धनतेरस Dhanvantari Jayanti और Deep Daan : वेद-पुराणों में वर्णित महत्व

 

धनतेरस Dhanvantari Jayanti और Deep Daan — शास्त्रीय और साधनात्मक महत्व

Focus keyphrase: Dhanteras Dhanvantari Jayanti Deep Daan

Dhanteras Dhanvantari Jayanti Deep Daan — संक्षिप्त परिचय

धनतेरस, जिसे कई जगह धनत्रयोदशी भी कहा जाता है, दीपावली से पहले की प्रमुख तिथियों में से एक है। यह दिन आरोग्य, आयु और समृद्धि का प्रतीक माना गया है। इसी तिथि पर धन्वंतरी का प्राकट्य भी जुड़ा है। इसलिए इसे धन्वंतरी जयंती भी कहते हैं। इसके साथ ही रात में दीपदान की प्रथा भी है। अतः यह दिन कई अर्थों में महत्वपूर्ण है।

Dhanvantari Jayanti: समुद्र मंथन की कथा और अर्थ

पुराणों में समुद्र मंथन का विस्तृत वर्णन मिलता है। भागवत पुराण (अष्टम स्कंध) में कहा गया है कि देव और असुर ने अमृत पाने के लिए क्षीरसागर का मंथन किया। मंदराचल को मथानी और वासुकी नाग को रस्सी बनाया गया। मंथन से कई रत्न प्रकट हुए। इसके बाद धन्वंतरी प्रकट हुए। उनके हाथ में अमृतकलश था।

श्रीमद्भागवत में वर्णित शब्द यह बताते हैं कि धन्वंतरी अमृतकलश लिए बिना-जनित रूप में प्रकट हुए। इसलिए यह तिथि पवित्र मानी गई। इसी घटना से धन्वंतरी जयंती की परंपरा शुरू हुई।

धन्वंतरी का रूप, कार्य और आयुर्वेद से संबंध

धन्वंतरी भगवान विष्णु के अंशावतार माने जाते हैं। उनका रूप चार भुजाओं वाला दर्शाया गया है। एक हाथ में अमृतकलश, एक में शंख, एक में चक्र और एक में औषधियों का ग्रंथ होता है। इससे संकेत मिलता है कि उनका ध्यान आरोग्य और जीवन रक्षण पर था।

चरक संहिता और सुष्रुत संहिता जैसी प्राचीन ग्रंथों में धन्वंतरी का स्मरण मिलता है। इन्हें वैद्यराज कहा गया है। इसलिए Dhanvantari Jayanti का संबंध आयुर्वेद और चिकित्सा ज्ञान से जुड़ा है।

वेदों में ‘धन’ का अर्थ और धनत्रयोदशी

वेदों में ‘धन’ का अर्थ केवल भौतिक नहीं दिखता। अथर्ववेद में प्रार्थनाएँ आयु, बल और संपदा के लिए की जाती हैं। अतः ‘धन’ का अर्थ आरोग्य और जीवन-बल से भी संवद्ध है। इसी कारण तेरहवीं तिथि अर्थात् त्रयोदशी को धनत्रयोदशी कहा गया। इसका उद्देश्य बाह्य और आंतरिक दोनों प्रकार के ‘धन’ की कामना है।

Deep Daan और यमदीपदान — कथा और संदेश

धनतेरस की रात दीपदान करने की प्रथा प्राचीन है। स्कंद पुराण और अन्य पुराणों में यमदीपदान की कथा मिलती है। कथा के अनुसार किसी नारी ने अपने पति की अल्पायु समाप्ति को टालने के लिए दीपदान किया।

दीप की रोशनी से यमदूत उस घर में प्रवेश न कर सके। तब यमराज ने कहा कि जो भी इस रात दीपदान करेगा, उसे अकाल मृत्यु से रक्षा मिलेगी। इसलिए कई जगह धनतेरस को यमदीपदान के रूप में भी याद किया जाता है।

लक्ष्मी-कुबेर पूजन: समृद्धि और दान की समानता

पद्म पुराण और अन्य ग्रंथों में धनत्रयोदशी पर लक्ष्मी और कुबेर का पूजन करने का उल्लेख है। कहा गया है कि इस दिन की प्रार्थना से संपत्ति की स्थिरता बनी रहती है। परंतु शास्त्र यह भी बताते हैं कि धन का सही उपयोग और दान भी आवश्यक है।

इसलिए दीपदान और धनदान दोनों को पुण्यकारी माना गया है। इस तरह Dhanteras Dhanvantari Jayanti Deep Daan का उद्देश्य केवल धनोपार्जन नहीं, बल्कि धर्मयुक्त समृद्धि है।

दीपदान का आध्यात्मिक तात्पर्य

दीप का अर्थ केवल तेल और लौ नहीं है। दीप का अर्थ है अज्ञान का नाश और ज्ञान का प्रवाह। गरुड़ पुराण में दीपदान का पितृ प्रसन्नता के लिए महत्व लिखा है। इसलिए दीपदान का सामाजिक और आध्यात्मिक दोनों ही पक्ष है।

इसके अलावा दीपदान हमें भय और मृत्यु के प्रति घबराहट कम करना सिखाता है। दीप जलाकर हम अपने कर्मों और जीवन पर प्रकाश डालते हैं। ऐसे में दीपदान केवल仪式 नहीं रहता, बल्कि साधना बन जाता है।

धन, धर्म और आरोग्य — समन्वय का पाठ

धनत्रयोदशी हमें तीन बातों की याद दिलाती है। पहली, शरीर का स्वास्थ्य आवश्यक है। दूसरी, धन का सदुपयोग आवश्यक है। तीसरी, कर्म और धर्म से ही धन का स्थायी फल मिलता है।

इस दृष्टि से Dhanteras Dhanvantari Jayanti Deep Daan एक संतुलन का पर्व है। यह सिखाता है कि सिर्फ धनोपार्जन लक्ष्य नहीं होना चाहिए। बल्कि जीवन में संतुलन बनाए रखें। तभी समाज में समृद्धि स्थायी रहेगी।

प्राचीन शास्त्रीय प्रमाण

भागवत पुराण में धन्वंतरी का वर्णन मिलता है। अथर्ववेद में आयु और बल की प्रार्थनाएँ हैं। स्कंद पुराण में यमदीपदान का महात्म्य मिलता है। पद्म पुराण में लक्ष्मी-कुबेर पूजन का फल बताया गया है। गरुड़ पुराण में दीपदान के लाभ लिखे गए हैं।

ये सभी स्रोत मिलकर स्पष्ट करते हैं कि Dhanteras Dhanvantari Jayanti Deep Daan परंपरा पर शास्त्रीय सौहार्द और प्रमाण मौजूद हैं।

आधुनिक प्रासंगिकता और व्यवहारिक सुझाव

आज के समय में भी इस तिथि का संदेश प्रासंगिक है। इसलिए हम निम्नलिखित सरल उपाय कर सकते हैं:

  • प्रातः स्नान और शुद्ध कपड़े पहनकर पूजा करें।
  • धन्वंतरी अथवा आयुर्वेद संबंधित श्लोक या मंत्र का जाप करें।
  • घर के द्वार पर दीपक जलाएं; विशेषकर दक्षिण दिशा की ओर दीप प्रज्वलित करें।
  • संभव हो तो जरूरतमंदों को दान दें।
  • स्वास्थ्य पर ध्यान दें—ताजे भोजन और साफ-सफाई पर जोर दें।

इन साधनों से आप परंपरा का सम्मान भी करेंगे और आधुनिक जीवन में इसका लाभ भी पाएंगे।

निष्कर्ष

Dhanteras Dhanvantari Jayanti Deep Daan केवल एक त्यौहार नहीं है। यह आरोग्य, आयु और समृद्धि का तीन-आयामी सन्देश देता है। इसलिए इसे वंदनीय समझें और जीवन में धर्मयुक्त समृद्धि की कोशिश करें।

अतः इस धनतेरस पर दीप जलाएँ, स्वास्थ्य का संकल्प लें और जहां संभव हो, दान दें। इससे न केवल व्यक्तिगत वरदान मिलेगा, बल्कि समाज में भी उजाला फैलेगा।