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इंडोनेशिया और भारत का प्राचीन शिक्षा-सेतु: Indian Universities की पृष्ठभूमि
Indian Universities की जड़ों को समझने के लिए हमें प्राचीन भारत और इंडोनेशिया के बीच बने शिक्षा-सेतु को देखना पड़ता है।
यही से पता चलता है कि भारत की उच्च शिक्षा परंपरा केवल सीमित भूभाग तक नहीं, बल्कि समुद्र पार के देशों तक फैली हुई थी।
इंडोनेशिया और भारत का प्राचीन शिक्षा-सेतु: क्यों विद्यार्थी पहले इंडोनेशिया जाकर फिर भारत में पढ़ते थे?
भारत की शिक्षा-परंपरा और Sahana Singh की पुस्तक
“Revisiting the Educational Heritage of India” आधारित एक विस्तृत विश्लेषण
भारत का प्राचीन इतिहास केवल राजाओं, युद्धों और साम्राज्यों की गाथा नहीं है; यह ज्ञान, शिक्षा और सभ्यता की एक अनोखी यात्रा भी है।
इसी यात्रा का एक कम–ज्ञात लेकिन अत्यंत रोमांचक अध्याय है— विद्यार्थियों द्वारा भारत आने से पहले इंडोनेशिया में शिक्षा ग्रहण करना।
इस विशिष्ट परंपरा को समझने के लिए हमें भारतीय शिक्षा-प्रणाली, समुद्री संबंधों और दक्षिण–पूर्व एशिया में भारतीय ज्ञान के विस्तार को एक साथ देखना पड़ता है।
Sahana Singh की चर्चित पुस्तक “Revisiting the Educational Heritage of India” इस संबंध को गहराई से समझने के लिए महत्वपूर्ण स्रोत है।
इस संदर्भ में Indian Universities की अवधारणा भी और अधिक स्पष्ट हो जाती है, क्योंकि उनकी जड़ें इन्हीं प्राचीन विश्वविद्यालयों और शिक्षा-सेतुओं में हैं।
इस विषय पर विस्तृत दृष्टिकोण और अन्य प्रेरक लेख आप हमारी वेबसाइट
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Indian Universities और भारत का प्राचीन शिक्षा-साम्राज्य
लेखिका स्पष्ट करती हैं कि भारत उस युग में केवल अपना नहीं, बल्कि पूरी एशिया का शिक्षा–केंद्र था।
भारत में:
- नालंदा
- तक्षशिला
- विक्रमशिला
- वल्लभी
- ओदंतपुरी
जैसे विश्व-स्तरीय विश्वविद्यालय मौजूद थे, जो कई देशों से छात्रों को आकर्षित करते थे।
ये संस्थान ही आगे चलकर Indian Universities जैसी आधुनिक अवधारणाओं के लिए प्रेरणा बने।
इन विश्वविद्यालयों में प्रवेश आज के Harvard या Oxford जितना नहीं, उससे अधिक कठिन था।
नालंदा की प्रवेश प्रक्रिया 3–7 दिनों तक चलने वाले शास्त्रार्थों और मौखिक परीक्षाओं पर आधारित थी, जिसमें केवल उच्च कोटि के विद्यार्थी सफल होते थे।
इसी कारण विद्यार्थियों को प्रारंभिक तैयारी की आवश्यकता होती थी—और यह तैयारी इंडोनेशिया में बहुत आसानी से उपलब्ध थी।
इंडोनेशिया: Indian Universities से पहले का शिक्षा-पड़ाव
प्राचीन इंडोनेशिया—विशेषकर जावा, सुमात्रा और बाली—भारतीय संस्कृति का गहरा केंद्र था।
शैक्षणिक संस्थान वहाँ भारतीय शिक्षा मॉडल के आधार पर चलते थे:
- संस्कृत मुख्य अध्ययन भाषा थी
- वेद, वेदांग, व्याकरण और तर्कशास्त्र पढ़ाया जाता था
- भारतीय आचार्य महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त थे
- गुरुकुल व्यवस्था भारतीय प्रणाली जैसी ही थी
- चरित्र, अनुशासन और समाज-सेवा पर ज़ोर दिया जाता था
इस तरह इंडोनेशिया एक pre-university training system की तरह विकसित हुआ—जहाँ विद्यार्थी भारत की कठोर उच्च शिक्षा के लिए तैयार होते थे।
आगे चलकर जिस तरह Indian Universities उच्च शिक्षा का केंद्र बनीं, उसी तरह उस समय भारत के प्राचीन विश्वविद्यालय और उनसे पहले इंडोनेशिया के ये केंद्र थे।
समुद्री संबंध: शिक्षा और संस्कृति का स्वर्णिम पुल
समुद्री मार्ग से Indian Universities तक ज्ञान का प्रवाह
भारत और इंडोनेशिया के बीच समुद्री व्यापार मार्ग केवल वस्तुओं का मार्ग नहीं था; वह ज्ञान, ग्रंथों, आचार्यों और छात्रों का मार्ग भी था।
भारत से गए विद्वानों ने:
- रामायण
- महाभारत
- उपनिषद
- अष्टाध्यायी
- अर्थशास्त्र
- पंचतंत्र
जैसे ग्रंथ वहाँ पहुँचाए, जिनका स्थानीय रूपांतरण “काकाविन साहित्य” के रूप में हुआ।
इंडोनेशिया में आज भी काकाविन रामायण और काकाविन महाभारत पढ़े जाते हैं, जो भारतीय शिक्षा के गहरे प्रभाव का प्रमाण हैं।
यही परंपरा बाद में Indian Universities में पढ़ाए जाने वाले भारतीय ज्ञान-विषयों के लिए ऐतिहासिक पृष्ठभूमि बनती है।
भाषा समानता: अध्ययन को सरल बनाती थी
भाषाई सेतु और Indian Universities के छात्रों के लिए लाभ
पुरानी जावानी भाषा और कावी लिपि पर संस्कृत का गहन प्रभाव था।
इस वजह से भारतीय विद्यार्थियों को वहाँ की शिक्षा में:
- भाषा अवरोध
- संस्कृति अवरोध
- शिक्षण शैली का फर्क
कुछ भी बाधा नहीं बनता था।
इसके विपरीत, उन्हें भारतीय परंपरा का ही विस्तार मिलता था, जो आगे की पढ़ाई में अत्यंत सहायक था।
जब छात्र आगे चलकर भारत के उच्च विश्वविद्यालयों या आज की भाषा में कहें तो Indian Universities जैसे संस्थानों में प्रवेश लेते, तो यह भाषाई आधार उनके लिए बड़ी शक्ति बनता था।
इंडोनेशिया में भारतीय आचार्यों की प्रतिष्ठा
Sahana Singh बताती हैं कि इंडोनेशिया के कई शाही परिवारों ने भारतीय आचार्यों को:
- राजगुरु
- सलाहकार
- शिक्षा-संरक्षक
- तथा विश्वविद्यालयों में मुख्य आचार्य
के रूप में नियुक्त किया था। इसका अर्थ यह था कि इंडोनेशिया की उच्च शिक्षा खुद भारतीय ज्ञान के द्वारा संचालित होती थी—
और वहाँ वर्षों अध्ययन करके छात्र भारत की उच्च विश्वविद्यालयों में प्रवेश के योग्य बन जाते थे।
यही परंपरा आगे चलकर Indian Universities के लिए भी एक नैतिक और बौद्धिक आदर्श के रूप में देखी जा सकती है।
चरित्र और कौशल: शिक्षा का भारतीय मूल
भारतीय शिक्षा का उद्देश्य केवल विद्या अर्जन नहीं था।
यह तीन मूलभूत स्तंभों पर आधारित थी:
- चरित्र निर्माण (धर्म, सत्य, सेवा, अनुशासन)
- कौशल—कृषि, नौकायन, आयुर्वेद, गणित, खगोलशास्त्र
- आध्यात्मिक उन्नति—ध्यान, योग, मानसिक संतुलन
इंडोनेशिया में भी यही तीनों आयाम शिक्षा के अंग थे।
यही कारण था कि भारत में आने वाले विद्यार्थी पूर्णत: परिपक्व और संस्कारित होकर आते थे।
आज जब हम Indian Universities की भूमिका पर विचार करते हैं, तो यह स्पष्ट होता है कि यदि वे इन मूल्यों को पुनः केंद्र में लाएँ, तो भारत एक बार फिर शिक्षा के वैश्विक मानचित्र पर अग्रणी स्थान ले सकता है।
आज भी दिखता भारतीय शिक्षा का प्रभाव
इंडोनेशिया में आज भी भारतीय संस्कृति की जड़ें जीवित हैं:
- बाली के मंदिरों में संस्कृत मंत्र
- इंडोनेशिया की संसद का राष्ट्रीय प्रतीक “गरुड़”
- शाही समारोहों में संस्कृत छंद
- छाया-नाटकों में रामायण और महाभारत
- योग–ध्यान का प्रमुख स्थान
- संस्कृत आधारित सरकारी शब्दावली
ये सब प्रमाण हैं उस गहरे शिक्षा-संबंध के जो हज़ारों वर्ष पहले स्थापित हुआ था।
इन्हीं जड़ों से प्रेरित होकर आज की Indian Universities भी सांस्कृतिक और शैक्षिक पुनर्जागरण की दिशा में ठोस कदम उठा सकती हैं।
निष्कर्ष: भारत—विश्वगुरु का वास्तविक अर्थ और Indian Universities
जब विद्यार्थी भारत आने से पहले इंडोनेशिया जाते थे, तो यह किसी मजबूरी का परिणाम नहीं था,
बल्कि एक सुव्यवस्थित, व्यापक और अंतरराष्ट्रीय शिक्षा-परंपरा का हिस्सा था।
भारत और इंडोनेशिया एक ही सांस्कृतिक जड़ से जुड़े हुए थे, और शिक्षा उनका सबसे मजबूत सेतु था।
इंडोनेशिया वह पहला द्वार था
जहाँ विद्यार्थी भारतीय ज्ञान परंपरा में प्रवेश करते थे,
और भारत वह महासागर था
जहाँ वे ज्ञान की गहराई में उतरते थे।
इसीलिए भारत को “विश्वगुरु” कहा गया—
क्योंकि उसका प्रकाश केवल अपनी सीमाओं तक नहीं,
बल्कि समुद्र पार की सभ्यताओं तक फैलता था।
आज जब हम Indian Universities की बात करते हैं, तो हमें इस प्राचीन विरासत और शिक्षा-सेतु को याद रखते हुए
अपने शिक्षा-मॉडल को पुनर्गठित करने की आवश्यकता है, ताकि भारत पुनः ज्ञान का वास्तविक विश्वगुरु बन सके।
