19 January 2025
ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन का विशाल बांध: 137 अरब डॉलर का जल हथियार, भारत और बांग्लादेश के लिए खतरा
चीन ने ब्रह्मपुत्र नदी (जिसे तिब्बत में यारलुंग त्सांगपो कहा जाता है) पर दुनिया का सबसे बड़ा बांध बनाने की योजना की घोषणा की है। इस परियोजना की लागत 137 अरब डॉलर बताई गई है, जो न केवल चीन की महत्वाकांक्षी ऊर्जा और जल प्रबंधन योजनाओं को आगे बढ़ाएगी बल्कि भारत और बांग्लादेश के लिए गंभीर जल संकट और भू-राजनीतिक चुनौतियां पैदा कर सकती है।
ब्रह्मपुत्र नदी का महत्व
ब्रह्मपुत्र नदी तिब्बत से निकलकर भारत के अरुणाचल प्रदेश और असम होते हुए बांग्लादेश में गंगा नदी से मिलती है।
यह एशिया की सबसे महत्वपूर्ण नदियों में से एक है और भारत और बांग्लादेश में लाखों लोगों के जीवन, खेती और उद्योग के लिए पानी का प्रमुख स्रोत है।
इस नदी का जल प्रवाह न केवल सिंचाई और जल आपूर्ति करता है बल्कि बांग्लादेश में उर्वरक भूमि के निर्माण में भी योगदान देता है।
चीन की परियोजना: क्या है योजना?
चीन तिब्बत के मेदोग काउंटी में ब्रह्मपुत्र पर एक सुपर बांध बनाने की योजना बना रहा है।
यह बांध 60 गीगावाट बिजली उत्पादन करने की क्षमता रखेगा, जो इसे दुनिया का सबसे बड़ा हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट बना देगा।
बांध का उद्देश्य चीन के ऊर्जा संकट को हल करना और जल संसाधनों का अधिकतम उपयोग करना है।
हालांकि, इस परियोजना की लागत और इसके पर्यावरणीय तथा भू-राजनीतिक प्रभावों ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा है।
पर्यावरणीय और भू-राजनीतिक प्रभाव
जल संकट का खतरा:
बांध के कारण नदी का प्रवाह नियंत्रित होगा, जिससे भारत के पूर्वोत्तर राज्यों और बांग्लादेश में पानी की कमी हो सकती है।
असम और अरुणाचल प्रदेश में कृषि और पीने के पानी पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा।
बाढ़ और तबाही का जोखिम:
बारिश के समय अगर चीन बांध से पानी छोड़ता है, तो असम और बांग्लादेश में बाढ़ आ सकती है।
इससे मानव जीवन, खेती और बुनियादी ढांचे को बड़ा नुकसान हो सकता है।
पर्यावरणीय असंतुलन:
नदी के प्राकृतिक प्रवाह में बाधा डालने से तिब्बत, भारत और बांग्लादेश की जैव विविधता को नुकसान होगा।
मछलियों की प्रजातियां और अन्य जलजीव विलुप्त हो सकते हैं।
ब्रह्मपुत्र के आसपास के पारिस्थितिकी तंत्र पर दीर्घकालिक नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
भू-राजनीतिक तनाव:
ब्रह्मपुत्र पर नियंत्रण पाने की चीन की यह कोशिश भारत और बांग्लादेश के साथ उसके संबंधों को और खराब कर सकती है।
चीन का यह कदम “जल हथियार” के रूप में देखा जा रहा है, जो भविष्य में पानी को नियंत्रण में रखने की उसकी रणनीति का हिस्सा हो सकता है।
चीन के तर्क और उसकी रणनीति
चीन का कहना है कि यह बांध उसके हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स का हिस्सा है और इसका उद्देश्य जल संकट का समाधान करना और बिजली उत्पादन बढ़ाना है।
लेकिन इसके पीछे का असली उद्देश्य क्षेत्रीय वर्चस्व स्थापित करना और प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण पाना हो सकता है।
चीन पहले भी मेकांग नदी और अन्य जलस्रोतों पर बांध बनाकर अपने पड़ोसी देशों को प्रभावित कर चुका है।
भारत और बांग्लादेश के लिए विकल्प और समाधान
कूटनीतिक वार्ता:
भारत और बांग्लादेश को चीन के साथ इस मुद्दे पर बातचीत करनी चाहिए।
एक त्रिपक्षीय जल प्रबंधन समझौता किया जाना चाहिए ताकि नदी के जल का उचित बंटवारा हो सके।
अंतर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप:
इस परियोजना को अंतर्राष्ट्रीय मंचों जैसे संयुक्त राष्ट्र और विश्व बैंक में उठाया जाना चाहिए।
इसे “जल संसाधनों के सैन्यीकरण” का मुद्दा बनाकर वैश्विक ध्यान खींचना जरूरी है।
आंतरिक तैयारी:
भारत को अपने पूर्वोत्तर राज्यों में जल संरक्षण और आपदा प्रबंधन प्रणाली को मजबूत करना होगा।
बांग्लादेश को बाढ़ और सूखे से बचने के लिए नए उपाय अपनाने होंगे।
वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत:
चीन को अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए सौर और पवन ऊर्जा जैसे वैकल्पिक साधनों पर ध्यान देना चाहिए।
निष्कर्ष
चीन का ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध बनाना सिर्फ एक इंजीनियरिंग परियोजना नहीं है; यह एक भू-राजनीतिक कदम है जो भारत और बांग्लादेश के लिए गंभीर जल संकट और पर्यावरणीय चुनौतियां खड़ी कर सकता है। ब्रह्मपुत्र नदी केवल एक जलधारा नहीं, बल्कि भारत और बांग्लादेश की जीवनरेखा है। इसे बांधने की कोशिश प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ सकती है और क्षेत्र में स्थायी तनाव का कारण बन सकती है।
इस मुद्दे का हल केवल कूटनीति और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से ही निकाला जा सकता है। समय रहते सही कदम उठाए गए तो ब्रह्मपुत्र नदी का जीवनदायिनी स्वरूप कायम रखा जा सकता है।
ऑल मैटर विथ करेक्शंस
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