अपने ही देश में अपने भगवान के लिए लड़ाई – हिंदू आस्था की आज की सच्चाई

03 May 2025

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अपने ही देश में अपने भगवान के लिए लड़ाई – हिंदू आस्था की आज की सच्चाई

एक चिंतन, एक सवाल, एक आह्वान

भारत – वह भूमि, जिसे विश्व सनातन संस्कृति का जन्मस्थान माना जाता है। यहां हर कण में आस्था और विश्वास का अद्भुत समागम है। वेदों, उपनिषदों और पुराणों की गूंज यहाँ की नदियों और पर्वतों में बसी है। राम, कृष्ण, शिव, और देवी के मंदिर इस धरती की शान हैं, और यही धरती हर हिंदू के लिए एक पवित्र तीर्थ है। लेकिन आज यही वह भारत है, जहां बहुसंख्यक हिंदुओं को अपने ही पूजा स्थलों के लिए लड़ाई लड़नी पड़ रही है।

आस्था को अदालत में क्यों ले जाना पड़ा?

ज्ञानवापी मस्जिद में शिवलिंग मिलने का मामला हो, या मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि विवाद, हर बार जब हिंदू संगठनों ने इन पवित्र स्थलों पर अपने अधिकार की बात की, तो उसे राजनीतिक और सांप्रदायिक रंग दिया गया। मामला अदालतों में गया, विरोध प्रदर्शन हुए, लेकिन प्रश्न वही रहा — हिंदू समाज को अपने भगवान की पूजा करने के लिए बार-बार कानूनी लड़ाई क्यों लड़नी पड़ती है? क्या यह न्याय और धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा है?

ऐतिहासिक सच्चाई को कब तक नकारेंगे?

यह किसी से छुपा नहीं है कि भारत के प्रमुख धार्मिक स्थल समय-समय पर आक्रमणों का शिकार हुए। कई मंदिरों को तोड़कर मस्जिदों का निर्माण किया गया। स्वामीनारायण मंदिर जैसे पवित्र स्थलों पर भी हाल में विवाद उठाए गए। एक तरफ सरकारें और समुदायों के धार्मिक स्थलों की सुरक्षा पर सख्ती दिखाते हैं, वहीं हिंदू मंदिरों की हालत यह है कि उन्हें बार-बार अदालतों के समक्ष खड़ा किया जाता है। क्या यह असमानता नहीं?

यह लड़ाई किससे है?

यह लड़ाई किसी एक धर्म से नहीं है। यह लड़ाई उस अन्याय से है, जिसे हमारे इतिहास में छुपाया गया। यह लड़ाई उन पारंपरिक प्रतीकों और स्थलों के लिए है, जो हिंदू समाज की पहचान और आस्था से जुड़े हैं। जब एक समुदाय विशेष के पूजा स्थलों को बिना किसी विवाद के सुरक्षा मिलती है, तो हिंदू मंदिरों को लेकर भेदभाव क्यों?

यह सिर्फ मंदिरों की लड़ाई नहीं है

यह केवल ईंट-पत्थर के ढांचे की लड़ाई नहीं है। यह पहचान और आत्मसम्मान की लड़ाई है। यह लड़ाई इस बात की है कि हमारे बच्चों को यह पता चले कि उनके भगवान कहाँ जन्मे थे, कहाँ पूजे गए थे। क्या उन्हें अपने इतिहास को समान रूप से जानने का अधिकार नहीं है?

समाधान क्या है?

  • इतिहास को ईमानदारी से स्वीकारें और सच्चाई को नकारने के बजाय उसे समाज के सामने लाएं।
  • न्यायपालिका से निष्पक्षता की उम्मीद रखें, बिना किसी राजनीतिक दबाव के।
  • सरकारों से अपेक्षा करें कि हिंदू आस्था को उतना ही सम्मान दिया जाए, जितना अन्य समुदायों को।
  • हिंदू समाज को एकजुट होना होगा, शांतिपूर्वक और संवैधानिक तरीके से अपने धार्मिक और सांस्कृतिक अधिकारों की रक्षा करनी होगी।

अब वक्त है—न सिर्फ सहने का, बल्कि सोचने का और उठ खड़े होने का। अगर आज हम अपनी आवाज नहीं उठाते, तो कल हमारे बच्चों को केवल ‘विवादित स्थल’ ही पढ़ने को मिलेंगे, मंदिर नहीं। भारत हिंदू-विरोधी नहीं हो सकता—क्योंकि यही भूमि हमारी आत्मा है, यही हमारा इतिहास है। हम अपनी आस्था को कभी कमजोर नहीं होने देंगे।