मांगने के लिए कहा, तो उन्होंने सर्पयज्ञ रोकने का वर मांगा एवं जिस दिन जनमेजय ने सर्पयज्ञ रोका, उस दिन पंचमी थी ।
‘शेषनाग अपने फन पर पृथ्वी को धारण करते हैं । वे पाताल में रहते हैं । उनके सहस्र फन हैं । प्रत्येक फन पर एक हीरा है । उनकी उत्पत्ति श्रीविष्णु के तमोगुण से हुई । श्रीविष्णु प्रत्येक कल्प के अंत में महासागर में शेषासन पर शयन करते हैं । त्रेता युग में श्रीविष्णु ने राम-अवतार धारण किया । तब शेष ने लक्ष्मण का अवतार लिया । द्वापर एवं कलियुग के संधिकाल में श्रीविष्णु ने श्रीकृष्ण का अवतार लिया । उस समय शेष बलराम बने ।
श्रीकृष्ण ने यमुना के कुंड में कालिया नाग का मर्दन किया । वह तिथि श्रावण शुक्ल पक्ष पंचमी थी ।
पांच युगों से पूर्व सत्येश्वरी नामक एक कनिष्ठ देवी थी । सत्येश्वर उसका भाई था । सत्येश्वर की मृत्यु नागपंचमी से एक दिन पूर्व हो गई थी । सत्येश्वरी को उसका भाई नाग के रूप में दिखाई दिया । तब उसने उस नागरूप को अपना भाई माना । उस समय नागदेवता ने वचन दिया कि, जो बहन मेरी पूजा भाई के रूप में करेगी, मैं उसकी रक्षा करूंगा । इसलिए प्रत्येक स्त्री उस दिन नाग की पूजा कर नागपंचमी मनाती है ।
नागपूजन एवं उसका महत्त्व:
पीढेपर हलदीसे नौ नागों की आकृतियां बनाई जाती हैं । श्लोक में बताए अनुसार अनंत, वासुकी इस प्रकार कहकर एक-एक नाग का आवाहन किया जाता है । उसके उपरांत उनका षोडशोपचार पूजन किया जाता है । उन्हें दूध एवं खीलोंका अर्थात पफ रैसका नैवेद्य निवेदित किया जाता है । कुछ स्थानों पर हलदी के स्थान पर रक्तचंदन से नौ नागोंकी आकृतियां बनाई जाती हैं । रक्तचंदन में नाग के समान अधिक शीतलता होती है । नागका वास्तव्य बमीठेमें अर्थात ऐंटहिलमें होता है। कुछ लोग बमीठे का भी पूजन करते हैं ।
‘नागों में श्रेष्ठ ‘अनंत’ मैं ही हूं’, इस प्रकार श्रीकृष्ण ने गीता (अध्याय १०, श्लोक २९) में अपनी विभूति का कथन किया है ।
अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम् ।शंखपालं धृतराष्ट्रं तक्षकं, कालियं तथा ।। –श्रीमद्भगवद्गीता
अर्थ : अनंत, वासुकी, शेष, पद्मनाभ, कंबल, शंखपाल, धृतराष्ट्र, तक्षक एवं कालिया, इन नौ जातियों के नागों की आराधना करते हैं । इससे सर्पभय नहीं रहता और विषबाधा नहीं होती ।’
‘पंचनाग अर्थात पंचप्राण । नागपंचमी के दिन वातावरण में स्थिरता आती है । सात्त्विकता ग्रहण करने के लिए यह योग्य और अधिक उपयुक्त काल है । इस दिन शेषनाग और विष्णु को आगे दी गई प्रार्थना करनी चाहिए – ‘आपकी कृपा से इस दिन शिवलोक से प्रक्षेपित होने वाली तरंगें मेरे द्वारा अधिकाधिक ग्रहण होने दीजिए । मेरी आध्यात्मिक प्रगति में आनेवाली सर्व बाधाएं नष्ट होने दीजिए, मेरे पंचप्राणों में देवताओं की शक्ति समाए तथा उसका उपयोग ईश्वर प्राप्ति और राष्ट्र रक्षा के लिए होने दीजिए । मेरे पंचप्राणों की शुदि्ध होने दीजिए । नागदेवता संपूर्ण संसार की कुंडलिनी हैं । पंचप्राण अर्थात पंचभौतिक तत्त्वों से बने हुए शरीर का सूक्ष्म-रूप । स्थूलदेह प्राणहीन है । इसमें वास करनेवाली प्राणवायु पंचप्राणों से आती है ।’
नाग परमेश्वर के अवतारों से अर्थात सगुण रूपों से संबंधित है । सागरमंथन के लिए कूर्मावतार को वासुकी नाग ने सहायता की थी । श्रीविष्णु के तमोगुण से शेषनाग की उत्पत्ति हुई । भगवान शंकर की देह पर नौ नाग हैं इत्यादि । इसलिए नागपंचमी के दिन नाग का पूजन करना अर्थात नौ नागों के संघ के एक प्रतीक का पूजन करना है ।
हिन्दू धर्म नागपंचमी के पूजन से यह सिखाता है कि सर्व प्राणिमात्र में परमेश्वर हैं ।
‘अन्य दिनों में नाग में तत्त्व अप्रकट स्वरूप में कार्यरत होते है,परंतु नागपंचमी के दिन वे प्रकट रूप में कार्यरत होते हैं । इसलिए पूजक को उनका अधिक लाभ होता है । आजकल नाग उपलब्ध नहीं होते, अतः स्त्रियां पीढे पर हलदी से नौ नागों की आकृतियां बनाकर उनकी पूजा करती हैं; परंतु नागपंचमी के दिन प्रत्यक्ष नाग की पूजा करना अधिक लाभदायक होता है; क्योंकि सजीव रूप में ईश्वरी तत्त्व आकर्षित करने की अधिक क्षमता होती है ।
विश्व के सर्व जीव-जंतु विश्व के कार्य हेतु पूरक हैं । नागपंचमी पर नागों की पूजाद्वारा यह विशाल दृषि्टकोण सीखना होता है कि ‘भगवान उनके द्वारा कार्य कर रहे हैं ।
नागपंचमी के दिन उपवास करने का महत्व:-सत्येश्वर की मृत्यु नागपंचमी के एक दिन पूर्व हुई थी । इसलिए भाई के शोक में सत्येश्वरी ने अन्न ग्रहण नहीं किया । अतः इस दिन स्त्रियां भाई के नाम से उपवास करती हैं । उपवास करने का एक कारण यह भी है कि भाई को चिरंतन जीवन एवं आयुधों की प्राप्ति हो तथा वह प्रत्येक दुःख और संकट से पार हो जाए ।’ नागपंचमी से एक दिन पूर्व प्रत्येक बहन यदि भाई के लिए देवता को पुकारे, तो भाई को लाभ होता है और उसकी रक्षा होती है ।
नए वस्त्र और अलंकार परिधान करने का कारण
भाई के लिए सत्येश्वरी का शोक देखकर नागदेव प्रसन्न हो गए । उसका शोक दूर करने और उसे आनंदी करने के लिए नागदेव ने उसे नए वस्त्र परिधान करने हेतु दिए तथा विभिन्न अलंकार देकर उसे सजाया । उससे सत्येश्वरी संतुष्ट हो गई । इसलिए नागपंचमी के दिन स्त्रियां नए वस्त्र और अलंकार परिधान करती हैं ।
नागपंचमी मनाते समय किए जानेवाले प्रत्येक कृत्य का आध्यात्मिक लाभ
नए वस्त्र और अलंकार परिधान करने से आनंद और चैतन्य की तरंगे आकर्षित होती हैं ।
झूला झूलने से क्षात्रभाव और भक्तिभाव बढकर सात्विकता की तरंगे मिलती हैं ।
उपवास करने से शक्ति बढती है और उपवास का फल मिलता है । ‘जो स्त्री नाग की आकृतियों का भावपूर्ण पूजन करती है, उसे शक्तितत्व प्राप्त होता है ।
इस विधि में स्त्रियां नागों का पूजन ‘भाई’ के रूप में करती हैं, जिससे भाई की आयु बढती है ।
नागपंचमी के दिन नाग की पूजा करना अर्थात नागदेवता को प्रसन्न करना ।
नागपंचमी के दिन नाग की पूजा करना अर्थात सगुण रूप में शिव की पूजा करने के समान है । इसलिए इस दिन वातावरण में आई हुई शिवतरंगें आकर्षित होती हैं तथा वे जीव के लिए 364 दिन उपयुक्त सिद्ध होती हैं ।
नागपंचमी के दिन प्रत्येक साधिका द्वारा की जानेवाली प्रार्थना नागपंचमी के दिन जो बहन भाई की उन्नति के लिए ईश्वर से तडप के साथ भावपूर्ण प्रार्थना करती है, उस बहन की पुकार ईश्वर तक पहुंचती है । इसलिए प्रत्येक साधिका उस दिन प्रार्थना करे कि ‘ईश्वरी राज्य की स्थापना के लिए प्रत्येक युवक को सद्बुदि्ध, शक्ति और सामथ्र्य प्रदान करें ।’
निषेध:-
नागपंचमी के दिन कुछ न काटें, न तलें, चूल्हे पर तवा न रखें इत्यादि संकेतों का पालन बताया गया है । इस दिन भूमि खनन न करें ।
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