Rockefeller Flexner Report और आधुनिक मेडिकल साज़िश: 1910 से आज तक का छुपा इतिहास
20वीं सदी में विज्ञान, तकनीक और शिक्षा ने अभूतपूर्व प्रगति की, लेकिन एक कड़वा तथ्य सामने है कि
बीमारियाँ कम होने के बजाय और अधिक जटिल और दीर्घकालिक होती चली गईं। अस्पताल, डॉक्टर और मशीनें
बढ़ रहे हैं, लेकिन वास्तव में स्वस्थ लोगों की संख्या घटती दिख रही है। आज लगभग हर परिवार में कोई
न कोई सदस्य शुगर, बीपी, थायरॉइड, कोलेस्ट्रॉल, PCOD, माइग्रेन या दूसरी ऐसी बीमारी से जूझ रहा है,
जिसके लिए वर्षों या पूरी ज़िंदगी दवाओं पर निर्भर रहना पड़ता है। इसी संदर्भ में
Rockefeller Flexner Report का उल्लेख बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि 1910 की
यह रिपोर्ट आधुनिक मेडिकल शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था के ढांचे को गहराई से बदलने वाली साबित हुई।
यह लेख AzaadBharat.org की विचारधारा के अनुरूप चिकित्सा के
व्यापारीकरण, वैकल्पिक चिकित्सा के दमन और आजीवन दवा-निर्भरता के मॉडल के पीछे छुपे ऐतिहासिक कारकों
का विश्लेषण करता है। Rockefeller Flexner Report को केंद्र में रखकर यह समझने का प्रयास किया गया है
कि कैसे चिकित्सा सेवा से हटकर धीरे-धीरे वैश्विक उद्योग में बदलती चली गई।
Rockefeller Flexner Report से पहले का स्वास्थ्य दृष्टिकोण और चिकित्सा की वास्तविक भूमिका
1910 से पहले विश्व के अनेक समाजों में चिकित्सा का मूल स्वरूप स्वाभाविक रूप से सेवा-प्रधान था। भारत में
आयुर्वेद, सिद्ध, योग, रसशास्त्र, यूनानी, वनौषधियाँ और लोक-चिकित्सा केवल “वैकल्पिक” नहीं, बल्कि मुख्यधारा
मानी जाती थीं। चीन में हर्बल और एक्यूपंक्चर, तिब्बती क्षेत्रों में अपनी विशिष्ट चिकित्सा परंपराएँ और यूरोप
में होम्योपैथी एवं अन्य प्राकृतिक उपचार पद्धतियाँ व्यापक रूप से प्रचलित थीं। इन सबका दृष्टिकोण यह था कि
रोग केवल दबाया न जाए, बल्कि जड़ से समाप्त हो, और रोगी की जीवनशैली ऐसी हो जो उसे भविष्य के रोगों से भी
बचाती रहे।
उस समय उपचार का लक्ष्य दीर्घकालिक स्वास्थ्य था, न कि केवल तात्कालिक आराम। चिकित्सक समाज में सम्मानित
सेवक माने जाते थे, न कि किसी विशाल कॉर्पोरेट सिस्टम का हिस्सा। चिकित्सा शिक्षा अपेक्षाकृत सुलभ थी,
दवाएँ स्थानीय जड़ी-बूटियों और रसोई के सामान से तैयार होती थीं और बीमारी के साथ-साथ व्यक्ति के आहार,
व्यवहार, दिनचर्या और मानसिक स्थिति पर भी ध्यान दिया जाता था।
प्राकृतिक चिकित्सा का सबसे बड़ा गुण यह था कि अधिकांश औषधियाँ स्थानीय प्रकृति से मिल जाती थीं, उन पर
किसी एकाधिकार की गुंजाइश नहीं थी। यही कारण था कि स्वास्थ्य व्यवस्था समाज के भीतर ही निहित थी और
कोई विशाल, केंद्रीकृत “मेडिकल इंडस्ट्री” खड़ी नहीं हो पाई थी।
1910 का मोड़: Rockefeller Flexner Report और मेडिकल शिक्षा की दिशा में बदलाव
20वीं सदी की शुरुआत में अमेरिकी उद्योगपति जॉन डी. रॉकफेलर के लिए पेट्रोलियम केवल ईंधन नहीं, बल्कि
रसायनों का एक विशाल स्रोत था। वैज्ञानिक प्रगति के साथ यह स्पष्ट होता जा रहा था कि पेट्रो-केमिकल
यौगिकों से अनेक प्रकार की सिंथेटिक दवाएँ तैयार की जा सकती हैं। यदि चिकित्सा इन दवाओं पर आधारित की जाए,
तो यह एक अत्यंत लाभदायक उद्योग बन सकता था। लेकिन इसके सामने एक बड़ी बाधा थी—प्राकृतिक औषधियाँ पेटेंट
नहीं की जा सकतीं और उन पर किसी कंपनी का पूर्ण नियंत्रण स्थापित नहीं हो सकता।
हल्दी, अश्वगंधा, नीम, तुलसी, अदरक, लौंग जैसी औषधियाँ सदियों से उपयोग में रही हैं, पर इनके सूत्रों पर
किसी कॉर्पोरेट का अधिकार नहीं हो सकता। ऐसे में यदि चिकित्सा प्राकृतिक पद्धतियों पर आधारित रहे, तो
पेट्रो-केमिकल दवा उद्योग के लिए विशाल मुनाफ़ा कमाना कठिन होता। ठीक यही वह बिंदु है जहाँ से Rockefeller
Flexner Report जैसी पहलें महत्वपूर्ण बन जाती हैं, क्योंकि इन्होने मेडिकल शिक्षा और स्वास्थ्य ढाँचे को
नए सिरे से परिभाषित किया।
Carnegie Foundation के बैनर तले प्रकाशित Flexner Report ने अमेरिका और कनाडा की मेडिकल शिक्षा की
व्यापक समीक्षा करते हुए यह कहा कि चिकित्सा शिक्षा को “वैज्ञानिक” बनाने के लिए कठोर मानक और केंद्रीकृत
नियंत्रण आवश्यक हैं।:contentReference[oaicite:3]{index=3} इस “वैज्ञानिकता” की परिभाषा में वही चिकित्सा
फिट बैठती थी जो प्रयोगशाला आधारित, रसायन-प्रधान और पेट्रो-केमिकल औषधियों पर केंद्रित हो। इसने उन
संस्थानों को प्रोत्साहन दिया जो इसी मॉडल को अपनाते थे, जबकि वैकल्पिक और प्राकृतिक चिकित्सा विद्यालयों
को पिछड़ा और अवैज्ञानिक बताया गया।:contentReference[oaicite:4]{index=4}
Rockefeller Flexner Report और medical education पर नियंत्रण की प्रक्रिया
Flexner Report के बाद मेडिकल शिक्षा में कई प्रमुख बदलाव हुए। अनेक छोटे, निजी मेडिकल स्कूल या तो
बंद कर दिए गए या बड़े विश्वविद्यालयों में विलय हो गए।:contentReference[oaicite:5]{index=5} प्रवेश मानक कठोर हुए,
पढ़ाई महँगी हुई और सिलेबस इस प्रकार तैयार किया गया कि भविष्य के चिकित्सक मुख्यतः दवाओं और
सर्जरी-आधारित उपचार प्रणाली में ही प्रशिक्षित हों। इस प्रक्रिया में होम्योपैथी, हर्बल मेडिसिन और अन्य
“alternative medicine” वाले संस्थान क्रमशः बंद होते गए या हाशिये पर चले गए।:contentReference[oaicite:6]{index=6}
इसी समय Rockefeller फाउंडेशन ने मेडिकल कॉलेजों, अनुसंधान संस्थानों और अस्पतालों को बड़े पैमाने पर
फंडिंग दी, जिससे Flexner की दृष्टि और अधिक प्रभावशाली बन सकी।:contentReference[oaicite:7]{index=7} मेडिकल
शिक्षा की यह “आधुनिकीकरण प्रक्रिया” बाहर से देखने में सुधार लगती थी, लेकिन इसके परिणामस्वरूप
चिकित्सा का चरित्र धीरे-धीरे सेवा से उद्योग की ओर खिसक गया।
इस समूचे बदलाव का सार यह था कि Rockefeller Flexner Report ने मेडिकल शिक्षा को इस दिशा में मोड़ा,
जहाँ डॉक्टरों की प्राथमिक भूमिका प्राकृतिक उपचारों, जीवनशैली सुधार और समग्र स्वास्थ्य की बजाय
दवाओं के दीर्घकालिक उपयोग को “स्टैण्डर्ड ऑफ केयर” के रूप में स्वीकारना बन गई।
आधुनिक मेडिकल सिस्टम का मॉडल: रोग समाप्त नहीं, रोग प्रबंधन
आज की चिकित्सा व्यवस्था को देखें तो अधिकांश दीर्घकालिक रोगों—जैसे डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर,
थायरॉइड, कॉलेस्ट्रॉल, एलर्जी और माइग्रेन—के लिए दी जाने वाली दवाएँ रोग को जड़ से समाप्त नहीं करतीं,
बल्कि लक्षणों को नियंत्रित करती हैं। मरीज को बताया जाता है कि दवा “जीवन भर” लेनी होगी। परिणामस्वरूप
व्यक्ति स्वस्थ होने के बजाय दवा-निर्भर जीवनशैली का आदी बनता चला जाता है।
यह मॉडल व्यवसायिक दृष्टि से अत्यंत लाभदायक है, क्योंकि एक ऐसा मरीज जो पूरी तरह ठीक हो जाए,
उद्योग के लिए “खत्म हो चुका ग्राहक” है। वहीं, एक ऐसा मरीज जो लंबे समय तक दवाओं पर निर्भर रहे,
चिकित्सा उद्योग के लिए स्थायी राजस्व का स्रोत बन जाता है। Rockefeller Flexner Report के
प्रभाव से निर्मित चिकित्सा ढाँचे में यह सोच अनजाने में सही, पर गहराई से समाई हुई दिखाई देती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) स्वास्थ्य प्रणाली को उन सभी संस्थाओं, लोगों और क्रियाओं का समूह मानता
है जिनका उद्देश्य स्वास्थ्य को बढ़ावा देना, पुनर्स्थापित करना या बनाए रखना है।:contentReference[oaicite:8]{index=8}
लेकिन व्यावहारिक स्तर पर नीति, वित्तपोषण और उद्योग-हितों के कारण कई देशों की स्वास्थ्य प्रणालियाँ
“स्वस्थ समाज” के बजाय “दवा-निर्भर समाज” की दिशा में बढ़ती नज़र आती हैं।
सत्य क्यों छिपा रहा? प्राकृतिक चिकित्सा को “अवैज्ञानिक” घोषित करने की प्रक्रिया
यदि आम जनता यह समझ ले कि बहुत से रोग सही आहार, संतुलित जीवनशैली, योग, प्राणायाम और आयुर्वेदिक
सिद्धांतों के अनुसार चलने से जड़ से कम किए जा सकते हैं, तो महँगी दवाओं और दीर्घकालिक औषधि-निर्भरता
की आवश्यकता स्वाभाविक रूप से घट जाएगी। यही वह कारण है कि पिछले सौ वर्षों में एक नैरेटिव लगातार
दोहराया गया—आयुर्वेद धीमा है, प्राकृतिक चिकित्सा अविश्वसनीय है, दादी-नानी के नुस्खे “साइंटिफिक” नहीं हैं।
Flexner Report के बाद जिन वैकल्पिक चिकित्सा कॉलेजों को बंद किया गया, या बदनाम किया गया, उनके साथ
यह धारणा जोड़ दी गई कि वे “पिछड़ी” और “अप्रमाणित” प्रणालियाँ हैं।:contentReference[oaicite:9]{index=9}
जबकि ऐतिहासिक रूप से देखा जाए तो आयुर्वेद और अन्य पारंपरिक पद्धतियाँ कई हजार वर्षों की प्रेक्षणीय
और व्यावहारिक परंपरा पर आधारित हैं। आधुनिक शोध जगत में भी अनेक जड़ी-बूटियों पर किए गए अध्ययन
उनके औषधीय गुणों की पुष्टि कर रहे हैं।
यहाँ यह स्वीकार करना आवश्यक है कि प्राकृतिक और आधुनिक चिकित्सा दोनों के अपने-अपने क्षेत्र हैं।
गंभीर आपात स्थितियों, सर्जरी, ट्रॉमा आदि में आधुनिक चिकित्सा अनिवार्य है, लेकिन दीर्घकालिक
जीवनशैली-जनित रोगों में केवल दवाओं पर निर्भर रहना, बिना जीवनशैली सुधार के, दीर्घकाल में
स्वास्थ्य के लिए चुनौती बन सकता है।
स्वास्थ्य का वास्तविक समाधान: चिकित्सा को फिर से सेवा और समग्रता की दिशा में ले जाना
यह लेख किसी एक चिकित्सा पद्धति को पूर्ण और अन्य को निरर्थक घोषित करने के लिए नहीं लिखा गया है।
उद्देश्य यह दिखाना है कि Rockefeller Flexner Report जैसे दस्तावेजों के माध्यम से वैश्विक चिकित्सा
ढाँचे को जिस प्रकार पुनर्गठित किया गया, उसका परिणाम यह हुआ कि व्यापार और उद्योग के आयाम
कहीं अधिक मजबूत हो गए, जबकि “समग्र स्वास्थ्य सेवा” का दृष्टिकोण पीछे चला गया।
आज आवश्यकता इस बात की है कि हम स्वास्थ्य को केवल “दवा-प्राप्ति” तक सीमित न देखें, बल्कि उसे
आहार, दिनचर्या, मानसिक संतुलन, सामाजिक परिवेश और प्रकृति के साथ सामंजस्य की व्यापक प्रक्रिया के
रूप में समझें। आयुर्वेद का “स्वस्थ व्यक्ति” का वर्णन केवल रोग न होने से नहीं, बल्कि शरीर, मन और
आत्मा के संतुलन से जुड़ा है। यह दृष्टिकोण आधुनिक स्वास्थ्य विमर्श को महत्वपूर्ण संतुलन प्रदान कर सकता है।
नीतिगत स्तर पर भी यह आवश्यक है कि स्वास्थ्य प्रणालियाँ केवल दवाओं की आपूर्ति पर केंद्रित न होकर
रोग-निवारण, स्वास्थ्य शिक्षा और जीवनशैली-आधारित समाधान पर बल दें। WHO स्वयं भी स्वास्थ्य
प्रणाली के सुदृढ़ीकरण में समुदाय-आधारित, प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल को एक प्रमुख स्तंभ मानता है।:contentReference[oaicite:10]{index=10}
निष्कर्ष: Rockefeller Flexner Report के संदर्भ में स्वास्थ्य की पुनर्व्याख्या
कुल मिलाकर, Rockefeller Flexner Report ने 1910 के बाद की मेडिकल शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था में
एक गहरा और स्थायी प्रभाव छोड़ा। आधुनिक मेडिकल सिस्टम के अनेक सकारात्मक पक्ष हैं—बेहतर सर्जरी,
इमरजेंसी केयर, इन्फेक्शियस डिजीज कंट्रोल आदि—लेकिन साथ ही यह भी स्पष्ट है कि दीर्घकालिक रोगों के
मामले में “आजीवन दवा-निर्भरता” का मॉडल स्वास्थ्य के लिए आदर्श नहीं कहा जा सकता।
आज आवश्यक है कि हम इतिहास को समझते हुए चिकित्सा के उद्देश्य की पुनर्परिभाषा करें—क्या लक्ष्य केवल
रोग प्रबंधन है या वास्तविक स्वास्थ्य? यदि लक्ष्य वास्तविक स्वास्थ्य है, तो हमें प्राकृतिक चिकित्सा,
आयुर्वेद, योग, समग्र जीवनशैली और आधुनिक चिकित्सा के संतुलित संयोजन की ओर बढ़ना होगा।
इस विमर्श में Rockefeller Flexner Report को समझना इसलिए आवश्यक है, क्योंकि यह हमें दिखाती है
कि नीतिगत स्तर पर लिए गए निर्णय कैसे पूरी मानवता की स्वास्थ्य दिशा बदल सकते हैं।
पाठक के रूप में हमारा अगला कदम यह हो सकता है कि हम अपने स्वास्थ्य संबंधी निर्णयों में अधिक
जागरूक, प्रश्नकर्ता और समग्र दृष्टि वाले बनें—ताकि चिकित्सा पुनः सेवा, संतुलन और वास्तविक
स्वास्थ्य की ओर लौट सके।
