27 April 2025
सनातन धर्म की कालगणना: युग, चतुर्युग, मन्वंतर और ब्रह्मा का एक दिन
सनातन धर्म की सबसे अद्भुत विशेषताओं में से एक है इसकी कालगणना प्रणाली — एक ऐसी समय व्यवस्था जो न केवल पृथ्वी के जीवनचक्र को बल्कि पूरे ब्रह्मांड के अस्तित्व और विनाश की प्रक्रिया को विस्तार से समझाती है।
आज हम जानेंगे कि चार युग (सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग, कलियुग) क्या हैं, एक चतुर्युग में कितना समय होता है, मन्वंतर का क्या महत्व है, और ब्रह्मा जी के एक दिन और रात में कितने युग समा जाते हैं।
चार युग: मानवता के चार चरण
सनातन धर्म के अनुसार, समय चक्रीय है और यह चार युगों में विभाजित होता है:
- सतयुग (17,28,000 वर्ष): सत्य और धर्म का स्वर्ण युग। कोई पाप या बीमारी नहीं होती।
- त्रेतायुग (12,96,000 वर्ष): धर्म के तीन पायों पर आधारित, यज्ञों और अवतारों का युग।
- द्वापरयुग (8,64,000 वर्ष): धर्म के दो पायें शेष। श्रीकृष्ण का अवतरण।
- कलियुग (4,32,000 वर्ष): वर्तमान युग; अज्ञान, लोभ और अधर्म का समय।
चतुर्युग (Chaturyuga): चारों युगों का एक चक्र
चार युगों का योग एक चतुर्युग बनाता है जिसकी कुल अवधि 43,20,000 मानव वर्ष होती है। इसे महायुग भी कहते हैं।
मन्वंतर (Manvantara): ब्रह्मा जी के प्रशासनिक काल
एक मन्वंतर में 71 चतुर्युग होते हैं। प्रत्येक मन्वंतर के अंत में संधिकाल आता है। हम वर्तमान में 7वें मन्वंतर (वैवस्वत मन्वंतर) में हैं।
ब्रह्मा जी का एक दिन (कल्प)
ब्रह्मा जी का एक दिन = 14 मन्वंतर + 14 संधिकाल = 4.32 अरब मानव वर्ष। उनकी रात भी इतनी ही लंबी होती है, जिसमें सृष्टि लय को प्राप्त होती है।
ब्रह्मा जी का जीवनकाल
ब्रह्मा जी का एक वर्ष 3,110.4 अरब मानव वर्ष का होता है, और उनका सम्पूर्ण जीवनकाल 311 ट्रिलियन वर्ष तक होता है।
निष्कर्ष: समय के महासागर में एक बूंद
सनातन धर्म की कालगणना हमें यह सिखाती है कि जीवन अत्यंत क्षणिक है और ब्रह्मांड अनंत। यह ज्ञान न केवल जिज्ञासा तृप्त करता है, बल्कि आत्मबोध का भी द्वार खोलता है।
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