17 December 2024
JNU में बड़ा बवाल: वामपंथियों ने फाड़े साबरमति फ़िल्म के पोस्टर!
JNU (जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय) एक बार फिर विवादों के केंद्र में आ गया है। इस बार विवाद का कारण बनी है गोधरा कांड पर आधारित फिल्म साबरमति रिपोर्ट, जिसकी स्क्रीनिंग ABVP (अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद) द्वारा विश्वविद्यालय में आयोजित की जा रही थी।
क्या हुआ JNU में?
फिल्म की स्क्रीनिंग से पहले ही वामपंथी गुटों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया। विरोध प्रदर्शन के दौरान उन्होंने साबरमति रिपोर्ट के पोस्टर फाड़ दिए और कार्यक्रम को बाधित करने की कोशिश की। इस घटना ने न केवल JNU के परिसर में अशांति फैलाई, बल्कि अभिव्यक्ति की आज़ादी और विचारों के टकराव पर भी बड़ा सवाल खड़ा किया।
वामपंथी गुटों का तर्क
वामपंथी गुटों का कहना है कि साबरमति रिपोर्ट फिल्म गोधरा कांड को लेकर एकपक्षीय दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है और सांप्रदायिक विभाजन को बढ़ावा देती है। वे इसे छात्रों के बीच नफरत फैलाने का प्रयास मानते हैं।
ABVP की प्रतिक्रिया
ABVP ने इस घटना की कड़ी निंदा की और इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बताया। उनका कहना है कि साबरमति रिपोर्ट एक तथ्यात्मक फिल्म है, जो गोधरा कांड और उससे जुड़े सच को जनता के सामने लाने का प्रयास करती है। ABVP ने यह भी कहा कि वामपंथी विचारधारा हमेशा से असहमति की आवाज को दबाने की कोशिश करती रही है।
क्या कहता है संविधान?
भारत के संविधान के तहत हर नागरिक को अपने विचार रखने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है। लेकिन JNU में बार-बार ऐसी घटनाएं होती रही हैं, जहां एक पक्ष अपने विरोध को हिंसा और तोड़फोड़ के रूप में प्रकट करता है।
JNU और वामपंथ का इतिहास
JNU वामपंथी विचारधारा का गढ़ माना जाता है। लेकिन हाल के वर्षों में इस विचारधारा के चलते कई बार असहमति के स्वर को दबाने के प्रयास किए गए हैं। चाहे वह किसी राष्ट्रवादी मुद्दे पर कार्यक्रम हो या किसी विचारधारा से असहमति जताने का मामला, विरोध हमेशा हिंसक रूप लेता रहा है।
हमारी संस्कृति और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
भारत का लोकतंत्र विविध विचारों और बहसों पर टिका हुआ है। साबरमति रिपोर्ट जैसी फिल्में समाज को सच के कई पहलुओं से अवगत कराने का माध्यम हैं। यदि हर विचारधारा को बराबर का मंच नहीं दिया जाएगा, तो यह न केवल लोकतंत्र के मूल्यों का अपमान होगा, बल्कि समाज के विकास में भी बाधा बनेगा।
निष्कर्ष
JNU में हुई यह घटना विचारों की स्वतंत्रता पर सीधा प्रहार है। एक विश्वविद्यालय को बहस और संवाद का केंद्र होना चाहिए, न कि हिंसा और विरोध का। ऐसे में यह जरूरी है कि हर पक्ष को अपनी बात कहने का समान अवसर दिया जाए। वामपंथी गुटों को यह समझना चाहिए कि असहमति का मतलब हिंसा नहीं है, बल्कि स्वस्थ संवाद है।
सवाल यह है कि क्या JNU में इस तरह की घटनाएं अभिव्यक्ति की आज़ादी को कुचलने का नया तरीका बन रही हैं?
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