26 May 2025
जब ब्रिटिशों ने भारत को “खजाना” समझा — एक ऐतिहासिक कथा
16वीं से 17वीं सदी के बीच यूरोप में एक अजीब सी होड़ मची थी — नई ज़मीनों की तलाश, व्यापारिक रास्तों का विस्तार, और धन-संपत्ति की खोज। पुर्तगाल, स्पेन, डच और ब्रिटेन — सभी देश समुद्री मार्गों के ज़रिए एशिया, अफ्रीका और अमेरिका तक पहुँचने की दौड़ में थे।
इसी सिलसिले में 1600 ईस्वी में इंग्लैंड की रानी एलिज़ाबेथ प्रथम ने एक कंपनी को आधिकारिक रूप से व्यापार करने का अधिकार दिया। इस कंपनी का नाम था — ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company)। इसका उद्देश्य था भारत जैसे देशों से मसाले, रत्न, कपड़े और दूसरी मूल्यवान वस्तुएं खरीदकर यूरोप में बेचना।
भारत: एक समृद्धि की भूमि
जब ब्रिटिशों के पहले व्यापारी भारत पहुँचे — सबसे पहले सूरत बंदरगाह (1608) और फिर मुग़ल सम्राट जहांगीर के दरबार तक (1615 में सर थॉमस रो), तब उन्होंने देखा कि भारत सिर्फ एक देश नहीं, बल्कि एक धन, ज्ञान और संस्कृति से भरा खजाना है। यहाँ की कपड़ा बुनाई, हस्तशिल्प, मसाले, हीरे-जवाहरात और कृषि व्यवस्था यूरोप से कहीं अधिक विकसित थी।
उनके लिए यह अविश्वसनीय था कि एक देश इतना समृद्ध हो सकता है। ईस्ट इंडिया कंपनी ने पहले तो विनम्र व्यापारी बनकर अपने पैर जमाए। लेकिन धीरे-धीरे, उन्होंने स्थानीय शासकों के बीच मतभेदों का फायदा उठाया, सैन्य ताकत बनाई और व्यापार को राजनीतिक नियंत्रण में बदलना शुरू कर दिया।
1757: प्लासी का युद्ध और सत्ता की शुरुआत
एक महत्वपूर्ण मोड़ आया 1757 में — जब अंग्रेजों ने बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को हराकर प्लासी का युद्ध जीता। इस जीत ने भारत में ब्रिटिश सत्ता की नींव रखी। अब वे सिर्फ व्यापारी नहीं, बल्कि शासक बनने लगे।
इसके बाद कंपनी ने पूरे भारत में धीरे-धीरे अपने किले, कार्यालय, सेनाएं और कर संग्रह प्रणाली स्थापित कर ली। एक व्यापारिक कंपनी अब एक साम्राज्य बन चुकी थी।
1857: क्रांति और बदलाव
लगभग 200 सालों तक ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत पर सीधा या अप्रत्यक्ष शासन किया। लेकिन 1857 में जब भारत में पहली बड़ी आज़ादी की क्रांति भड़की, तब ब्रिटिश सरकार को कंपनी का शासन समाप्त कर सीधा राजतंत्र स्थापित करना पड़ा। इसके बाद भारत ब्रिटिश क्राउन के अधीन आ गया — जिसे हम ब्रिटिश राज के नाम से जानते हैं।
निष्कर्ष
ब्रिटिशों ने भारत को एक व्यापारिक अवसर के रूप में देखा, लेकिन जब उन्होंने यहाँ की संपत्ति, संसाधनों और संस्कृति को जाना, तो लालच ने उन्हें व्यापारी से शासक बना दिया। यह इतिहास हमें सिखाता है कि किसी देश की आर्थिक ताकत ही बाहरी शक्तियों को आकर्षित करती है — और भारत हमेशा से विश्व का आर्थिक और सांस्कृतिक केंद्र रहा है।
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