28 जनवरी 2022
azaadbharat.org
फिजिक्स के प्रोफेसर नीरज अत्रि ने कक्षा 6 से 12 तक NCERT की हिस्ट्री बुक्स के अध्ययन का निश्चय किया और उन्होंने पाया कि लगभग 110 बातें ऐसी हैं जो संदिग्ध हैं…
NCERT की Book में लिखा है कि दो सुल्तानों- कुतुबुद्दीन ऐबक और इल्लतुतमिश ने वो मीनार बनवाया था जिसे आज कुतुब मीनार कहा जाता है।
इसपर प्रोफेसर साहब ने RTI लगाया कि NCERT ने इस तथ्य को कहाँ से सत्यापित किया है? सत्यापित करने वाले लोग कौन थे?
इसपर NCERT की तरफ से उत्तर आया है कि
– विभाग के पास कोई सत्यापित प्रति उपलब्ध नहीं है।
– इस पुस्तक को Professor Mrinal Miri ने approve किया था, जो National Monitoring Committee का हेड था।
मृणाल मीरी शिलांग का एक ईसाई है जिसे कांग्रेस ने 12 सालों तक राज्यसभा में नॉमिनेट किया था। कांग्रेस राज के दौरान यह कई मलाईदार पदों पर था और कम्युनिस्ट-चर्च के गठजोड़ से इसने भारतीय इतिहास में कई झूठे तथ्य जोड़े जो आज भी बच्चों को पढ़ाए जाते हैं जिसका कोई सुबूत किसी के पास नहीं है।
जैसे- कक्षा 6, सामाजिक विज्ञान के पृष्ठ 46 पर ऋग्वेद के आधार पर भारत के बारे में लिखा है, “आर्यों द्वारा कुछ लड़ाइयां मवेशी और जलस्रोतों की प्राप्ति के लिए लड़ी जाती थीं, कुछ लड़ाइयां मनुष्यों को बंदी बनाकर बेचने-खरीदने के लिए भी लड़ी जाती थीं।”
स्पष्ट है कि किताब लिखने वाला यह साबित करना चाहता है कि भारत में भी गुलाम प्रथा थी और मनुष्यों को खरीदने बेचने की जो बातें बाइबल और कुरान में हैं वे कोई नई नहीं हैं, बल्कि वैसा ही अमानवीय व्यवहार भारत में भी होता था।
ऐसे ही, वे आगे लिखते हैं, “युद्ध में जीते गये धन का एक बड़ा हिस्सा सरदार और पुरोहित रख लेते थे, शेष जनता में बांट दिया जाता था।” यहां भी मुहम्मद के गजवों को जस्टिफाई करने की भूमिका बनाई गई है।
आगे एक जगह लिखा है, “पुरोहित यज्ञ करते थे और अग्नि में घी, अन्न के साथ कभी कभी जानवरों की भी आहुति दी जाती थी।”
आगे पृष्ठ 60 पर लिखा है, “खेती की कमरतोड़ मेहनत के लिए दास और दासी को उपयोग में लाया जाता था।”
तब उन प्रोफेसर ने पहले तो स्वयं अध्ययन किया और मेगास्थनीज की इंडिका आदि के आधार पर यह सिद्ध हुआ कि ये सब मनगढ़ंत लिखा जा रहा है, तब उन्होंने NCERT में RTI डाली कि इन बातों का आधार क्या है??? आप हिस्ट्री लिख रहे हैं, रेफरेंस कहाँ हैं? ऋग्वेद की सम्बंधित ऋचाएं, अनुवाद बताया जाए और यदि नहीं है तो खंडन या सुधार किया जाए।
जानकर आश्चर्य होगा कि NCERT ने सभी 110 प्रश्नों का एक ही जवाब दिया कि हमारे पास इसका कोई प्रूफ नहीं है। इसके अलावा जवाब टालने और लटकाने का रवैया रखा। कई वर्ष ऐसे ही बीत गए। हारकर वे पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट में गये कि NCERT हमें इनका जवाब नहीं दे रही।
कोर्ट ने पिटीशन स्वीकार कर लिया और NCERT को जवाब देने के लिए कहा। तब NCERT ने कहा कि हमारी सभी पुस्तकों का लेखन जेएनयू के हिस्ट्री के प्रोफेसर ने किया है और हमने उन्हें जवाब के लिए कह दिया है। लगभग एक वर्ष बाद जेएनयू के लेखकों ने जवाब दिया कि हमने इन बातों के लिए ऋग्वेद के अनुवाद का सहारा लिया है।
ऋग्वेद में इंद्र को एक योद्धा बताया गया है और उसमें आये नरजित शब्द से यह साबित होता है कि वे लूटपाट करते थे और मनुष्यों को गुलाम बनाते थे।
इसपर इस प्रोफेसर ने संस्कृत के जानकारों को वे मंत्र बताकर पूछा कि क्या इनका यही अर्थ होता है जो जेएनयू के प्रोफेसर ने किया है?
संस्कृत के विद्वानों ने एक स्वर में कहा कि जेएनयू वालों का अर्थ मनमाना, कहीं कहीं तो मूल कथ्य से बिल्कुल उलटा है।
इसपर कोर्ट ने इन्हें पूछा कि क्या आप संस्कृत जानते हैं? आपने यह अनुवाद कहाँ से उठाया???
तो जेएनयू के कथित इतिहासकारों ने कहा कि वे संस्कृत का ‘स’ भी नहीं जानते, उन्होंने एक बहुत पुराने अंग्रेज लेखक के ऋग्वेद के अनुवाद का इस्तेमाल किया है।
कोर्ट- “और जो आपने लिखा है कि लूट के माल को ब्राह्मण आदि आपस में बांट लेते थे, उसका आधार क्या है?”
जेएनयू के प्रोफेसर- “चूंकि ऋग्वेद में अग्नि का वर्णन है और अग्नि को पुरोहित कहा गया है तो इसका अर्थ यही है कि जो जो अग्नि को समर्पित किया जा रहा है मतलब पुरोहित आपस में बांट रहे हैं।”
अब जेएनयू के इतिहासकारों और NCERT के इन तर्कों पर माथा पीटने के सिवाय कोई चारा नहीं है और वे शायद यही चाहते हैं कि हम माथा पीटते रहें!!
NCERT आगे कक्षा 11 की हिस्ट्री में लिखती है- “गुलामी प्रथा यूरोप की एक सच्चाई थी और ईसा की चतुर्थ शताब्दी में जबकि रोमन साम्राज्य जिसका राजधर्म भी ईसाई था, गुलामों के सुधार पर कुछ खास नहीं कर सका।
यहां NCERT के लिखने के तरीके से छात्र यह समझते होंगे कि ईसाई धर्म गुलामी के खिलाफ है। जबकि सच्चाई यह है कि एक चौथाई बाइबल इन्हीं बातों से भरी हुई है कि गुलाम कैसे बनाने हैं, उनके साथ कितना यौन व्यवहार करना है, उन्हें कब कब मार सकते हैं- वगैरह वगैरह।
सच्चाई यह है कि NCERT के 2006 के पाठ्यक्रम का एक मात्र उद्देश्य था- हिन्दू धर्म को जबरदस्ती बदनाम करना, यानि जो नहीं है उसे भी हिंदुओं से जोड़कर प्रस्तुत करना और ईसाइयों की बुराइयों पर पर्दा डालकर भारत में उसके प्रचार के अनुकूल वातावरण बनाना।
तत्कालीन सरकार मंडली ने पूरी साजिश कर उक्त पाठ्यक्रम की रचना की थी और आज विगत 16 वर्ष से वही पुस्तकें चल रही हैं, एक अक्षर तक नहीं बदला गया।
लेकिन अफसोस इस बात का है कि वर्तमान केंद्र सरकार पिछले सात-आठ साल में भी पाठ्यक्रम नहीं बदल पाई।
सिर्फ चुनाव में हिंदू याद आता है।
धर्मांतरण, गौवध, समान नागरिक संहिता का अभाव, हिंदू विरोधी पाठ्यक्रम… यह सभी समास्याएं जस की तस ही हैं।
जनता की मांग है कि पाठ्यक्रम में शीघ्र सुधार किया जाए।
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