भारत में Cheese की ज़रूरत क्यों नहीं | Indian Food Wisdom
भारत की रसोई सदियों से “स्वास्थ्य और स्वाद” दोनों का संगम रही है। हमारे दाल, चावल, रोटी, सब्ज़ी, दही, छाछ और घी से बने भोजन केवल पेट भरने के लिए नहीं, बल्कि शरीर, मन और आत्मा को पोषित करने के लिए बनाए गए हैं। लेकिन आज के समय में पश्चिमी खानपान की नकल में “चीज़” हमारे भोजन का हिस्सा बन गई है। ऐसे में एक सवाल गंभीरता से उठता है — क्या सच में भारतीयों को चीज़ की ज़रूरत है? या यह केवल विदेशी दिखावे की वस्तु बनकर रह गई है?
1. भारतीय भोजन — संतुलन का अद्भुत विज्ञान
आयुर्वेद के अनुसार, भारतीय आहार ऐसा होना चाहिए जो शरीर के तीनों दोष — वात, पित्त और कफ — को संतुलित रखे। हमारे पारंपरिक भोजन में यह संतुलन सहज रूप से मौजूद है।
- दालें, अनाज, फल, सब्ज़ियाँ और घी शरीर को ऊर्जा, प्रोटीन और आवश्यक वसा देते हैं।
- हल्दी, अदरक, जीरा, धनिया और हींग जैसे मसाले पाचन तंत्र को मजबूत बनाते हैं।
- मौसमी फल-सब्ज़ियाँ शरीर को मौसम के अनुसार अनुकूल बनाती हैं।
यानी Indian Food Wisdom यही सिखाता है कि भोजन स्वादिष्ट हो लेकिन स्वास्थ्यकारी भी।
2. चीज़ — यूरोप का भोजन, भारत की ज़रूरत नहीं
चीज़ का जन्म यूरोप के ठंडे देशों में हुआ था, जहाँ शरीर को अतिरिक्त फैट और ऊष्मा की आवश्यकता होती है। भारत का मौसम बिल्कुल विपरीत है। ऐसे में चीज़ का अधिक सेवन भारतीय शरीर पर उल्टा असर डाल सकता है।
- यह पचने में भारी होती है और गैस, अपच, कब्ज़ जैसी समस्याएँ बढ़ाती है।
- सैचुरेटेड फैट और सोडियम अधिक होते हैं, जो हृदय के लिए हानिकारक हैं।
- यह “कफ” और “आलस्य” बढ़ाती है, जिससे सुस्ती और मोटापा आता है।
3. प्रोटीन और कैल्शियम के भारतीय स्रोत
कई लोग चीज़ को “प्रोटीन और कैल्शियम का स्रोत” मानते हैं, लेकिन भारतीय आहार पहले से ही इन पोषक तत्वों से भरपूर है।
- दालें — मूंग, मसूर, चना, तुअर, राजमा
- दूध, दही, छाछ, पनीर — कैल्शियम से भरपूर
- बाजरा, रागी, ज्वार — हड्डियों के लिए प्राकृतिक स्रोत
इस प्रकार Indian Food Wisdom हमें सिखाता है कि सादगी में भी सम्पूर्ण पोषण छिपा है।
4. प्रोसेस्ड चीज़ — स्वाद के बदले स्वास्थ्य का सौदा
आजकल बाजार में मिलने वाली चीज़ अधिकतर प्रोसेस्ड होती है, जिसमें कृत्रिम नमक और प्रिज़रवेटिव्स डाले जाते हैं। इससे शरीर में LDL कोलेस्ट्रॉल बढ़ता है, जो हृदय रोगों का कारण बनता है।
लंबे समय में यह आदत शरीर की प्राकृतिक प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर करती है।
5. भारतीय स्वाद के प्राकृतिक विकल्प
अगर किसी को “चीज़ी” स्वाद पसंद है, तो भारतीय रसोई में कई स्वास्थ्यवर्धक विकल्प मौजूद हैं — पनीर टिक्का, दाल चिल्ला, उत्तपम, ढोकला, कढ़ी पकोड़ा आदि।
दही और छाछ पेट ठंडा रखते हैं जबकि घी मस्तिष्क और हड्डियों के लिए वरदान है।
6. आयुर्वेद और ऋतुचक्र का संतुलन
“हितभुक्, मितभुक्, ऋतभुक्” — आयुर्वेद का यह सिद्धांत बताता है कि भोजन वही उत्तम है जो हितकारी, संयमित और ऋतु अनुसार हो। चीज़ इनमें से किसी मानक पर खरी नहीं उतरती।
7. आधुनिक बीमारियाँ और चीज़ का योगदान
भारत में मोटापा, मधुमेह, ब्लड प्रेशर और हृदय रोग तेजी से बढ़ रहे हैं। शोध बताते हैं कि जो लोग चीज़युक्त भोजन का सेवन करते हैं उनमें हृदय रोग का खतरा 25-30% और वजन वृद्धि 40% अधिक होती है।
Indian Food Wisdom — स्वास्थ्य और संस्कृति दोनों की रक्षा
भारत को चीज़ की नहीं, अपनी संस्कृति और परंपरा की याद की ज़रूरत है। हमारी थाली — जिसमें दाल, रोटी, सब्ज़ी, दही और घी का संतुलन है — विश्व की सबसे वैज्ञानिक थालियों में से एक है।
निष्कर्ष
विदेशी स्वाद का आकर्षण क्षणिक है, पर भारतीय भोजन दीर्घकालिक स्वास्थ्य का आधार है। हमें अपनी भारतीय भोजन संस्कृति पर गर्व होना चाहिए — क्योंकि “हमारा भोजन ही हमारी औषधि है, और हमारी थाली ही हमारा स्वास्थ्य है।”
चीज़ स्वाद दे सकती है, पर भारतीय भोजन जीवन देता है।
