क्या आपने कभी सोचा है कि हमारे ज्योतिर्लिंगों की जगहों पर ही सबसे अधिक रेडियोएक्टिविटी क्यों पाई जाती है? क्या यह महज संयोग है या इसके पीछे कोई गहरा विज्ञान छिपा है?
भारत सरकार के न्यूक्लियर रिएक्टर के अलावा जिन स्थानों पर सबसे ज्यादा रेडिएशन पाया गया है, वे सभी हमारे 12 ज्योतिर्लिंगों की पवित्र भूमि हैं।
क्या शिवलिंग वास्तव में न्यूक्लियर रिएक्टर जैसे हैं?
- शिवलिंग की आकृति और संरचना न्यूक्लियर रिएक्टर जैसी होती है।
- उन पर जल चढ़ाने की परंपरा उन्हें शांत रखने के उद्देश्य से है — जैसे रिएक्टर को ठंडा किया जाता है।
- बिल्व पत्र, धतूरा, आकमद, गुड़हल जैसे पदार्थ न्यूक्लियर एनर्जी को अवशोषित करने वाले होते हैं।
- शिवलिंग पर चढ़ाया गया जल भी रिएक्टिव हो जाता है — इसलिए जल निकासी नलिका को लांघा नहीं जाता।
- भाभा एटॉमिक रिएक्टर का डिज़ाइन भी शिवलिंग के समान है।
शिवलिंग पर चढ़ाया गया जल कैसे बनता है औषधि?
शिवलिंग पर चढ़ा जल जब बहती हुई नदी में जाता है तो वह औषधीय गुणों से भर जाता है। यह सनातन परंपरा की अद्वितीय वैज्ञानिक सोच को दर्शाता है।
उज्जैन: पृथ्वी का केंद्र और ज्योतिर्लिंगों का रहस्यमयी नेटवर्क
उज्जैन को पृथ्वी का केंद्र माना गया है। यहाँ से कई प्रमुख ज्योतिर्लिंगों की दूरी निम्न प्रकार की है:
- सोमनाथ – 777 किमी
- ओंकारेश्वर – 111 किमी
- भीमाशंकर – 666 किमी
- काशी विश्वनाथ – 999 किमी
- मल्लिकार्जुन – 999 किमी
- केदारनाथ – 888 किमी
- त्रयंबकेश्वर – 555 किमी
- बैजनाथ – 999 किमी
- रामेश्वरम् – 1999 किमी
- घृष्णेश्वर – 555 किमी
सूर्य, खगोलशास्त्र और उज्जैन
उज्जैन में लगभग 2050 वर्ष पूर्व सूर्य गणना और ज्योतिष अध्ययन हेतु मानव निर्मित यंत्र बनाए गए। अंग्रेजों द्वारा बनाए गए कर्क रेखा के मध्य में भी उज्जैन ही आता है।
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