करवा चौथ जैसे पवित्र पर्व पर , बुद्धिजीवी महिला लेखिका ने की असंतोषजनक टिप्पणी ! जानिए…

2 November 2023

 

 

प्रत्येक वर्ष शरद पूर्णिमा के बाद की चतुर्थी तिथि अर्थात् कार्तिक कृष्ण चतुर्थी को ‘करवा चौथ’ पर्व पर उपवास की परंपरा भारत में रही है। खासकर पश्चिम और उत्तर भारतीय महिलाएँ यह उपवास रखती हैं। यह उपवास फिल्मों और टीवी सीरियलों के माध्यम से देश-विदेश की महिलाओं में और भी लोकप्रिय हुआ। इस दिन महिलाएँ अपने पति की लंबी उम्र और उनकी सुरक्षा के लिए उपवास रखती हैं और रात को चन्द्रमा के दर्शन के उपरांत पति के हाथों जल ग्रहण कर इसका समापन करती हैं।

 

भारतीय इतिहास में सामान्यतः ये परंपरा रही है कि पूर्व काल में पुरुष जीविकोपार्जन से लेकर युद्ध तक जैसे कार्यों के लिए दूर जाया करते थे और महीनों बाद लौटते थे। उनमें से कइयों के लौटने पर भी संशय रहता था। वो महिलाओं-बच्चों को सुरक्षित घर पर छोड़ जाते थे। ऐसे में ये महिलाएँ उनकी लंबी उम्र और सुरक्षा के लिए इस तरह के उपवास करती थीं। ये परंपरा आज तक चली आ रही है।

 

अब जैसा कि हिन्दू धर्म के हर पर्व और त्योहार के साथ होता आया है, इसे भी बदनाम करने की साजिश चल निकली है।

 

ऐसा करने वालों में पिछले साल से एक नया नाम जुड़ा है, लेखिका तस्लीमा नसरीन का, जिन्हें इस्लाम के रूढ़िवाद पर पुस्तक लिखने के कारण बांग्लादेश ने देश से निकाल बाहर किया और वो हिन्दुओं के देश भारत में शरण लेकर रहती हैं । पर अब, इस्लामी कट्टरपंथियों का रोज निशाना बनने वाली तस्लीमा नसरीन खुद को न्यूट्रल दिखाने के लिए हिन्दू त्योहार पर निशाना साध रही हैं, वो भी बिना कुछ जाने-समझे। ये अलग बात है कि इसके बावजूद हिन्दू उन्हें देश से बाहर नहीं निकाल रहे और न ही उन्हें हत्या की धमकियाँ दे रहे हैं।

 

लेकिन हाँ, सही भाषा में तथ्यों के साथ जवाब देने का अधिकार हमें हमारा संविधान और धर्म, दोनों देते हैं। दरअसल, बॉलीवुड अभिनेत्रियों ने करवा चौथ का त्योहार मनाते हुए तस्वीर साझा की थी। उसे ट्वीट करते हुए तस्लीमा नसरीन ने  ट्विटर पर लिखा था, “ये लोकप्रिय और अमीर महिलाएँ भारतीय उपमहाद्वीप के सभी वर्ग और जाति की लाखों महिलाओं एवं लड़कियों पर अपना प्रभाव डालती हैं, उस करवा चौथ त्योहार को मना कर, जो सबसे ज्यादा लोकप्रिय पितृसत्तात्मक रीति-रीवाज है।

 

तस्लीमा नसरीन ने करवा चौथ त्योहार को पितृसत्ता का शीर्ष करार दिया। सबसे पहली बात तो ये कि पितृसत्ता में कोई बुराई नहीं है। पिता की सत्ता होनी चाहिए। पुरुष का शासन होना चाहिए, ठीक उसी तरह मातृसत्ता भी होनी चाहिए। माताओं का शासन भी होना चाहिए। दोनों एक-दूसरे के पूरक होते हैं, विरोधी नहीं । तभी हमारे यहाँ अर्धनारीश्वर का कॉन्सेप्ट है, जहाँ शिव-पार्वती मिल कर सृजन व सृष्टि का संचालन करते हैं ।यह अर्धनारीश्वर रूप यह बताने के लिए काफी होना चाहिए कि सनातनधर्म में स्त्री-पुरुष दोनों ही के एक समान अधिकार क्षेत्र हैं , न कम , न ज्यादा ।

 

हिन्दू धर्म की बात से पहले कुछ सवाल !

पितृसत्ता को चुनौती देने का अर्थ क्या है !?  किसी गर्भवती अभिनेत्री का नंगी होकर तस्वीर क्लिक कराना ? या फिर किसी मॉडल का छोटे कपड़ों में मैगजीन के कवर पर आना ? किसी महिला द्वारा खुलेआम सड़क पर पुरुषों को चाँटे मारना, या फिर झूठे दहेज़-बलात्कार के मामलों में फँसाना ? जिस तरह रणवीर सिंह के न्यूड फोफोज का पितृसत्ता से कुछ लेना-देना नहीं है, उसी तरह महिलाओं का कम कपड़े पहनने का मातृसत्ता से कोई लेना-देना नहीं है। हाँ, ये व्यक्तिगत चॉइस का मामला हो सकता है, लेकिन इसका विरोध करना भी किसी का व्यक्तिगत चॉइस ही है।

 

फिर मातृसत्ता का उदाहरण क्या है ?  इसका उदाहरण है कि सती सावित्री ने यमराज के द्वार से अपने पति को वापस छीन लिया था। इसका उदाहरण है कि सीता और द्रौपदी जैसी महिलाओं के अपमान करने वालों का पूरा वंश नाश हो गया। इसका उदाहरण है कि महारानी लक्ष्मीबाई जैसी वीरांगनाओं ने मातृभूमि की रक्षा के लिए तलवार उठाये।

 

अब तस्लीमा नसरीन जवाब दें !

नवरात्री के अवसर पर हिन्दू धर्म में कन्या पूजन का विधान है। इसके तहत कुँवारी लड़कियों को घर में आमंत्रित कर भोजन कराया जाता है और उनके पाँव धोए जाते हैं । कन्याओं के पाँव धोकर पूजन करते हुए हृदय में यह भाव दृढ़ीभूत किया जाता है, कि वो मातृशक्ति हैं, उनका दर्जा सबसे ऊपर है और उनके लिए लोगों के मन में सर्वोच्च सम्मान की भावना होनी ही चाहिए।

तो जैसे कन्याओं के पाँव धोने में कुछ भी बुरा नहीं है, वैसे ही पति की लंबी उम्र की कामना के लिए श्रद्धापूर्वक उपवास रखना भी बुरा कैसे हो सकता है…!?

 

इसी तरह हिन्दू धर्म में ‘सुमंगली पूजा’ भी होती है। दक्षिण भारत के ब्राह्मण परिवारों में ये लोकप्रिय है। घर की विवाहित महिलाओं को ‘सुमंगली’ कहा जाता है, अर्थात घर का मंगल करने वाली। इसके तहत 3, 5, 7 या 9 महिलाओं को बुला कर उन्हें सम्मानित किया जाता है, उनकी पूजा की जाती है। इसके तहत घर की दिवंगत महिलाओं की प्रार्थना की जाती है, ताकि उनका आशीर्वाद मिले। इसमें किन्हें भाग लेना है और किन्हें नहीं, इन्हें लेकर नियम-कानून पर भी उँगली उठाने वाले निशाना साध सकते हैं। लेकिन, यहां हमें यह बिल्कुल नहीं भूलना चाहिए कि , हिन्दू धर्म में कई पर्व-त्योहारों में पुरुषों के लिए भी तमाम नियम-कानून हैं।

 

आध्यात्मिक मामलों पर लिखने वाले युवा लेखक अंशुल पांडेय ने भी तस्लीमा नसरीन को अच्छा जवाब दिया है। उन्होंने याद दिलाया है कि भारत में देवी की पूजा सिर्फ नवरात्रि या दीवाली पर ही नहीं होती है, प्रतिदिन की जाती है। माँ सरस्वती को विद्या की देवी कहा गया है और सारे छात्र-छात्राएँ उनकी पूजा करते हैं, क्या ये पितृसत्ता है? घर में बालक का जन्म होने पर छठे दिन देवी की पूजा की जाती है। ऐसे तो अनेकों विधि-विधान हैं। कहां तक गिनाए जाएं…!?

 

इस्लाम में महिलाओं की क्या इज्जत है, यह भी हम जानते हैं। हलाला के नाम पर उन्हें ससुर और देवर के साथ रात गुजारने को मजबूर किया जाता है। ईसाई मजहब में चर्चों में ही पादरियों द्वारा ननों के यौन शोषण की बातें सामने आती रहती हैं। जबकि सनातन में  प्रकृति को भी मातृ शक्ति का द्योतक कहा गया है और इतना ही नहीं… इन्हें ही समस्त शक्तियों का स्रोत बताया गया है।

जरा गौर कीजिएगा… जब इस शब्द शक्ति पर नजर डालते हैं तो क्या पाते हैं , कि यह शब्द “शक्ति” स्वयं ही स्त्रीलिंग का द्योतक है ।

अब हमारी माताएँ , बहनें अपनी संतान के लिए छठ करें या पति के लिए करवा चौथ, उनके प्यार के बीच आने वाले हम या तस्लीमा नसरीन कौन होते हैं ?

 

हम भारतवासी तो अपने देश को भी भारत माता कह कर पुकारते हैं।

इससे बढ़कर मातृशक्ति का सम्मान हमें नहीं लगता कहीं भी किसी देश ,धर्म या मजहब में हो सकता है।

अगर आप दुर्गा सप्तशती पढ़ेंगे तो पाएँगे कि ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति ही आदिशक्ति से हुई है। जिस धर्म में कन्या पूजन होता है, वहाँ करवा चौथ पर उँगली नहीं उठाई जा सकती।

यहाँ लड़कियाँ पूजित भी होती हैं, पूजा भी करती हैं। यहाँ Feminism और Patriarchy के लिए जगह है ही नहीं !

यहाँ तो अर्धनारीश्वर की अवधारणा ही काफी है। यदि महिलाओं की सुरक्षा पुरुषों का कर्तव्य बताया गया है। तो ठीक इसी तरह फिर, महिलाएँ भी पुरुषों की सुरक्षा की कामना करती हैं। क्या उन्हें नहीं करना चाहिए…!? हमारा सनातनधर्म संकीर्णता से कोसो दूर खुले विचारों और स्पष्ट तर्कों का पक्षधर रहा है , तभी तो यहाँ रक्षाबंधन जैसे त्योहार आज भी अस्तित्व में हैं।

 

जय हिंद !  जय माँ भारती !!

 

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