चंद्रग्रहण और Lunar Eclipse का रहस्य : शास्त्र व विज्ञान





चंद्रग्रहण और Lunar Eclipse का रहस्य : शास्त्र व विज्ञान

चंद्रग्रहण और Lunar Eclipse का रहस्य : शास्त्र व विज्ञान

प्राचीन भारत में Lunar Eclipse को केवल खगोलीय घटना नहीं माना गया बल्कि इसे गहन आध्यात्मिक साधना का समय बताया गया। हजारों साल पहले हमारे ऋषि-मुनि बिना किसी दूरबीन या कंप्यूटर के ग्रहण का समय निकाल लेते थे।

Lunar Eclipse और प्राचीन शास्त्र

  • ऋग्वेद (10/85) में सूर्य और चंद्रमा की गति और ग्रहण का संकेत मिलता है।
  • सूर्य सिद्धांत में गणितीय सूत्र दिए गए हैं जिनसे ग्रहण का समय ज्ञात होता है।
  • आर्यभटीय (499 ई.) में आचार्य आर्यभट ने लिखा कि ग्रहण राहु-केतु से नहीं बल्कि पृथ्वी की छाया से होता है।

वही सत्य आज आधुनिक विज्ञान और NASA द्वारा सिद्ध किया जाता है।

शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष : खगोलीय रहस्य

शुक्ल पक्ष

अमावस्या के बाद बढ़ता हुआ चंद्रमा शुक्ल पक्ष कहलाता है। यह ऊर्जा, वृद्धि और शुभ कार्यों का प्रतीक है।

कृष्ण पक्ष

पूर्णिमा के बाद घटता हुआ चंद्रमा कृष्ण पक्ष कहलाता है। यह आत्मनिरीक्षण और साधना का प्रतीक है।

यही 15+15 दिन मिलकर लगभग 29.5 दिन का एक चंद्र मास बनाते हैं। यही अवधि विज्ञान के अनुसार चंद्रमा का एक दिन है।

Lunar Eclipse और आधुनिक विज्ञान

भारत के चंद्रयान मिशन और आधुनिक अंतरिक्ष विज्ञान ने जो तथ्य खोजे, वे हमारे शास्त्रों की पुष्टि करते हैं:

  • चंद्रमा पर एक दिन ≈ 29.5 पृथ्वी दिन।
  • चंद्रमा पर दिन और रात दोनों लगभग 14-15 पृथ्वी दिन लंबे होते हैं।
  • यह ठीक वैसा ही है जैसा हमारे शास्त्रों ने शुक्ल और कृष्ण पक्ष से बताया था।

ग्रहणकाल का आध्यात्मिक महत्व

सनातन धर्म में ग्रहण को साधना का विशेष समय माना गया है:

  • ग्रहणकाल में जप, ध्यान और दान का प्रभाव सामान्य समय से कई गुना अधिक होता है।
  • ऋषियों ने इसे पुण्य संचित करने का अद्भुत अवसर कहा।

निष्कर्ष : शास्त्र और विज्ञान का संगम

प्राचीन ऋषियों ने कहा: शुक्ल + कृष्ण पक्ष = 29.5 दिन।

आधुनिक विज्ञान कहता है: चंद्रमा का एक दिन = 29.5 पृथ्वी दिन।

यही सनातन धर्म की महानता है — यह केवल आस्था नहीं बल्कि शाश्वत विज्ञान भी है।

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