16 July 2025
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भोजन सम्बन्धी नियम
भारतीय संस्कृति में भोजन को केवल शरीर की भूख का माध्यम नहीं बल्कि एक पवित्र कर्म माना गया है। भोजन करते समय शरीर, मन और वातावरण की शुद्धता अत्यंत आवश्यक होती है। शास्त्रों और आयुर्वेद में अनेक ऐसे नियम बताए गए हैं जिनका पालन करके मनुष्य दीर्घायु, स्वस्थ और शांतिपूर्ण जीवन प्राप्त कर सकता है।
भोजन सम्बन्धी कुछ महत्वपूर्ण नियम:
- शारीरिक शुद्धता:
भोजन से पूर्व अपने पाँच अंगों – दोनों हाथ, दोनों पैर और मुख को अच्छी तरह धो लेना चाहिए। यह न केवल स्वच्छता का प्रतीक है, बल्कि शरीर को ऊर्जा देने वाली प्रक्रिया है। - गीले पैरों से भोजन:
गीले पैर होने से शरीर में ठंडक बनी रहती है और शास्त्रों के अनुसार गीले पैरों भोजन करने से आयु में वृद्धि होती है। - समय का पालन:
भोजन का उत्तम समय केवल दो बार – प्रातः (सुबह) और सायं (शाम) बताया गया है। इससे पाचन शक्ति बनी रहती है और शरीर स्वस्थ रहता है। - दिशा का महत्व:
भोजन करते समय मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए। यह दिशा ऊर्जा देने वाली होती है। दक्षिण दिशा की ओर मुख करके किया गया भोजन प्रेतों को प्राप्त होता है तथा पश्चिम दिशा की ओर भोजन करने से रोगों में वृद्धि होती है। - उचित स्थान और बर्तन:
शैय्या (बिस्तर) पर बैठकर, हाथ पर रखकर या टूटे-फूटे बर्तनों में भोजन नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से शरीर व मन दोनों अशुद्ध होते हैं। - अनुचित वातावरण से परहेज़:
मल-मूत्र का वेग हो, कलह का वातावरण हो, अधिक शोर हो या पीपल तथा वट वृक्ष के नीचे हो – इन सभी स्थितियों में भोजन नहीं करना चाहिए। यह सभी स्थितियां मानसिक अशांति उत्पन्न करती हैं। - अन्न की निंदा नहीं करें:
परोसे हुए भोजन की कभी निंदा नहीं करनी चाहिए। अन्न को देवता तुल्य माना गया है – उसका अपमान पाप के समान है। - अन्न देवता का धन्यवाद:
भोजन से पूर्व अन्न देवता और अन्नपूर्णा माता की स्तुति करके, यह प्रार्थना करनी चाहिए कि सभी भूखों को भोजन प्राप्त हो। कृतज्ञता का यह भाव आत्मिक शुद्धता लाता है। - शुद्धता से रसोई कार्य:
भोजन बनाने से पहले स्नान करके, शुद्ध मन से मंत्र जप करते हुए ही भोजन बनाना चाहिए। सबसे पहले तीन रोटियाँ (गाय, कुत्ता और कौवे हेतु) अलग निकालें, फिर अग्नि देव को भोग लगाकर परिवार को भोजन कराएँ। - मानसिक स्थिति का प्रभाव:
ईर्ष्या, भय, क्रोध, लोभ, रोग, दीनता या द्वेष जैसी भावनाओं के साथ किया गया भोजन पचता नहीं है और शरीर को हानि पहुँचाता है। - आधा खाया पुनः न खाएं:
आधा खाया हुआ फल, मिठाई आदि दोबारा नहीं खाना चाहिए। यह अशुद्ध होता है। - बीच में उठना अनुचित:
खाना छोड़कर बीच में उठ जाने के बाद पुनः भोजन नहीं करना चाहिए। यह पाचन को प्रभावित करता है। - भोजन के समय मौन:
भोजन के समय मौन रहना चाहिए। इससे भोजन पर एकाग्रता बनी रहती है और पाचन ठीक होता है। - अच्छी तरह चबाना:
भोजन को खूब चबा-चबाकर खाना चाहिए, जिससे पाचन क्रिया ठीक से हो। - रात्रि में संयम:
रात्रि में भरपेट भोजन नहीं करना चाहिए। यह शरीर पर भार डालता है और निद्रा में बाधा डालता है। - सीमित भोजन:
गृहस्थ व्यक्ति को ३२ ग्रास से अधिक भोजन नहीं करना चाहिए। यह संतुलित जीवन का मूलमंत्र है। - भोजन का क्रम:
भोजन करते समय सबसे पहले मीठा, फिर नमकीन और अंत में कड़वा भोजन करना चाहिए। - पदार्थों का क्रम:
भोजन का क्रम इस प्रकार हो – पहले रसमय (जैसे सूप), फिर गरिष्ठ (जैसे चावल-दाल या रोटी-सब्ज़ी) और अंत में द्रव पदार्थ (जैसे छाछ या पानी) ग्रहण करें। - संयमशील भोजन का फल:
जो व्यक्ति कम खाता है, उसे आरोग्यता, दीर्घायु, बल, सुख, सुंदर संतान और सौंदर्य की प्राप्ति होती है। - दिखावे के भोजन से बचें:
जहाँ ढिंढोरा पीटकर भोजन कराया जाए, वहाँ भोजन नहीं करना चाहिए। वह भोजन अहंकार से दूषित होता है। - अशुद्ध/निंदनीय भोजन से परहेज:
कुत्ते का छुआ हुआ, रजस्वला स्त्री का परोसा, श्राद्ध का निकाला गया, मुँह से फूँक मारकर ठंडा किया गया, बाल गिरा हुआ, अनादर या अवहेलना के साथ परोसा गया भोजन कभी नहीं करना चाहिए। - अवांछनीय व्यक्तियों का भोजन त्याज्य:
कंजूस व्यक्ति, वेश्या या शराब बेचने वाले के हाथों से दिया गया भोजन कभी नहीं करना चाहिए। यह भोजन मानसिक और आत्मिक दोष उत्पन्न करता है।
उपसंहार:
भोजन एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है जिसे शुद्धता, संयम और कृतज्ञता के साथ करना चाहिए। यह केवल शरीर का पोषण नहीं करता, बल्कि हमारे मन, विचार और आत्मा को भी प्रभावित करता है। इन नियमों का पालन करके हम न केवल एक स्वस्थ जीवन जी सकते हैं, बल्कि एक संस्कारी और संतुलित समाज का निर्माण भी कर सकते हैं।
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