20 May 2025
ओडिशा का शंखाकार द्वीप: जहाँ स्वयं भगवान विष्णु प्रतिदिन आते हैं भोग स्वीकारने
चिलिका झील और दिव्य द्वीप
चिलिका झील के भीतर स्थित नलाबाना द्वीप, ऊपर से देखने पर एक शंख की तरह प्रतीत होता है — ठीक उसी तरह का शंख जो भगवान विष्णु अपने हाथ में धारण करते हैं।
यह कोई साधारण आकृति नहीं, बल्कि चेतन शक्ति का प्रतीक है, और इसके साथ जुड़ी हैं ऐसी घटनाएँ जो लौकिक नहीं, अलौकिक हैं।
️ रोज होने वाला चमत्कार: जब शंख स्वयं मंदिर में प्रवेश करता है
स्थानीय श्रद्धालु और पुजारियों के अनुसार:
- हर दिन, जैसे ही मंदिर की आरती की तैयारी होती है, लोग देखते हैं कि झील के जल से एक दिव्य प्रकाश उभरता है, और वह शंख की आकृति मंदिर की ओर गतिशील होती है।
- यह शंख जल के ऊपर से चलता हुआ मंदिर में प्रवेश करता है, और जैसे ही वह भीतर आता है —
- मंदिर दिव्य प्रकाश से भर जाता है।
- वातावरण शांत, लेकिन ऊर्जा से परिपूर्ण हो जाता है।
- ऐसा प्रतीत होता है जैसे स्वयं भगवान विष्णु मंदिर में उपस्थित हो गए हों।
आरती और प्रसाद की लीला
- जब मंदिर में आरती होती है, तो ऐसा लगता है जैसे कोई अदृश्य शक्ति उसका नेतृत्व कर रही हो।
- आरती के बाद, भगवान विष्णु को भोग अर्पित किया जाता है।
फिर…
- भोग के पात्र में हलचल होती है,
- कभी वजन कम होता है,
- कभी प्रसाद का रंग या गंध बदलती है — और
- फिर वही शंख की आकृति धीरे-धीरे बाहर निकल जाती है और जल में विलीन हो जाती है।
️ प्रत्यक्ष दर्शन — जिसे लोग हर दिन देखते हैं
- यह घटना कोई पुरानी कथा नहीं, बल्कि आज भी प्रतिदिन होती है।
- स्थानीय भक्त हर सुबह और शाम इसे अपनी आँखों से देखते हैं।
- कुछ इसे ईश्वर की दैनिक लीला मानते हैं, तो कुछ इसे पारलौकिक ऊर्जा का प्रकटीकरण।
- श्रद्धालु कहते हैं:
“हमारे भगवान दूर नहीं, यहीं हैं — रोज आते हैं, आरती सुनते हैं, भोग लेते हैं और फिर लौट जाते हैं। हमें दर्शन नहीं, अनुभव चाहिए — और वो यहाँ मिलता है।”
शंख द्वीप, संगम और मंदिर — एक त्रिकाल संयोग
यह क्षेत्र तीन दिव्य बिंदुओं का संगम है:
- शंख के आकार का चेतन द्वीप (नलाबाना)
- महानदी और समुद्र का संगम स्थल
- वह प्राचीन विष्णु मंदिर, जहाँ यह चमत्कारी घटना घटती है
यह केवल एक पौराणिक स्थल नहीं, बल्कि एक जीवंत तीर्थस्थल है।
निष्कर्ष: जहाँ भगवान हर दिन आते हैं
भारत के अधिकांश मंदिरों में भक्त भगवान के दर्शन के लिए जाते हैं,
लेकिन इस मंदिर में —
- स्वयं भगवान भक्तों के बीच आते हैं।
- प्रकृति भगवान का रूप धारण करती है,
- जल में चलने वाला शंख मंदिर की आरती में सम्मिलित होता है, और
- ईश्वर स्वयं प्रसाद स्वीकार करते हैं और लौट जाते हैं।
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