20 September 2022
azaadbharat.org
किसी भी देश का भविष्य वहाँ की संस्कारी बाल पीढ़ी पर निर्भर करता है। वास्तव में खनिज, वन, पर्वत, नदी आदि देश की सच्ची सम्पत्ति नहीं हैं अपितु ऋषि-परम्परा के पवित्र संस्कारों से सम्पन्न तेजस्वी संतानों ही देश की सच्ची सम्पत्ति हैं और वर्तमान समय में देश को इस सम्पत्ति की अत्यन्त आवश्यकता है। शिशु में संस्कारों की नीँव माँ के गर्भ में ही पड़ जाती है। इसलिए उत्तम संतानप्राप्ति के इच्छुक दम्पत्तियों को चाहिए कि वे ब्रह्मज्ञानी संतों के दर्शन-सत्संग का लाभ लेकर स्वयं सुविचारी, सदाचारी एवं पवित्र बनें। साथ ही उत्तम संतानप्राप्ति के नियमों को जान लें और शास्त्रोक्त रीति से गर्भधान कर परिवार, देश व मानवता का मंगल करने वाली महान आत्माओं की आवश्यकता की पूर्ति करें।
किसी ने ठीक ही कहा हैः जननी जणे तो भक्त जण, कां दाता कां शूर।
‘हे जननी ! यदि तुझे जन्म देना है तो भक्त, दानी या वीर को जन्म देना।
संतान की प्रथम शिक्षिका माँ ही होती है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि आदर्श माताएँ अपनी संतान को श्रेष्ठ एवं आदर्श बना देती हैं। माँ के जीवन और उसकी शिक्षा का बालक पर सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। माँ संतान में बचपन से ही सुसंस्कारों की नींव डाल सकती है।
संतान की जीवन वाटिका को सद्गुणों के फूलों से सुशोभित करने से खुद माता का जीवन भी सुवासित और आनंदमय बन जायेगा। संतान में यदि दुर्गुण के काँटें पनपेंगे तो वे माता को भी चुभेंगे और शिशु, माता एवं पूरे परिवार के जीवन को खिन्नता से भर देंगे। इसीलिए माताओं का परम कर्तव्य है कि संतान का शारीरिक, मानसिक, नैतिक, आध्यात्मिक संरक्षण और पोषण करके आदर्श माता बन जायें।
नन्हा सा बालक एक कोमल पौधे जैसा होता है। उसे चाहे जिस दिशा में मोड़ा जा सकता है। अतः बाल्यकाल से ही उसमें शुभ संस्कारों का सिंचन किया जाय तो भविष्य में वही विशाल वृक्ष के रूप में परिणत होकर भारतीय संस्कृति के गौरव की रक्षा करने में सक्षम हो सकता है।
बालक देश का भविष्य, विश्व का गौरव और अपने माता-पिता की शान है उसके भीतर सामर्थ्य का असीम भण्डार छुपा है, जिसे प्रकट करने के लिए जरूरी है उत्तम संस्कारों का सिंचन।
जो महिलाएँ सगर्भावस्था में टीवी सीरियल व फिल्में देखती हैं, अश्लील गाने आदि सुनती रहती हैं उनके शिशुओं में वे संस्कार गर्भ में ही गहरे पड़ जाते हैं, जिससे बड़े होकर उनका स्वभाव चंचल, कामुक व आपराधिक होने की सम्भावनाएँ बढ़ जाती हैं।
गर्भावस्था के दौरान सत्संग, सत्शास्त्रों का अध्ययन, देव-दर्शन, संत-दर्शन, भगवद्-उपासना करें और मन को सद्विचारों से ओतप्रोत रखें। भगवन्नाम का अधिकाधिक मानसिक जप करें। इससे आपकी संतान दैवी सदगुणों से युक्त होगी।
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