कड़वा है पर सच यही है, जितने भी महान साधु संत हुए हैं उन्हें उनके हयातिकाल में झूठे और घृणित आरोप लगाए गए , कष्ट दिए गए , प्रताड़ित किया गया और बाद में जब वे महापुरुष चले जाते हैं तो यही लोग उनकी पूजा करते हैं !!

कड़वा है पर सच यही है , कि प्राचीनकाल से अब तक जितने भी दयालु , सेवाभावी और परहित-परायण महान साधु संत हुए हैं उन्हें उनके हयातिकाल में तो तरह-तरह के झूठे और घृणित आरोप लगाए गए , कष्ट दिए गए , अपमानित और प्रताड़ित किया गया और बाद में… बाद में जब वे महापुरुष चले जाते हैं तो यही लोग उनकी पूजा करते हैं !!

 

22  May 2023

 

भारत देश ऋषि-मुनियों, साधु-संतों का देश रहा है।

इतिहास गवाह है कि जिस भी राज्य में संतजनों के मार्गदर्शन में राजसत्ता चलती थी, वह राज्य खूब फलता फूलता था।

भगवान श्रीकृष्ण भी अपने गुरुदेव संदीपनी ऋषि व अन्य संतों की चरणरज लेने उनके पास जाते थे। भगवान श्री राम भी उनके गुरु वशिष्ठ के पास से सलाह लेने के बाद ही कुछ निर्यण लेते थे।

वर्तमान में भी साधु-संतों के कारण ही देश में सुख-शांति है और सनातन संस्कृति की सुवास चहुंओर फैल रही है।

 

वर्तमान समय में विदेशी फंडिंग चलने वाली बिकाऊ मीडिया द्वारा एक कुचक्र चलाया जा रहा है…जिसमें सभी हिन्दू साधु-संतों को बदनाम किया जा रहा है।

और दुख की बात यह है कि , भारत की भोली जनता भी उन्हीं की बातों को सच मानकर अपने ही धर्मगुरुओं की निंदा करने लगती है।

कुछ लोग तो यहाँ तक बोलते हैं कि , पहले जैसे साधु-संत नहीं हैं।

भगवान श्री रामजी के गुरु महर्षि वशिष्ठ जी स्वयं श्रीयोगवाशिष्ठ महारामायण में उनसे कहते हैं कि , ” हे रामजी ! मैं बाजार से गुजरता हूँ तो मूर्ख लोग मेरे लिए क्या-क्या बोलते हैं मैं सब जानता हूँ…पर मेरा दयालु स्वभाव है , इससे मैं सबको क्षमा कर देता हूँ । ”

अब इस पर वे लोग क्या कहेंगे  !!?

त्रेतायुग में भी भगवान रामजी जिनको पूजते थे उनको भी जनता ने नही छोड़ा… तो आज तो कलियुग है । लोगों की मति-गति छोटी है । इसलिए साधु-संतों की निंदा करेंगे और उनके भक्तों को अंधभक्त ही बोलेंगे ।

 

आइये आपको कुछ उदाहरण सहित बताते हैं कि पहले जो महापुरुष हो गए उनकी कैसी निंदा हुई और उनके स्वधाम गमन के बाद उन्हें कैसे लोग पूजते गए…

 

स्वामी विवेकानंदजी पर अत्याचार :  ईसाई मिशनरियों तथा उनकी कठपुतली बने प्रताप मजूमदार द्वारा दुश्चरित्रता, स्त्री-लम्पटता, ठगी, जालसाजी, धोखेबाजी आदि आरोप लगाकर अखबारों आदि के द्वारा बहुत बदनामी की गई ।

 

परिणाम : काफी समय तक उनकी जो निंदाएँ चल रही थी उनका प्रतिकार उनके अनुयायियों ने भारत में सार्वजनिक सभाएँ आयोजित करके किया और अंत में स्वामी विवेकानंदजी के पक्ष की ही विजय हुई । (संदर्भ : युगनायक विवेकानंद, लेखक – स्वामी गम्भीरानंद, पृष्ठ 109, 112, 121, 122)

 

महात्मा बुद्ध पर अत्याचार : सुंदरी नामक बौद्ध भिक्षुणी के साथ अवैध संबंध एवं उसकी हत्या के आरोप लगाये गये और सर्वत्र घोर दुष्प्रचार हुआ ।

 

परिणाम : उनके शिष्यों ने सुप्रचार किया । कुछ समय बाद महात्मा बुद्ध निर्दोष साबित हुए । लोग आज भी उनका आदर-सम्मान करते हैं । (संदर्भ : लोक कल्याण के व्रती महात्मा बुद्ध, लेखक – पं. श्रीराम शर्मा आचार्य, पृष्ठ 25)

 

संत कबीरजी पर अत्याचार : अधर्मी, शराबी, वेश्यागामी आदि कई घृणित आरोप लगाये गये और बादशाह सिकंदर के आदेश से कबीरजी को गिरफ्तार किया गया और कई प्रकार से सताया गया ।

 

परिणाम : अंत में बादशाह ने माफी माँगी और शिष्य बन गया ।(संदर्भ : कबीर दर्शन, लेखक – डॉ. किशोरदास स्वामी, पृष्ठ 92 से 96)

 

संत नरसिंह मेहताजी पर अत्याचार : जादू के बल पर स्त्रियों को आकर्षित कर उनके साथ स्वेच्छा से विहार करने के आरोप लगाकर खूब बदनाम व प्रताड़ित किया गया ।

 

परिणाम : नरसिंह मेहताजी निर्दोष साबित हुए । आज भी लाखों-करोड़ों लोग उनके भजन गाकर पवित्र हो रहे हैं । (संदर्भ : भक्त नरसिंह मेहता, पृष्ठ 129, प्रकाशन – गीताप्रेस)

 

स्वामी रामतीर्थ पर अत्याचार : पादरियों और मिशनरियों ने लड़कियों को भेजकर दुश्चरित्र सिद्ध करने के षड्यंत्र रचे और खूब बदनामी की । जान से मार डालने की धमकी एवं अन्य कई प्रताड़नाएँ दी गई ।

 

परिणाम : स्वामी रामतीर्थजी के सामने बड़ी-बड़ी मिशनरी निरुत्तर हो गई। उनके द्वारा प्रचारित वैदिक संस्कृति के ज्ञान-प्रकाश से अनेकों का जीवन आलोकित हुआ । (संदर्भ : राम जीवन चित्रावली, रामतीर्थ प्रतिष्ठान, पृष्ठ 67 से 72)

 

 

संत ज्ञानेश्वर महाराज पर अत्याचार : कई वर्षों तक समाज से बहिष्कृत करके बहुत अपमान व निंदा की गयी । इनके माता-पिता को 22 वर्षों तक कभी तृण-पत्ते खाकर और कभी केवल जल या वायु पीके जीवन-निर्वाह करना पड़ा । ऐसी यातनाएँ ज्ञानेश्वरजी को भी सहनी पड़ी ।

 

परिणाम : लाखों-करोड़ों लोग आज भी संत ज्ञानेश्वर जी द्वारा रचित ‘ज्ञानेश्वरी गीता’ को श्रद्धा से पढ़-सुन के अपने हृदय में ज्ञान-भक्ति की ज्योति जगाते हैं और उनका आदर-पूजन करते हैं । (संदर्भ : श्री ज्ञानेश्वर चरित्र और ग्रंथ विवेचन, लेखक – ल.रा. पांगारकर, पृष्ठ 32, 33, 38)

भक्तिमती मीराबाई पर अत्याचार : चरित्रभ्रष्टता का आरोप लगाया गया । कभी नाग भेजकर तो कभी विष पिला के, कभी भूखे शेर के सामने भेजकर तो कभी तलवार चला के जान से मारने के घृणित कुत्सित प्रयास हुए ।

 

परिणाम : जान से मारने के सभी प्रयास विफल हुए । मीराबाई के प्रति लोगों की सहानुभूति बढ़ती गई । उनके गाए पदोें को पढ़-सुनकर एवं गा कर आज भी लोगों के विकार मिटते हैं, भक्ति बढ़ती है ।

 

वर्तमान में भी शंकराचार्य श्री जयेन्द्र सरस्वतीजी, स्वामी नित्यानंदजी, स्वामी केशवानंदजी, श्री कृपालुजी महाराज, संत आशारामजी बापू, साध्वी प्रज्ञा सिंह, फलहारी बाबा आदि हमारे संतों को षड्यंत्र में फँसाकर झूठे आरोप लगा के गिरफ्तार किया गया, प्रताड़ित किया गया, अधिकांश मीडिया द्वारा झूठे आरोपों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया परंतु जीत हमेशा सत्य की ही होती रही है और होगी ।

 

इतिहास उठाकर देखें तो पता चलेगा , कि सच्चे संतों व महापुरुषों की जय-जयकार होती रही है और आगे भी होती रहेगी । दूसरी ओर निंदकों की दुर्गति होती है और समाज उन्हें घृणा की दृष्टि से ही देखता है । अतएव समझदारी इसी में है कि हम संतों का आदर करके या उनके आदर्शों को अपनाकर लाभ न ले सकें तो कोई बात नहीं…

अरे कम-से-कम उनकी निंदा कर / सुन कर या उनके प्रति लोगों की श्रद्धा-विश्वास को तोड़कर समाज का अहित और अपने पुण्य व शांति का नाश करके अपनी 21 पीढ़ियों को नर्क में धकेलने से तो बचें ।

 

सनातन धर्म के संतों ने जब-जब व्यापकरूप से समाज को जगाने का प्रयास किया है, तब-तब उनको विधर्मी ताकतों के द्वारा बदनाम करने के लिए षड्यंत्र किये गये हैं । जिनमें वे हिन्दू समाज और कुछ पथभ्रष्ट व तथाकथित हिन्दू धर्म गुरुओं को भी मोहरा बनाकर हिन्दू संतों के खिलाफ दुष्प्रचार करने में सफल हो जाते हैं ।

 

यह हिन्दुओं की दुर्बलता है , कि वे विधर्मियों के चक्कर में आकर अपने ही संतों की निंदा सुनकर विधर्मियों की हाँ में हाँ करने लग जाते हैं और उनकी हिन्दू धर्म को नष्ट करने की गहरी साजिश को समझ नहीं पाते…या शायद समझना चाहते ही नहीं  !!!

 

अब हम इसे हिन्दुओं का भोलापन तो बिल्कुल भी नहीं सकते हैं।

निश्चित रूप से यह अपने धर्म के प्रति अपने उत्तरदायित्व से कन्नी काटना और पलायनवादी स्वभाव है। ऐसे अकर्मण्य हिन्दू ऐसे ही मामलों में अक्सर सहिष्णुता की चादर ओढ़कर खुद की जान छुड़ाने की कोशिश करते देखे जाते हैं और खुद के हितैषी महापुरुषों और संतजनों पर आरोप मढ़कर विधर्मियों द्वारा महिमामंडित होकर आराम से बच निकलते हैं।

 

 

आज के समय में तो यह एक बेहद संवेदनशील और गंभीर विषय है।

क्योंकि गीतकार ने स्वयं कहा है…” यतो धर्मः ततो जयः…”

हमें उसी डाल को तो कम से कम नहीं काटना चाहिए, कि जिसपर खुद बैठे हों। हमें हमारे शास्त्र में वर्णित यह बात भी नहीं भूलनी चाहिए कि,… ” धर्मो रक्षति रक्षितः ”

 

अतः अब भी समय है…हिन्दू सावधान हो जाएं !!

 

 

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