धृतराष्ट्र के 100 पुत्र मारे गए लेकिन धर्म का पक्ष लेने वाले युयुत्सु बच गए!

 

12 दिसंबर 2021
azaadbharat.org

महाभारत के कई पात्रों से सभी परिचित हैं लेकिन महाभारत में कुछ ऐसे किरदार भी हैं जिनपर चर्चा कम होती है। इन्हीं में से एक हैं- युयुत्सु। युयुत्सु धृतराष्ट्र के पुत्र थे लेकिन उनकी माता गांधारी नहीं थीं। युयुत्सु एक दासी के पुत्र थे।

धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी जब गर्भवती थीं तो धृतराष्ट्र की देखभाल एक दासी किया करती थी। इसी दासी से युयुत्सु का जन्म हुआ था। युयुत्सु का जन्म उसी समय हुआ था जब भीम और दुर्योधन का जन्म हुआ था।

युयुत्सु भी कौरव थे लेकिन उन्होंने सदा धर्म का पक्ष लिया। द्रौपदी के चीरहरण के समय युयुत्सु ने कौरवों का विरोध किया। महाभारत युद्ध में युयुत्सु ने पांडवों का साथ दिया और उन्हीं की तरफ से युद्ध भी लड़ा।

महाभारत युद्ध में युधिष्ठिर ने युयुत्सु को लेकर एक विशेष रणनीति अपनाई। युधिष्ठिर ने युयुत्सु को रणभूमि में नहीं भेजा बल्कि उन्हें योद्धाओं के लिए हथियारों की आपूर्ति की व्यवस्था देखने का काम सौंपा।

युयुत्सु संस्कृत के दो शब्दों का मिश्रण है- ‘युद्ध’ और ‘उत्सुक्त’। यानि युयुत्सु का अर्थ है वह व्यक्ति, जो युद्ध के लिए उत्सुक हो। युयुत्सु युद्धकला में बेहद निपुण थे और वे एक समय पर 60000 से भी ज़्यादा योद्धाओं से लड़ने का माद्दा रखते थे, जिसके कारण उन्हें ‘महारथी’ की उपाधि मिली थी।

धीरे धीरे युयुत्सु पांडवों के विश्वसनीय गुप्तचर में परिवर्तित हो गए, जिन्होंने समय समय पर पांडवों की हर प्रकार के संकटों से रक्षा की। उदाहरण के तौर पर द्यूत क्रीड़ा में हारने के पश्चात जब पांडवों को वनवास पर जाना पड़ा, तो कौरव वन में विकट परिस्थितियों के बावजूद पांडवों की नीतिपूर्ण गति देखकर काफी क्रोधित हुए और उन्होंने पांडवों के उस जलाशय में विष मिलाने का षड्यंत्र रचा, जिससे पांडव अक्सर जल का सेवन किया करते थे। तब वे युयुत्सु ही थे, जिन्होंने सही समय पर पांडवों के मित्र गंधर्वराज चित्रसेन को सूचित कर पांडवों को मरने से बचाया।

वे धृतराष्ट्र के इकलौते पुत्र थे जो कि महाभारत युद्ध में बच गए। बता दें कि धृतराष्ट्र और गांधारी के 100 पुत्र थे और सभी युद्ध में मारे गए थे।

युयुत्सु की धर्मपरायणता को पांडव कभी भी भूले नहीं। इसीलिए जब यदुवंश के अंत निकट आने पर श्रीकृष्ण सन्यास लेने के लिए और पांडव स्वर्गारोहण के लिए निकल पड़े, तो युयुत्सु को हस्तिनापुर के संरक्षक का पदभार सौंपा गया और उनकी देखरेख में युवा परीक्षित को हस्तिनापुर का राजा घोषित किया गया।

युयुत्सु धृतराष्ट्र के पुत्रों में एकमात्र ऐसे पुत्र थे, जिन्होंने विकट परिस्थितियों में भी धर्म का साथ नहीं छोड़ा और समाज के लिए एक नया आदर्श स्थापित किया। हम नमन करते हैं ऐसे वीर योद्धा को, जिन्होंने सदैव धर्म को प्राथमिकता दी और हमारे जनमानस को धर्म के रास्ते पर चलने को प्रेरित किया।

आखिर में धर्म की जय हुई, 100 कौरव तो मर गए पर धर्म के पक्ष में रहने वाले युयुत्सु बच गए।
अतः हमें भी हमेशा सनातन धर्म के अनुसार आचरण करना चाहिए।

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