22 October 2022
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शक संवत अनुसार आश्विन कृष्ण चतुर्दशी तथा विक्रम संवत अनुसार कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी नरक चतुर्दशी के नामसे जानते हैं । इस तिथिके नाम का इतिहास इस प्रकार है:-
‘पूर्वकाल में प्राग्ज्योतिषपुर में भौमासुर नामक एक बलशाली असुर राज्य करता था । उसका एक अन्य नाम भी था – नरकासुर । यह दुष्ट दैत्य देवताओं और पुरुषों के साथ-साथ स्त्रीयों को भी अत्यंत कष्ट देने लगा । जीतकर लाई हुई सोलह सहस्र राज्यकन्याओं को उसने बंदी बनाकर उनसे विवाह करने का निश्चय किया । सर्वत्र त्राहि-त्राहि मच गई । यह समाचार मिलते ही भगवान श्रीकृष्ण ने सत्यभामा सहित उस असुर पर आक्रमण किया । नरकासुर का अंत कर सर्व राजकन्याओं को मुक्त किया । वह दिन था शक संवत अनुसार आश्विन कृष्ण चतुर्दशी अर्थात विक्रम संवत अनुसार कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी का । तब से यह दिन नरक चतुर्दशी के नाम से मनाते हैं ।’
मरते समय नरकासुर ने भगवान श्रीकृष्ण से वर मांगा, कि ‘आज के दिन मंगल स्नान करने वाला नरक की यातनाओं से बच जाए ।’ तदनुसार भगवान श्रीकृष्णने उसे वर दिया । इसलिए इस दिन सूर्योदय से पूर्व अभ्यंग स्नान करने की प्रथा है । भगवान श्रीकृष्ण द्वारा नरकासुर को दिए गए वर के अनुसार इस दिन सूर्योदय से पूर्व जो अभ्यंग स्नान करता है, उसे नरक यातना नहीं भुगतनी पडती ।
नरक चतुर्दशी का भावार्थ
इस दिन सूर्योदय से पहले उबटन लगाकर, शरीर की मैल उतारें एवं स्नान करें । घर द्वार व दुकान को स्वच्छ कर, रंगोली सजाकर, उसमें रंग भरकर आंगन सुशोभित करें । परंतु यह सर्व बाह्य रूपसे ही है । मन की मैल, बुरे विचार दूर करने की बात सूझती भी नहीं । बुरे विचारों के कारण समाज में दूषित वातावरण निर्माण होता है । यहां-वहां कूडा- कचरा, प्रदूषणसे स्वास्थ्य पर अनिष्ट परिणाम होता है । इस प्रकार नरक समान स्थिति हो जाती है । ऐसे में समाज से बुरे विचारों की मलिनता हटाने के लिए, अपने हाथ में ज्ञानरूपी झाड़ू उठाने से ही स्वच्छता होती है ।
इसीलिए सीमित अवधितक प्रसन्न दिखाई देनेवाला वातावरण, सदा के लिए प्रदूषित रहता है । जब तक मन की मलिनता नहीं निकलती एवं उसके स्थान पर दैवी विचारों की स्थापना नहीं होती, तब तक नरक चतुर्दशी का महत्त्व नहीं समझ में आता । संक्षेप में, नरक चतुर्दशी कहती है, `बुरी वृत्ति को जड से मिटा दो । दुर्गंध को दूर करो, तब ही हम खरे अर्थ से दीपावली मना पाएंगे ।
नरक चतुर्दशी के दिन प्रात: अलक्ष्मी का मर्दन कर अपने में नरक रूपी पाप वासनाओं का समूल नाश कर, अहंकार का उच्चाटन करना चाहिए । तब ही आत्मा पर पडा अहंका पट अर्थात परदा हटेगा और आत्मज्योत प्रकाशित होगी । इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया ।
इसका अर्थ है, `दुर्जन शक्ति पर सज्जन शक्ति की विजय ।’ जिस समय सज्जन शक्ति जागृत होती है और वह संगठित रूप से कार्य करने लगती है, तब दुर्जन शक्ति निष्प्रभावी बनती है । `प्रत्येक व्यक्ति स्वयंमें आसुरी वृत्ति एवं विघातक वृत्ति को घटाकर, उसके स्थान पर दैवी वृत्ति की स्थापना करे । आगे इसका परिणाम समाज पर होता है और फिर राष्ट्रपर ।’ इसलिए सज्जन संगठित होकर अपने ज्ञान से समाज को लाभान्वित करें । यही इस नरक चतुर्दशी से स्पष्ट होता है ।
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