संत बनना कितना कठिन है संत ज्ञानेश्वर जी का जीवन देख लीजिए

15 September 2022

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संत ज्ञानेश्वर महाराज की याद में हम पूजा-वंदना करते हैं पर एक बात हमेशा खलती रहती है कि जब-जब महापुरुष धरती पर धर्म की रक्षा व समाज को जगाने के लिए आते हैं तब उनको अपने लोगों के द्वारा ही प्रताड़ित किया जाता है, अगर हयाती काल में कुछ लोग उनको मानते भी हैं तो उनपर अत्याचार होता है तब चुप होकर देखते रहते हैं उनके जाने के बाद उनकी पूजा करेंगे पर हयाती काल मे उतना आदर-सत्कार नही करते है।

संत ज्ञानेश्वर महाराज:-

भारत के महान संत ज्ञानेश्वर जी 1275 ईसवी में महाराष्ट्र के अहमदनगर ज़िले में पैठण के पास गोदावरी नदी के किनारे बसे आपेगांव में भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन ( 15 सितम्बर ) विट्ठल पंत और रुक्मिणी बाई के घर जन्म लिया। इनके पिता एक ब्राह्मण थे।

उनके पिता शादी के कई सालों बाद कोई संतान पैदा नहीं होने पर अपनी पत्नी रुक्मिणी बाई की सहमति से संसारिक मोह-माया को त्याग कर काशी चले गए और उन्होंने संन्यासी जीवन ग्रहण कर लिया। इस दौरान उनके पिता विट्ठल पंत ने स्वामी रामानंद जी को अपना गुरु बना लिया था।

वहीं कुछ समय बाद जब संत ज्ञानेश्वर जी के गुरु स्वामी रामानंद जी अपनी भारत यात्रा के दौरान आलंदी गांव पहुंचे, तब विट्ठल पंत की पत्नी से मिले और स्वामी जी ने उन्हें संतान प्राप्ति का आशीर्वाद दे दिया। जिसके बाद रुक्मिणी बाई ने स्वामी रामानंद जी को उनके पति विट्ठल पंत की सन्यासी जीवन ग्रहण करने की बात बताई, जिसके बाद स्वामी रामानंद जी ने विट्ठल पंत को फिर से ग्रहस्थ जीवन अपनाने का आदेश दिया।

इसके बाद उन्हें संत ज्ञानेश्वर समेत निवृत्तिनाथ, सोपानदेव और एक बेटी मुक्ताबाई पैदा हुई। संन्यास जीवन छोड़कर ग्रहस्थ जीवन फिर से अपनाने की वजह से ज्ञानेश्वर जी के पिता विट्ठल पंत को समाज से बहिष्कृत कर दिया था और इनका बड़ा अपमान किया। जिसके बाद ज्ञानेश्वर के माता-पिता इस अपमान के बोझ को सह न सके और उन्होंने त्रिवेणी में डूबकर प्राण त्याग कर दिए। उनके माता-पिता को 22 वर्षों तक कभी तृण-पत्ते खाकर और कभी केवल जल या वायु पीके जीवन-निर्वाह करना पड़ा । ऐसी यातनाएँ संत ज्ञानेश्वरजी को भी सहनी पड़ी ।

माता-पिता की मौत के बाद संत ज्ञानेश्वर और उनके सभी भाई-बहन अनाथ हो गए। वहीं लोगों ने उन्हें गांव के अपने घर में तक नहीं रहने दिया, जिसके बाद अपना पेट पालने के लिए संत ज्ञानेश्वर को बचपन में भीख मांगने तक को मजबूर होना पड़ा था।

संत ज्ञानेश्वरजी को शुद्धिपत्र की प्राप्ति:

काफी कष्टों और संघर्षों के बाद संत ज्ञानेश्वर जी के बड़े भाई निवृत्तिनाथ जी की गुरु गैनीनाथ से मुलाकात हुई। वे उनके पिता विट्ठल पंत जी के गुरु रह चुके थे, उन्होंने निवृत्तिनाथ जी को योगमार्ग की दीक्षा और कृष्ण की आराधना करने का उपदेश दिया, इसके बाद निवृत्तिनाथ जी ने अपने छोटे भाई ज्ञानेश्वर को भी दीक्षित किया।

इसके बाद संत ज्ञानेश्वर अपने भाई के साथ बड़े-बड़े विद्धानों और पंडितों से शुद्दिपत्र लेने के उद्देश्य से वे अपने पैतृक गांव पैठण पहुंचे। वहीं इस गांव में वे दोनों कई दिनों तक रहें, उन दोनों की इस गांव में रहने के दिनों की कई चमत्कारिक कथाएं भी प्रचलित हैं।

बाद में संत ज्ञानेश्वर जी की चमत्कारिक शक्तियों को देखकर गांव के लोग उनका आदर करने लगे और पंडितों ने भी उन्हें शुद्धिपत्र दे दिया।

महान संत ज्ञानेश्वर जी ने संपूर्ण महाराष्ट्र राज्य का भ्रमण कर लोगों को ज्ञान भक्ति से परिचित कराया एवं समता, समभाव का उपदेश दिया। 13वीं सदी के महान संत होने के साथ-साथ वे महाराष्ट्र-संस्कृति के आद्य प्रवर्तकों में से भी एक माने जाते थे।

आपको बता दें कि जिन भी संतों-महापुरुषों ने संस्कृति रक्षा व जन-जागृति का कार्य किया है, उनके खिलाफ षड्यंत्र रचे गये हैं । जगद्गुरु आद्य शंकराचार्यजी का इतना कुप्रचार किया गया कि उनकी माँ के अंतिम संस्कार के लिए उन्हें लकड़ियाँ तक नहीं मिल रही थीं । महात्मा बुद्ध पर बौद्ध भिक्षुणी के साथ अवैध संबंध एवं उसकी हत्या का आरोप लगाया गया ।

स्वामी विवेकानंदजी पर चारित्रिक आरोप लगाकर उन्हें खूब बदनाम किया गया । संत नरसिंह मेहताजी को बदनाम करने व फँसाने के लिए वेश्या को भेजा गया । संत कबीरजी पर शराबी, कबाबी, वेश्यागामी होने के घृणित आरोप लगाये गये । भक्तिमती मीराबाई पर चारित्रिक लांछन लगाये गये एवं जान से मारने के कई दुष्प्रयास हुए ।

संत तुकारामजी को बदनाम करने हेतु उन पर जादू-टोना और पाखंड करने के झूठे आरोप लगाये गये व वेश्या भेजी गयी । इतना परेशान किया कि उन्हें अपने अभंगों की बही नदी में डालनी पड़ी और उपराम हो के 13 दिनों तक उपवास करना पड़ा ।

वर्तमान में भी शंकराचार्य श्री जयेन्द्र सरस्वतीजी, स्वामी नित्यानंदजी, स्वामी केशवानंदजी, श्री कृपालुजी महाराज, संत आशारामजी बापू, साध्वी प्रज्ञा सिंह आदि हमारे संतों को षड्यंत्र में फँसाकर झूठे आरोप लगा के गिरफ्तार किया गया, प्रताड़ित किया गया, अधिकांश मीडिया द्वारा झूठे आरोपों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया,परंतु जीत हमेशा सत्य की ही होती रही है और होगी ।

हिन्दू संत आशाराम बापू ने समाज, राष्ट्र, सनातन संस्कृति की 60 साल सेवा की, निर्दोष होने के प्रमाण होने के बाद भी 10 साल से जेल में बंद रखा गया है। आज अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस है। निर्दोष संत बापू के साथ पिछले 10 वर्षों से अन्याय हो रहा है और कोई राहत नहीं दी जा रही। लोकतंत्र होने के बावजूद निर्दोष को वर्षों तक न्याय नहीं मिल रहा । जनता ने बापू की रिहाई की मांग करते हुए आज दिनभर ट्वीटर पर हैशटैग #पूछता_है_भारत को लेकर ट्रेंड भी किया जो भारत मे दिनभर टॉप ट्रेंड में दिखा। जनता की मांग है कि निर्दोष हिन्दू संत बापू को शीघ्र रिहा किया जाए।

भारतवासी इतिहास से सीखिए और मीडिया की बातों में आकर अपने धर्मगुरुओं का अपमान नही करें, आज दुनिया मे जो खुशहाली दिख रही है,वे इन महापुरुषों के कारण ही है, इन संतों ने अपनी संस्कृति को जीवित रखा है, अतः उनका आदर करिये , नही तो बाद में पश्चताप के सिवाय कुछ हाथ नही लगेगा।

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