10 July 2025
पारिजात वृक्ष: एक दिव्य, दुर्लभ और चमत्कारी उपहार
पारिजात वृक्ष एक ऐसा दुर्लभ और पवित्र वृक्ष है जो सबसे अप्रत्याशित और सीमित स्थानों पर पाया जाता है। इसकी दिव्यता और महत्ता को समझना कठिन नहीं, क्योंकि इस वृक्ष से जुड़ी पौराणिक मान्यताएं, औषधीय गुण और प्राकृतिक विशेषताएं इसे अत्यंत विशेष बनाती हैं।
पौराणिक मान्यता और उत्पत्ति
- पारिजात वृक्ष की उत्पत्ति समुद्र मंथन के समय हुई थी। यह मंथन से निकले 14 रत्नों में से एक माना जाता है।
- इसे कल्पवृक्ष भी कहा जाता है — यानी इच्छाओं को पूर्ण करने वाला दिव्य वृक्ष।
- यह वृक्ष स्वर्ग लोक में इंद्र के बगीचे में था, और केवल देव नर्तकी उर्वशी को ही इसे छूने का अधिकार था।
- इसके नीचे बैठने से थकान दूर होती है और शरीर में नई ऊर्जा का संचार होता है।
- देवर्षि नारद ने इसके पुष्प भगवान श्रीकृष्ण को भेंट किए थे, जिससे यह वृक्ष पृथ्वी पर लाया गया।
⚔️ स्वर्ग से धरती तक का सफर
- इंद्र के मना करने पर भगवान श्रीकृष्ण ने स्वर्ग पर आक्रमण किया और पारिजात वृक्ष सत्यभामा की वाटिका में रोपित किया।
- मान्यता है कि फूल रुक्मिणी की वाटिका में गिरते थे, भले ही वृक्ष सत्यभामा की वाटिका में था।
पारिजात की प्राकृतिक विशेषताएं
- इसके फूल रात में खिलते हैं और सुबह गिर जाते हैं — तोड़ना वर्जित है।
- सफेद फूल और केसरिया डंडी इसकी विशेष पहचान है।
- सुंदर, सुगंधित और 1000 से 5000 वर्षों तक जीवित रहने वाला वृक्ष।
औषधीय गुण और आयुर्वेदिक लाभ
- तन और मन को ऊर्जा देने वाला वृक्ष।
- फूल और पत्तियों का उपयोग औषधि में विशेष रूप से साइटिका के लिए।
साइटिका के लिए पारिजात का काढ़ा:
- 10–15 कोमल पत्ते धोकर हल्का कूटें।
- 2 कप पानी में उबालें।
- छानकर गरम-गरम पिएं — दिन में 2 बार।
- पहली बार में ही ~10% राहत मिलती है।
- 15 मिनट पहले और 1 घंटे बाद ठंडा पानी, दही, लस्सी, आचार आदि न लें।
अन्य विशेषताएं
- नकारात्मक ऊर्जा दूर करता है।
- बीज नहीं बनाता — प्राकृतिक रूप से उत्पन्न होता है।
- पश्चिम बंगाल का राजकीय पुष्प है।
निष्कर्ष
पारिजात कोई साधारण वृक्ष नहीं, यह ईश्वर का वरदान है — जिसमें सौंदर्य, सुगंध, शांति और स्वास्थ्य सभी एक साथ समाहित हैं। यदि आपके पास इसे लगाने का अवसर मिले, तो अवश्य लगाएं — यह सिर्फ एक वृक्ष नहीं, एक दिव्य अनुभूति है।
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