हिन्दू राष्ट्र सेना के अध्यक्ष ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में जो बताया वो समझना जरूरी है

03 जनवरी 2022

azaadbharat.org

करोड़ों भारतवासियों ने 25 दिसंबर को तुलसी पूजन किया जिसके कारण प्लास्टिक ट्री, दारू पीना, मांस खाना व्यभिचार करना आदि दुष्कृत्य नहीं किया जिसके कारण भारत के अरबों रुपये बच गए और वातावरण शुद्ध हुआ, लोगों का चरित्र उज्ज्वल हुआ।

हिंदू राष्ट्र सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री धनजंय देसाई ने बताया कि जोधपुर की पावन भूमि पर मुझे संतशिरोमणि शिखर पुरुष योगी योद्धा संत श्री आशारामजी बापू के उपदेश आज्ञा पर, धर्मज्ञान के पथ पर 25 दिसंबर को विदेशी तलवे न चाटते हुए, विदेशी मूल और स्वदेशी मूल्य जाग्रत करते हुए महान संत जो भारत भूमि के रक्षक बने, ऐसे आशारामजी बापू के उपदेश के ऊपर पूरे भारत भर में माता तुलसीजी का पूजन, जीवंत पूजन, मृत का पूजन नहीं प्राणों का पूजन, लाठी का पूजन नहीं रक्षा का पूजन, अत्याचार का पूजन नहीं, परोपकार का पूजन, लाचारी का पूजन नहीं, कृतज्ञता का पूजन, उपयुक्तता का पूजन, आरोग्यता का पूजन, अंधकार का पूजन नहीं, अज्ञान का पूजन नहीं, प्रकाश का पूजन, तेज का पूजन, जीवंत पूजन-तुलसी माता जी का पूजन ।

हम सभी ने आज जो 25 दिसंबर के महूर्त के पर्व पर, अपने मूल भारतीय संस्कृति और सभ्यता की जो जड़ें, नींव संतों ने मजबूत की हैं तो उन संतों के चरणों में हम कृतज्ञता व्यक्त करते हैं जिन्होंने हमें वास्तव दिशा दी, प्रकाश का पूजन सिखाया; मानव जीवन के मूल्यों का, उच्चतम आदर्श जीवन का सिद्धान्त सिखाया। हमें भोग विलासी संस्कृति से बचाकर हमें योग की ओर लेकर आये नहीं तो भोगी बनते या तो रोगी बनते। भोगी की बाद की अवस्था रोगी है मगर भोग की अवस्था का त्याग करके ही योगी बना जा सकता है। संसार में रहकर भी संतत्व प्राप्त किया जा सकता है। संसार को त्यागकर नहीं संसार में रहकर संसार में ही संतत्व प्राप्त किया जा सकता है इसका प्रमाणित जीवंत उदाहरण आशारामजी बापू हैं। न जंगल में गए, न हिमालय में गए, न कहीं आश्रमों में बैठे। पूरे भारत भर में संसार में संचार करके पूरे संसार की शुद्धि की।

आज जो आप कोविड 19 में, सेनिटीजिंग शब्द सुना होगा ये सेनिटीजिंग जो शब्द है न, क्रिया के माध्यम से बापू गत कई वर्षों से समाज का शुद्धिकरण सेंनिटीजिंग कर रहे हैं। समाज के शुद्धिकरण के लिए उनका संचरण है, विचरण है। इनके हर शब्दों में, हर श्वास प्रश्वास से शुद्धि होती है।

अभी जो थोड़ी देर पहले पत्रकार परिषद हुई उसमें एक पत्रकार ने मुझे बड़े गुस्से से पूछा कि अरे आप आये तुलसी पूजन के ऊपर और बता रहे हैं आशारामजी बापू के ज्ञान।
मैं बोला- हाँ, ये तुलसी वनस्पति अवस्था में है और मनुष्य देह की तुलसी आशारामजी बापू हैं। वो हमारे प्राणों की रक्षा कर रहे हैं, वो हमारे नैतिक मूल्यों की रक्षा कर रहे हैं, वो हमारे स्पंदनों को अपने स्पंदनों से शुद्ध कर रहे हैं। उनकी आभा में आने से हमारा जो सम्भ्रम था, भृमिष्टता थी, हमारी दिव्यता जो ओझल हो चुकी थी फिर से प्रज्वल्लित हो गई तो जीवंत चलती-फिरती तुलसी तो आशारामजी बापू हैं।

तो मैंने आशारामजी बापू के ऊपर बोला तो आपके पेट में दर्द क्यों हुआ? मैंने आपको न माँ की गाली दी न पिता की गाली दी। मैंने तो हमें हमारी जड़ों से जोड़ने वाले और हमारे कुल का उद्धार करनेवाले कुलपुरुष को स्मरण करवाया।
हम दूसरों के तलवे चाटने में लगे थे, हम इनको क्या लगेगा, उनको क्या लगेगा, ये देख रहे थे। हम अपने हित में क्या था ? भारत के हित में क्या है ? ये भारत के हित को सिखानेवाले भारत के युगपुरुष की पूजा यही तुलसी पूजा है। तुलसी पूजा वनस्पति के स्वरूप में हमने माताजी की कर ली मगर बिना गुरु के स्मरण, बिना संतों का स्मरण, बिना महापुरुषों का स्मरण, आपकी सारी पूजाएं व्यर्थ हैं।

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