हिंदू: एक मरती हुई नस्ल या जागरण की ओर बढ़ता समाज?

06 May 2025

Home


हिंदू: एक मरती हुई नस्ल या जागरण की ओर बढ़ता समाज?

1914 में यू.एन. मुखर्जी ने अपनी किताब “Hindus: A Dying Race” में भारत के हिंदुओं के भविष्य को लेकर गंभीर चेतावनी दी थी। उन्होंने 1911 की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर यह अंदाजा लगाया कि जिस गति से हिंदू आबादी घट रही है, आने वाले वर्षों में यह समाज संकट में पड़ सकता है।

उस समय न आरएसएस था, न सावरकर, न ही कोई हिन्दू संगठन। केवल आंकड़े और सच्चाई थी।

आज हम उसी सच्चाई को अपनी आंखों के सामने घटते देख रहे हैं। इतिहास गवाह है कि मुगलों, अंग्रेज़ों और स्वतंत्रता के बाद तक हिंदू समाज का सफाया होता रहा है – तलवार, विचारधारा, धर्मांतरण, जनसंख्या नियंत्रण और राजनीतिक चालों से।

हिंदुओं के लिए दोहरा कानून?

आज भारत में हिंदू को संविधान का पालन करना होता है, जबकि अन्य समुदायों को शरियत के अनुसार जीवन जीने की छूट है। हिंदू को एक पत्नी रखने का नियम है, लेकिन कुछ समुदायों को चार शादियों की छूट है। धर्मांतरण पर हिंदुओं के लिए प्रतिबंध है, लेकिन विशेष संस्थाओं को विदेशों से करोड़ों रुपये का फंड मिलता है धर्मांतरण फैलाने के लिए।

मंदिरों पर सरकार का नियंत्रण है, लेकिन मस्जिदों और चर्चों पर नहीं। कुछ राज्यों में बीफ फेस्टिवल तक मनाया जाता है, जबकि गौहत्या रोकना कानूनी जिम्मेदारी है।

सांस्कृतिक और आर्थिक कब्जा

कई शहरों में मोबाइल दुकानें, होटल, चिकन सेंटर, दर्ज़ी, नाई की दुकान—हर व्यवसाय में एक विशेष समुदाय का दबदबा है। दूसरी ओर, हिंदू समाज आपसी मतभेदों में उलझा हुआ है।

“गजवा-ए-हिंद”: कल्पना या सच्चाई?

यह कोई कोरी कल्पना नहीं, बल्कि एक घोषित योजना है। हर स्तर पर इस्लामीकरण की दिशा में योजनाबद्ध कार्य हो रहा है। यदि हम अब भी नहीं चेते, तो स्थिति हाथ से निकल सकती है।

जनसंख्या असंतुलन: भविष्य के लिए संकट

जहां हिंदू समाज दो बच्चों तक सीमित है, वहीं कुछ समुदाय अधिक संतान को धार्मिक उत्तरदायित्व मानते हैं। यह असंतुलन भविष्य में राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव को विकृत कर सकता है।

क्या करें?

  • हिंदू समाज को आत्मरक्षा, संगठन, और शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय होना चाहिए।
  • सिर्फ आरती नहीं, अस्त्र उठाने की जरूरत है – विचार और संगठन का अस्त्र।
  • मंदिरों के साथ-साथ स्कूल, कॉलेज, व्यवसाय में भी हिंदू युवाओं की भागीदारी बढ़ानी होगी।

हमें तय करना है कि क्या हम सोशल मीडिया पर पोस्ट तक सीमित रहेंगे या ज़मीन पर ठोस कार्य करेंगे। आने वाली पीढ़ियों का भविष्य हमारे आज के निर्णय पर निर्भर है।

“यदि हम स्वयं को नहीं बचाएंगे, तो कोई दूसरा नहीं आएगा बचाने।”