Kartik Purnima Deep Daan कार्तिक पूर्णिमा और दीपदान






Kartik Purnima Deep Daan – कार्तिक पूर्णिमा और दीपदान

Kartik Purnima Deep Daan — कार्तिक पूर्णिमा और दीपदान

Kartik Purnima Deep Daan का यह लेख वैदिक, पुराणिक और लोक परंपराओं को समेटता है। नीचे दिया गया मूल लेख पूरी तरह सुरक्षित रखा गया है।
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Kartik Purnima Deep Daan – प्रस्तावना

भारतीय संस्कृति में हर पर्व का एक गहरा आध्यात्मिक अर्थ छिपा होता है। कोई भी उत्सव केवल भोग या आनंद का अवसर नहीं होता, बल्कि आत्मा की चेतना को जागृत करने का माध्यम होता है। कार्तिक पूर्णिमा भी ऐसा ही एक अद्भुत पर्व है — जहाँ भक्ति, ज्ञान, दान, तप और स्नान एक साथ फल देते हैं।

यह दिन शुद्धता, त्याग, सेवा और प्रकाश का प्रतीक माना जाता है। इसी दिन भगवान शिव ने असुरों का नाश कर धर्म की पुनर्स्थापना की थी, और इसी दिन देवताओं ने आकाश में दीप जलाकर उसकी महिमा का गान किया था। इसीलिए यह तिथि “देव दीपावली” या “त्रिपुरारी पूर्णिमा” के नाम से प्रसिद्ध है।

वैदिक दृष्टि : ज्योति की उपासना

वेदों में कार्तिक मास का प्रत्यक्ष उल्लेख नहीं है, किन्तु अग्नि और दीप-ज्योति की उपासना को अत्यंत श्रेष्ठ बताया गया है।
ऋग्वेद में कहा गया है — “अग्निं नय सुपथा राये अस्मान् विश्वानि देव वयुनानि विद्वान्।” अर्थात् — हे अग्निदेव! हमें उस मार्ग पर ले चलो जो सत्य और कल्याण की ओर जाता है।

यह अग्नि बाहरी भी है और भीतरी भी — बाहरी अग्नि हमारे घरों और यज्ञों में प्रज्वलित होती है, और भीतरी अग्नि हमारी चेतना में। जब हम दीपदान करते हैं, तब हम उसी वैदिक अग्नि की उपासना करते हैं, जो अज्ञान के अंधकार को दूर कर आत्मा को प्रकाशित करती है।

यजुर्वेद में जो प्रसिद्ध मंत्र आता है — “तमसो मा ज्योतिर्गमय” — अर्थात् अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो — वह केवल बाहरी प्रकाश का नहीं, बल्कि आत्मिक आलोक का आह्वान है। कार्तिक पूर्णिमा का दीपदान इसी वैदिक सूत्र का जीवंत रूप है।

पुराणों में Kartik Purnima Deep Daan की महिमा

स्कन्द पुराण का वर्णन

स्कन्द पुराण में कार्तिक मास को सर्वोत्तम मास कहा गया है। इसमें लिखा है — “कार्तिके मासि यः स्नात्वा दीपदानं करोति हि, सर्वपापविनिर्मुक्तो विष्णुलोके महीयते।” अर्थात् जो व्यक्ति कार्तिक मास में स्नान और दीपदान करता है, वह सभी पापों से मुक्त होकर विष्णु लोक में निवास करता है।

आगे स्कन्द पुराण में कहा गया है — “दीपदानं सहस्राणां कोटिभिर्नैव तुल्यते।” हजारों प्रकार के दानों की तुलना में एक दीपदान का पुण्य सर्वोच्च है। दीप जलाने का अर्थ केवल एक लौ प्रज्वलित करना नहीं, बल्कि अपने अंतःकरण में श्रद्धा, प्रेम और ज्ञान का प्रकाश जलाना है। कार्तिक मास में किया गया दीपदान शरीर, मन और आत्मा — तीनों की शुद्धि करता है।

पद्म पुराण का उल्लेख

पद्म पुराण में कार्तिक पूर्णिमा को “विष्णुप्रीतिदा तिथि” कहा गया है। यह वह दिन है जब भगवान विष्णु को तुलसी और दीपदान अत्यंत प्रिय होता है। पद्म पुराण में कहा गया है — “कार्तिके दीपदानं च विष्णोः प्रीतिकरं परम्।”

जो व्यक्ति कार्तिक पूर्णिमा की रात्रि में तुलसी के समीप दीप जलाता है या मंदिर में दीपदान करता है, वह अनंत पुण्य का भागी बनता है। कहा गया है कि यदि कोई तुलसी के नीचे एक दीप भी जलाता है, तो वह युगों-युगों तक वैकुण्ठ लोक में निवास करता है। यह दीप भगवान विष्णु के प्रति प्रेम और आत्मसमर्पण का प्रतीक है।

शिवपुराण और त्रिपुरासुर वध

शिवपुराण में वर्णन है कि एक समय त्रिपुर नामक तीन नगरों में रहने वाले तीन असुर — तारकाक्ष, विद्युन्माली और कमलाक्ष — अपने अत्याचारों से तीनों लोकों को भयभीत करने लगे। जब देवता असहाय हो गए, तब वे भगवान शिव के शरण में पहुंचे।

भगवान शिव ने उस दिन, जो कार्तिक पूर्णिमा थी, अपने पाशुपतास्त्र से त्रिपुर नामक उन तीनों नगरों का नाश कर दिया। इसीलिए उस दिन को त्रिपुरारी पूर्णिमा कहा जाता है, और भगवान शिव को त्रिपुरारी नाम मिला।

त्रिपुरों के विनाश के उपरांत देवताओं ने आकाश में दीप जलाकर विजय का उत्सव मनाया। यही दीपोत्सव आगे चलकर “देव दीपावली” के रूप में प्रसिद्ध हुआ। शिवपुराण में लिखा है — “त्रिपुरं दग्धवान् देवं तदा दीपा महोत्सवः।” अर्थात् जब त्रिपुर का दहन हुआ, तब दीपों का महोत्सव मनाया गया।

यह कथा केवल ऐतिहासिक नहीं, प्रतीकात्मक है — त्रिपुर तीन नगर हैं — शरीर, मन और अहंकार। जब शिव-चेतना इन तीनों को शुद्ध करती है, तभी आत्मा का प्रकाश प्रकट होता है। इस प्रकार त्रिपुरासुर वध आत्म-शुद्धि की प्रक्रिया का प्रतीक है।

गंगा स्नान और देव दीपावली

ब्राह्म वैवर्त पुराण और स्कन्द पुराण में गंगा स्नान का विशेष उल्लेख आता है। कहा गया है कि कार्तिक पूर्णिमा की रात यदि कोई व्यक्ति गंगा, यमुना या किसी भी तीर्थ में स्नान कर दीपदान करता है, तो उसके असंख्य जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। “गंगायां यः कार्तिके स्नात्वा दीपं ददाति वै, सर्वपापविनिर्मुक्तो विष्णुलोके महीयते।”

वाराणसी में इस दिन गंगा तट पर लाखों दीप जलाए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस रात देवता स्वयं पृथ्वी पर उतरकर गंगा स्नान करते हैं और दीपों का दर्शन करते हैं। यही कारण है कि इसे “देव दीपावली” कहा गया है — यानी वह दीपावली जो स्वयं देवताओं के लिए है।

गंगा की लहरों पर तैरते दीप केवल सौंदर्य नहीं, बल्कि मनुष्य की आस्था का प्रतीक हैं। हर दीप के साथ एक संकल्प जुड़ा होता है — कि जीवन में अंधकार नहीं, केवल प्रकाश का शासन हो।

दीपदान का आध्यात्मिक अर्थ

दीप जलाना केवल एक धार्मिक कर्म नहीं, बल्कि एक दार्शनिक प्रतीक है। दीप में जो तेल होता है, वह हमारे कर्मों का प्रतीक है। दीप की बाती हमारी श्रद्धा है। और जो ज्योति जलती है, वह हमारी आत्मा का प्रकाश है।

जब हम दीप जलाते हैं, तो यह ईश्वर से प्रार्थना होती है — “जैसे यह दीप अंधकार को मिटा रहा है, वैसे ही मेरे भीतर का अज्ञान भी नष्ट हो।” दीपक स्वयं जलता है, पर दूसरों को प्रकाश देता है। वह हमें सिखाता है कि त्याग से ही प्रकाश उत्पन्न होता है। तेल घटता है, पर ज्योति बढ़ती है। इसीलिए दीपदान को “ज्ञानदान” भी कहा गया है।

महाभारत और स्मृति ग्रंथों में Kartik Purnima Deep Daan

महाभारत के अनुशासन पर्व में भी भीष्म पितामह युधिष्ठिर को कार्तिक स्नान और दीपदान की महिमा बताते हैं — “कार्तिके मासि यः स्नात्वा दीपदानं करोति हि, सर्वपापविनिर्मुक्तो विष्णुलोके महीयते।” यह बताता है कि कार्तिक पूर्णिमा की परंपरा महाभारत काल से चली आ रही है। मनुस्मृति में भी कहा गया है कि कार्तिक मास में ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान और दीपदान करने वाला व्यक्ति सौ जन्मों के पापों से मुक्त होता है।

लोक परंपराएँ और संस्कृति

भारत के हर प्रदेश में कार्तिक पूर्णिमा का अपना विशेष रूप है। वाराणसी में यह देव दीपावली कहलाती है। पुष्कर में यह ब्रह्माजी के मेला के रूप में मनाई जाती है, जहाँ सरोवर में स्नान करने लाखों श्रद्धालु आते हैं। ओडिशा, बंगाल और असम में यह बोइता-बंदाना के रूप में मनाई जाती है, जो समुद्री व्यापारियों की स्मृति है। दक्षिण भारत में इसे “कार्तिगई दीपम” कहा जाता है — जहाँ भगवान शिव के अनंत ज्योति लिंग की पूजा की जाती है।

यह पर्व संपूर्ण भारत की आत्मा को एक सूत्र में बाँध देता है — उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक, दीपक की यह लौ सबको एक करती है।

निष्कर्ष : ज्योतिर्मय जीवन की ओर

कार्तिक पूर्णिमा हमें यह संदेश देती है कि जीवन का उद्देश्य केवल जीना नहीं, बल्कि ज्योतिर्मय बनना है। जैसे अंधकार दीपक के सामने टिक नहीं पाता, वैसे ही अज्ञान, मोह और असत्य भी सत्य के प्रकाश के सामने टिक नहीं सकते। यह दिन हमें स्मरण कराता है कि एक छोटा दीप भी पूरे अंधकार को चुनौती दे सकता है।

वेदों ने कहा — “तमसो मा ज्योतिर्गमय” — अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ो। पुराणों ने सिखाया — दीपदान ही ज्ञानदान है। और संतों ने कहा — बाहर का दीप तभी सार्थक है जब भीतर का दीप भी जलता हो।

इसलिए कार्तिक पूर्णिमा केवल एक पर्व नहीं, बल्कि आत्मा के जागरण का संदेश है — अपने भीतर के प्रकाश को पहचानो, और वही प्रकाश समाज तक फैलाओ। यही कार्तिक पूर्णिमा का सच्चा अर्थ है — अंधकार से ज्योति की, अज्ञान से ज्ञान की, और असत्य से सत्य की यात्रा।