नवरात्रि महाष्टमी (Mahashtami) का महत्व — वेद, पुराण, कथाएँ

Mahashtami का महत्व : वेद, पुराण और पौराणिक कथा

नवरात्रि के नौ दिनों में Mahashtami का विशेष स्थान है। यह वही दिन है जब माँ दुर्गा ने महिषासुर का वध कर देवताओं को मुक्त कराया और धर्म की स्थापना की।

✨ Mahashtami की पृष्ठभूमि

देवी महात्म्य (मार्कण्डेय पुराण) के दुर्गा सप्तशती भाग में Mahashtami का विस्तृत वर्णन मिलता है। इस तिथि को शक्ति की विजय और धर्म की रक्षा का प्रतीक माना जाता है।

वेद और उपनिषद में Mahashtami का महत्व

  • ऋग्वेद (10/125 – देवी सूक्त) में देवी स्वयं को शक्ति और अधिष्ठात्री बताती हैं।
  • यजुर्वेद (तैत्तिरीय आरण्यक) में “दुर्गे देवि नमस्तुभ्यम्” मंत्र से संकट निवारण का वर्णन है।
  • कठोपनिषद शक्ति को प्रेरणा और गति देने वाली शक्ति कहता है।

पुराणों में Mahashtami का वर्णन

देवी भागवत, कालिका पुराण, स्कंदपुराण और मार्कण्डेय पुराण में Mahashtami को पाप-नाश और सर्वसिद्धि प्रदायिनी तिथि बताया गया है।

पौराणिक कथाएँ

  • महिषासुर वध – Mahashtami को देवी ने महिषासुर का वध किया।
  • कालिका रूप – देवी ने रक्तबीज जैसे असुरों का नाश किया।
  • रामायण – श्रीराम ने लंका युद्ध से पूर्व अष्टमी के दिन चंडी पूजा की और विजय प्राप्त की।

Mahashtami पूजा विधि

  • स्नान और संकल्प
  • कलश स्थापना
  • दुर्गा सप्तशती पाठ
  • कन्या पूजन
  • हवन और पुष्पांजलि
  • भोग अर्पण

Mahashtami का वैज्ञानिक दृष्टिकोण

उपवास और सात्त्विक आहार से शरीर शुद्ध होता है, हवन से वातावरण में ऑक्सीजन और सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है। सामूहिक साधना से मानसिक शक्ति और आत्मबल मिलता है।

निष्कर्ष

Mahashtami केवल धार्मिक उत्सव नहीं है, बल्कि यह शक्ति, साधना और वैज्ञानिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। श्रद्धा और भक्ति से पूजा करने वाला साधक माँ दुर्गा की कृपा, शक्ति और समृद्धि प्राप्त करता है।

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