राम नाम सत्य है: एक ऐतिहासिक और आध्यात्मिक प्रसंग

03 March 2025

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राम नाम सत्य है: एक ऐतिहासिक और आध्यात्मिक प्रसंग

 

सनातन संस्कृति में “राम नाम सत्य है” का विशेष महत्व है। यह वाक्य आमतौर पर अंतिम यात्रा में सुना जाता है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यह परंपरा कब और कैसे शुरू हुई? इसके पीछे एक अत्यंत प्रेरणादायक और चमत्कारिक कथा है, जो संत तुलसीदासजी से जुड़ी हुई है।

 

तुलसीदास जी और राम भक्ति

 

संत गोस्वामी तुलसीदास जी भगवान श्रीराम के अनन्य भक्त थे। वे अपने गांव में राम भक्ति में लीन रहते थे, लेकिन उनके परिवार और गांववालों ने उन्हें ढोंगी कहकर घर से निकाल दिया। इसके बाद तुलसीदास जी गंगा जी के घाट पर रहने लगे और वहीं प्रभु की भक्ति और रामचरितमानस की रचना में लीन हो गए।

 

शादी, मृत्यु और चमत्कार

 

इसी दौरान, तुलसीदास जी के गांव में एक युवक की शादी हुई। वह अपनी नवविवाहित पत्नी को लेकर घर आया, लेकिन दुर्भाग्यवश रात में ही उसकी मृत्यु हो गई। घरवाले शोक में डूब गए और सुबह उसकी अर्थी को श्मशान घाट ले जाने लगे। नवविवाहिता पत्नी ने सती होने का निर्णय लिया और अर्थी के पीछे-पीछे चल पड़ी।

 

रास्ते में उनकी मुलाकात तुलसीदास जी से हुई। जब उस नवविवाहिता की नजर तुलसीदास जी पर पड़ी, तो उसने प्रणाम करने का निश्चय किया। वह नहीं जानती थी कि ये तुलसीदास हैं। जैसे ही उसने उनके चरण छुए, तुलसीदास जी ने उसे “अखंड सौभाग्यवती भव” का आशीर्वाद दे दिया।

 

यह सुनकर वहां उपस्थित लोग हंसने लगे और बोले, “तुलसीदास, तुम तो मूर्ख हो। इसका पति मर चुका है, फिर यह अखंड सौभाग्यवती कैसे हो सकती है?” लोगों ने उनका उपहास किया और कहा, “तू भी झूठा और तेरा राम भी झूठा!”

 

राम नाम की महिमा

 

तुलसीदास जी ने कहा, “मैं झूठा हो सकता हूँ, लेकिन मेरे राम कभी झूठे नहीं हो सकते।” लोगों ने चुनौती दी कि यदि राम का नाम सत्य है तो इसका प्रमाण दो।

 

तुलसीदास जी ने अर्थी को रुकवाया और मृतक युवक के कान में धीरे से कहा, “राम नाम सत्य है!” यह सुनते ही युवक का शरीर हिलने लगा।

 

फिर दूसरी बार उन्होंने उसके कान में कहा, “राम नाम सत्य है!” इस बार युवक को चेतना आने लगी।

 

तीसरी बार उन्होंने दोहराया, “राम नाम सत्य है!” और चमत्कार हुआ! युवक ने अपनी आँखें खोल दीं और अर्थी से उठकर बैठ गया।

 

परंपरा की शुरुआत

 

यह देखकर सभी लोगों को अत्यंत आश्चर्य हुआ। वे तुलसीदास जी के चरणों में गिरकर क्षमा मांगने लगे। तब तुलसीदास जी बोले, “यदि आप लोग इस रास्ते से नहीं आते, तो मेरे राम के नाम की सत्यता का प्रमाण कैसे मिलता? यह सब श्रीराम की ही लीला थी।”

 

इसी घटना के बाद से यह प्रथा शुरू हुई कि किसी मृत व्यक्ति की अंतिम यात्रा में “राम नाम सत्य है” बोला जाता है।

 

राम नाम की शक्ति

 

यह कथा हमें यह सिखाती है कि भगवान का नाम मात्र लेने से असंभव भी संभव हो सकता है। यदि सच्चे मन से राम का नाम लिया जाए, तो जीवन में कोई भी बाधा बड़ी नहीं रहती। तुलसीदास जी के इस चमत्कार ने यह सिद्ध कर दिया कि राम नाम सत्य ही नहीं, बल्कि परम शक्ति का स्रोत भी है।

 

जय श्रीराम!

 

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