मेंहदी भारतीय संस्कृति का हिस्सा नहीं, आलता का प्राचीन महत्व

11 March 2025

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मेंहदी भारतीय संस्कृति का हिस्सा नहीं, आलता का प्राचीन महत्व

 

भारत में मेंहदी को पारंपरिक रूप से शादी-ब्याह और त्योहारों से जोड़ा जाता है, लेकिन क्या मेंहदी वास्तव में भारतीय संस्कृति का हिस्सा है? नहीं, मेंहदी भारतीय परंपरा में प्राचीन काल से नहीं थी, बल्कि यह मध्य एशिया और अरब देशों से आई हुई प्रथा  है। जबकि भारत में प्राचीन काल से स्त्रियाँ  आलता लगाती थीं, जिसका धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व था।

 

मेंहदी का भारतीय संस्कृति में आगमन कैसे हुआ?

 

मेंहदी (Henna) की उत्पत्ति  मध्य एशिया, मिस्र और अरब देशों से हुई मानी जाती है। इसका उल्लेख सबसे पहले  मिस्र की सभ्यता  में मिलता है, जहाँ इसे फिरौन और रानियों के शवों को सजाने के लिए उपयोग किया जाता था।

 

भारत में इसका प्रवेश मुगल शासन के दौरान हुआ , जब विदेशी शासकों ने अपनी परंपराएँ यहाँ फैलाईं।

मुगल काल में मेंहदी को शाही महिलाओं की सौंदर्य सामग्री का हिस्सा बनाया गया, जो धीरे-धीरे आम जनता तक पहुँच गई।

आयुर्वेद में मेंहदी का कहीं भी उल्लेख नहीं मिलता, जो यह साबित करता है कि यह भारतीय संस्कृति का मूल हिस्सा नहीं है।

 

भारतीय संस्कृति में “आलता” का महत्व

 

मेंहदी की जगह भारत में स्त्रियाँ आलता या महावर का उपयोग करती थीं, जो विशेष रूप से शुभ और मांगलिक अवसरों पर लगाया जाता था।

 

आलता लाल या गहरे गुलाबी रंग का होता है, जिसे पैरों और हाथों पर लगाया जाता है।

प्राचीन काल में इसे प्राकृतिक लाख और फूलों के रस से बनाया जाता था।

संस्कृति और धार्मिक दृष्टि से आलता को सौभाग्य और शुभता का प्रतीक माना जाता है।

वैदिक काल से विवाह, देवी पूजन, और शुभ अवसरों पर स्त्रियों द्वारा आलता लगाने की परंपरा रही है।

 

आलता का धार्मिक महत्व और प्राचीन संदर्भ

 

हिंदू धर्म में देवी-पूजन में इसका महत्व

देवी लक्ष्मी और दुर्गा के चरणों में लाल आलता लगाया जाता है, जो उनकी शक्ति और सौभाग्य का प्रतीक होता है।

बंगाल और ओडिशा में अब भी महिलाएँ विशेष रूप से आलता लगाती हैं।

 

महाभारत और रामायण में उल्लेख

रामायण में माता सीता के पैरों की शोभा का वर्णन करते समय लाल महावर का उल्लेख आता है।

महाभारत में द्रौपदी के बारे में कहा गया है कि उनके चरण सदैव महावर से रंजित रहते थे।

 

आयुर्वेदिक महत्व

आलता त्वचा के लिए सुरक्षित होता है और पैरों को ठंडक देता है।

प्राचीन चिकित्सा पद्धति में कहा गया है कि पैरों पर लगाया गया आलता रक्त संचार को नियंत्रित करता है।

 

निष्कर्ष

 

मेंहदी भारतीय संस्कृति का मूल हिस्सा नहीं है, यह मुगलों के आगमन के बाद भारत में फैली। असली भारतीय परंपरा में आलताका विशेष स्थान था, जो शुभता, समृद्धि और नारीत्व का प्रतीक माना जाता था।

 

आज भी बंगाल, ओडिशा और उत्तर भारत के पारंपरिक परिवारों में महिलाएँ आलता का उपयोग करती हैं।

 

इसलिए हमें अपनी प्राचीन परंपराओं को पहचानना चाहिए और अपने भारतीय संस्कृति के मूल तत्वों को संरक्षित करना चाहिए।

 

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