काशी का ज्ञानवापी: 1868 की दुर्लभ तस्वीर — Samuel Bourne Gyanvapi photograph
चित्र: Samuel Bourne (1868) — (मूल छवि संग्रहों/म्यूजियम में सुरक्षित)
परिचय — Samuel Bourne Gyanvapi photograph और काशी
काशी की पवित्र नगरी हमेशा से आस्था, संस्कृति और विवादों का संगम रही है। गंगा के तट पर बसी यह धरती सदियों से सनातन परंपराओं का केंद्र रही, जहां हर कोना कोई न कोई रहस्य समेटे हुए है। इनमें से एक है ज्ञानवापी – वह स्थान जो आज गंगा-जमुनी तहजीब का प्रतीक माना जाता है, लेकिन जिसकी जड़ें प्राचीन मंदिर परंपरा से जुड़ी बताई जाती हैं। ब्रिटिश फोटोग्राफर सैमुअल बॉर्न द्वारा 1868 में खींची गई एक दुर्लभ तस्वीर इस जगह को एक अलग ही नजरिए से दिखाती है। उस समय का यह चित्र स्पष्ट रूप से मंदिर जैसी भव्य संरचना को उजागर करता है, जो ऊंचे शिखरों, नक्काशीदार स्तंभों और पारंपरिक हिंदू स्थापत्य से सुसज्जित नजर आती है। आज वही स्थान मस्जिद के रूप में जाना जाता है, जहां हिंदू-मुस्लिम सद्भाव की मिसालें गढ़ी जाती रही हैं। यह तस्वीर न सिर्फ इतिहास की गवाही देती है, बल्कि हमें सोचने पर मजबूर करती है कि समय कैसे स्थानों को नया रूप दे देता है।
सैमुअल बॉर्न: भारत के प्राचीन धरोहरों का कैमरा आर्टिस्ट
सैमुअल बॉर्न कोई साधारण फोटोग्राफर नहीं थे। 1834 में इंग्लैंड में जन्मे इस ब्रिटिश कलाकार ने 1863 से 1870 तक भारत की यात्रा की और करीब दो हजार दुर्लभ तस्वीरें खींचीं। वे वेट प्लेट कोलोडियन प्रक्रिया का इस्तेमाल करते थे, जो उस दौर में बेहद जटिल और श्रमसाध्य थी। 10×12 इंच की प्लेट कैमरा लादे वे हिमालय की ऊंचाइयों से लेकर गंगा के घाटों तक पहुंचे। काशी उनकी यात्रा का एक महत्वपूर्ण पड़ाव था। 1868 में बनारस (अब वाराणसी) आकर उन्होंने ज्ञानवापी परिसर की तस्वीरें लीं, जो आज अमेरिका के म्यूजियमों और गेटी इमेज जैसे संग्रहों में सुरक्षित हैं। इन तस्वीरों में नक्काशीदार स्तंभ, मेहराबें और मूर्तियां स्पष्ट दिखती हैं, जो हिंदू मंदिरों की विशेषताओं से मेल खाती हैं। बॉर्न की ये तस्वीरें न सिर्फ तकनीकी रूप से उत्कृष्ट हैं, बल्कि वे औपनिवेशिक काल में भारत की सांस्कृतिक विविधता को जीवंत कर देती हैं। उनकी कला इतनी बारीक थी कि वे स्थानीय जीवन, वास्तुकला और प्रकृति को एक साथ कैद कर लेते थे। काशी विश्वनाथ के आसपास के घाट, आलमगीरी मस्जिद और नंदी की प्रतिमा जैसी संरचनाएं उनकी लेंस में कैद हुईं, जो आज इतिहासकारों के लिए अमूल्य दस्तावेज हैं।
काशी का प्राचीन वैभव: ज्ञानवापी की जड़ें कहां से जुड़ीं?
काशी को शिव का त्रिशूल माना जाता है, जहां ज्ञानवापी एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। पुराणों और प्राचीन ग्रंथों में इसका उल्लेख ‘ज्ञानवापी’ के रूप में मिलता है, जिसका अर्थ है ज्ञान का कुआं। मान्यता है कि यहां शिवलिंग प्रकट हुआ था और भक्तों को ज्ञान की प्राप्ति हुई। इतिहासकार बताते हैं कि विक्रमादित्य जैसे राजाओं ने यहां भव्य मंदिर बनवाए। मध्यकाल में मुहम्मद गौरी के आक्रमण से लेकर औरंगजेब तक कई घटनाओं ने इस स्थान को प्रभावित किया। 1669 में औरंगजेब के आदेश पर मंदिर तोड़कर मस्जिद का निर्माण कराया गया, ऐसा कई स्रोतों में वर्णन है। इसके बाद 1585 में टोडरमल और नारायण भट्ट ने पुनर्निर्माण का प्रयास किया, लेकिन शाहजहां ने उसे रोका। 18वीं शताब्दी में अहिल्याबाई होल्कर ने पास में नया काशी विश्वनाथ मंदिर बनवाया। बॉर्न की तस्वीरें ठीक इसी दौर की हैं – जब मस्जिद बनी हुई थी, लेकिन दीवारों पर देवी-देवताओं के चित्र, हिंदू प्रतीक और नक्काशियां अब भी मौजूद थीं। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अशोक कुमार सिंह जैसे विद्वान कहते हैं कि ये अवशेष मंदिर के प्रमाण हैं। यह तस्वीरें नीलामी और म्यूजियमों में मिलीं, जहां ज्ञानवापी के अंदरूनी हिस्से को ‘वेल ऑफ नॉलेज’ कहा गया। नंदी की प्रतिमा आज भी मस्जिद की ओर देख रही है, जैसे प्रभु का इंतजार कर रही हो।
गंगा-जमुनी तहजीब: विविधता में एकता की मिसाल
ज्ञानवापी का महत्व सिर्फ ऐतिहासिक नहीं, सांस्कृतिक भी है। काशी की गलियों में मंदिरों की घंटियां और मस्जिदों की अजान एक साथ गूंजती रही हैं। यह गंगा-जमुनी तहजीब का प्रतीक है, जहां हिंदू और मुस्लिम दोनों अपनी आस्था निभाते आए हैं। स्वतंत्र भारत में 1936-37 के फैसले ने इसे मस्जिद घोषित किया, लेकिन 1991 में हिंदू पक्ष ने अदालत में याचिका दायर की। आज सर्वे और ASI जांच चल रही है, जो पुरातात्विक साक्ष्यों की तलाश में हैं। बॉर्न की तस्वीरें इस बहस में महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि वे निष्पक्ष रूप से उस समय की स्थिति दिखाती हैं। काशी की यह तहजीब हमें सिखाती है कि विवादों के बीच भी सह-अस्तित्व संभव है। वाराणसी के घाटों पर सुबह की पूजा और शाम की नमाज एक ही गंगा को समर्पित हैं। यह जगह सद्भाव की मिसाल है, जहां पर्यटक, तीर्थयात्री और इतिहास प्रेमी आते हैं।
तस्वीर का महत्व: इतिहासकारों और शोधकर्ताओं की नजर में
बॉर्न की यह तस्वीर अमेरिका के म्यूजियम ऑफ फाइन आर्ट्स और गेटी इमेज जैसे संग्रहों में सुरक्षित है। इसमें तीन नक्काशीदार स्तंभ, खोदी गई मेहराब और मूर्तियां स्पष्ट हैं। मीडिया रिपोर्ट्स में इसे वायरल होते देखा गया, जो ज्ञानवापी विवाद के दौरान चर्चा में आई। प्राचीन इतिहास विशेषज्ञों का मानना है कि ये तस्वीरें मंदिर अवशेषों की पुष्टि करती हैं। काशी विश्वनाथ धाम का नया कॉरिडोर आज लाखों भक्तों को आकर्षित करता है, लेकिन ज्ञानवापी का रहस्य अब भी अनसुलझा है। ये फोटो न सिर्फ दृश्य साक्ष्य हैं, बल्कि औपनिवेशिक काल की कला का नमूना भी। वे हमें याद दिलाती हैं कि इतिहास को संरक्षित रखना जरूरी है, ताकि आने वाली पीढ़ियां सच्चाई जान सकें।
वर्तमान संदर्भ: सर्वे, अदालत और आस्था का मेल
आज ज्ञानवापी सर्वे के दौर में ये तस्वीरें फिर सुर्खियों में हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर ASI ने जांच की, जहां मंदिर जैसे अवशेष मिलने की बात कही गई। हिंदू पक्ष का दावा है कि मूल मंदिर 2050 साल पुराना था, जबकि मुस्लिम पक्ष मस्जिद की वैधता पर जोर देता है। यह विवाद सांस्कृतिक विरासत और कानूनी अधिकारों का मिश्रण है। काशी की आध्यात्मिक ऊर्जा में ये बहसें शामिल हैं, लेकिन शहर का सद्भाव बरकरार है। बॉर्न की तस्वीरें निष्पक्ष गवाह हैं, जो भावनाओं से ऊपर उठकर तथ्यों को सामने लाती हैं।
काशी की विरासत: भविष्य के लिए संदेश
काशी सिर्फ मंदिर-मस्जिद नहीं, जीवन दर्शन है। ज्ञानवापी हमें सिखाता है कि अतीत को समझना ही प्रगति है। सैमुअल बॉर्न जैसे कलाकारों ने इसे संजोया, अब हमारी जिम्मेदारी है इसे संरक्षित रखना। चाहे आस्था हो या इतिहास, काशी सबको गले लगाती है। यह तस्वीर हमें विविधता में एकता का पैगाम देती है। क्या आप काशी गए हैं? अपनी कहानी शेयर करें। #Kashi #Gyanvapi #HistoryUnveiled #भारतीयसंस्कृति #SamuelBourne
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निष्कर्ष — Samuel Bourne Gyanvapi photograph का महत्व
बॉर्न की यह तस्वीर ऐतिहासिक साक्ष्य के रूप में महत्वपूर्ण है। शोध और न्यायिक प्रक्रियाएँ जारी हैं, परन्तु इस प्रकार के ऐतिहासिक दस्तावेज़ हमें अतीत की समझ गहरा करने में मदद करते हैं। विस्तृत रिसर्च के लिए आप साइट पर उपलब्ध अन्य लेख देख सकते हैं: AzaadBharat.org.
संदर्भ (उदाहरण): Getty Images (संग्रह जिनमें बॉर्न की तस्वीरें हो सकती हैं)।
