मानवता के खिलाफ युद्ध | पहलगाम आतंकी हमला 22 अप्रैल 2025

24 April 2025

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मानवता के खिलाफ युद्ध में हम कब तक चुप रहेंगे?

22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुआ आतंकी हमला सिर्फ एक भौगोलिक स्थान नहीं, बल्कि पूरी मानवता की आत्मा पर हमला था।

  • 28 निर्दोष लोग मारे गए, कई घायल हुए।
  • शांत घाटियाँ गोलियों की आवाज़ से थर्रा उठीं।
  • हमने फिर खो दिए वे लोग जो केवल इंसान थे—किसी धर्म, जाति या विचारधारा से परे।

यह केवल हमला नहीं था, एक चेतावनी थी

जब एक बम फटता है या गोली चलती है, उसका निशाना सिर्फ शरीर नहीं, बल्कि इंसानियत होती है।
हर बार की तरह हम खबरें पढ़ते हैं, दुख जताते हैं… और फिर भूल जाते हैं।

लेकिन अब सवाल यह है—क्या हम अब भी खामोश रहेंगे?

हम इतने आदी हो चुके हैं इन हमलों के कि हमारी संवेदनाएं सुन्न हो गई हैं। पर हर शहीद सिर्फ आंकड़ा नहीं होता—वो किसी का सपना, सहारा, उम्मीद होता है।

चुप्पी भी एक अपराध है

हर बार जब हम चुप रहते हैं, हम इस हिंसा को अप्रत्यक्ष रूप से स्वीकार कर लेते हैं।

  • आतंक केवल बंदूक से नहीं, डर, घृणा और चुप्पी से भी पनपता है।

अगर हम हर हमले पर बस दुख जताकर बैठ जाएँ, तो हम उस बुराई को बढ़ावा दे रहे हैं, जो एक दिन सबको लील लेगी।

यह सिर्फ सीमा पार की समस्या नहीं

आतंकवाद एक विचारधारा है।
यह किसी एक धर्म, देश या सीमित क्षेत्र की समस्या नहीं—यह पूरी मानवता के खिलाफ युद्ध है।

यह सोशल मीडिया, स्कूलों, और हमारी चुप्पी में पल रहा है

समाधान क्या है?

समाधान बंदूक नहीं, शिक्षा, संवाद और करुणा है।

  • बच्चों को सिखाइए: हर जान की कीमत बराबर है।
  • युवाओं को सिखाइए: बहस से समाधान निकलता है, बंदूक से नहीं।
  • समाज को बताइए: विविधता कमजोरी नहीं, ताकत है।

अब समय है जागने का

यह हमला एक चेतावनी है।
अगर अब भी हम चुप हैं, तो हम हर उस निर्दोष जान के गुनहगार हैं जो इस नफरत का शिकार हुई।

अब वक्त है कि हम:

  • ✔ बोलें
  • ✔ खड़े हों
  • ✔ और यह तय करें कि हम कैसी दुनिया अगली पीढ़ी को सौंपना चाहते हैं।

निष्कर्ष: इंसानियत को बचाना हम सबकी जिम्मेदारी है

हमारी चुप्पी अब और बर्दाश्त नहीं की जा सकती।
हमें उठना होगा, बोलना होगा, और यह तय करना होगा कि:

क्या हम डर और हिंसा से भरी दुनिया छोड़ेंगे?
या
एक ऐसी दुनिया जहाँ इंसानियत, सहिष्णुता और प्रेम सर्वोच्च हों?

पहलगाम में जो हुआ, वो एक सवाल है:
क्या हम अब भी चुप रहेंगे?

अब वक्त है जवाब देने का—कठोर, स्पष्ट और सामूहिक।


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