भगवान विष्णु और ब्रह्मांडीय महासागर का वैज्ञानिक रहस्य
भारतीय इतिहास और दर्शन के अनुसार Lord Vishnu सृष्टि, पालन और संहार के त्रिदेवों में पालनकर्ता हैं। वे ब्रह्मांडीय महासागर पर शेषनाग के ऊपर विश्राम करते हैं। इस स्थिति को “योगनिद्रा” कहा गया है। यह केवल प्रतीक नहीं, बल्कि ब्रह्मांड की ऊर्जा-संतुलन की एक गहन व्याख्या है।
प्राचीन धारणाओं के अनुसार ब्रह्मांडीय महासागर
प्राचीन वैदिक ग्रंथों में कहा गया है कि जब संपूर्ण सृष्टि लय को प्राप्त होती है, तब Lord Vishnu अनंत ब्रह्मांडीय जल पर विश्राम करते हैं। यह जल ब्रह्मांड की वह ऊर्जा है, जिसमें सभी तत्व विलीन होकर पुनः सृजन की प्रतीक्षा करते हैं। इस प्रकार यह अवस्था सृष्टि के पुनः आरंभ की नींव रखती है।
वास्तव में, ब्रह्मांडीय महासागर अनंत संभावनाओं का प्रतीक है। इसी से यह संकेत मिलता है कि ऊर्जा कभी नष्ट नहीं होती — केवल रूप बदलती है। इसलिए यह सिद्धांत आधुनिक विज्ञान से भी मेल खाता है।
विज्ञान के अनुसार कॉस्मिक ओशन
आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो ब्रह्मांड का मूल स्वरूप क्वांटम वैक्यूम या “Cosmic Ocean” जैसा है। वैज्ञानिक बताते हैं कि ब्रह्मांड का विस्तार इसी अदृश्य ऊर्जा सागर से हुआ। इस सागर में ऊर्जा लगातार उत्पन्न होती और विलीन हो जाती है।
इसी प्रकार Lord Vishnu का विश्राम भी इस संतुलन का प्रतीक है। वे न तो पूर्ण निद्रा में हैं, न जागृति में — यह स्थिति “योगनिद्रा” है, जहाँ सृष्टि की संभावनाएँ छिपी रहती हैं। इस कारण यह अवधारणा आज भी वैज्ञानिक दृष्टि से सार्थक है।
प्राचीन धारणा और विज्ञान में समानता
प्राचीन धारणा | आधुनिक वैज्ञानिक तथ्य |
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ब्रह्मांडीय महासागर में विष्णु विश्राम करते हैं | ब्रह्मांडीय ऊर्जा क्षेत्र (Cosmic Field) सदैव सक्रिय रहता है |
सृष्टि और लय का चक्र निरंतर चलता है | ब्रह्मांड निरंतर विस्तार और संकुचन के चक्र से गुजरता है |
शेषनाग पर विष्णु का विश्राम ऊर्जा का संतुलन दर्शाता है | ऊर्जा न नष्ट होती है, न उत्पन्न — केवल रूपांतरित होती है |
इस प्रकार स्पष्ट होता है कि भारतीय प्राचीन ज्ञान मात्र कल्पना नहीं बल्कि वैज्ञानिक सत्य की अभिव्यक्ति है। इसलिए भारतीय इतिहास और ग्रंथों को मिथक नहीं, प्रमाणिक आध्यात्मिक विज्ञान कहा जा सकता है।
आधुनिक अनुसंधान और भारतीय दर्शन का संगम
आज का विज्ञान धीरे-धीरे उन रहस्यों को स्वीकार रहा है, जो ऋषियों ने हजारों वर्ष पहले बताए थे। उदाहरण के लिए, ब्रह्मांड की उत्पत्ति और ऊर्जा के स्वरूप पर किए गए अध्ययन इस तथ्य की पुष्टि करते हैं। भारतीय दर्शन में वर्णित “योगनिद्रा” और “ब्रह्मांडीय जल” आधुनिक वैज्ञानिक सिद्धांतों के अनुरूप हैं।
इसके अलावा, NASA जैसे संस्थान भी अब ब्रह्मांड की गहराई में ऊर्जा तरंगों के अस्तित्व की ख_