15 December 2025
🚩भारतेंदु हरिश्चंद्र की अमर कविता: निज भाषा उन्नति अहै – भाषा का असली महत्व
🚩क्या आपने कभी सोचा है कि हम रोज इस्तेमाल करने वाले शब्द असल में क्या हैं? वे सिर्फ आवाज़ नहीं, बल्कि हमारी सोच, हमारी संस्कृति, हमारी पहचान और हमारी आने वाली पीढ़ियों की विरासत हैं। 19वीं सदी के महान कवि, नाटककार और समाज सुधारक भारतेंदु हरिश्चंद्र ने इसी सत्य को इतनी सरलता से बयां किया कि आज भी वह हर शिक्षित भारतीय के मन में गूंजता है। उनकी अमर पंक्तियाँ:
“निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।
विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार।
सब देसन से लै करहू, भाषा माहि प्रचार।।”
ये मात्र चार पंक्तियाँ नहीं, बल्कि एक पूरा दर्शन हैं जो बताते हैं कि भाषा ही हर प्रगति की जड़ है। आइए इस कविता के हर शब्द को खोलकर देखें और समझें कि आज के डिजिटल युग में भी यह संदेश कितना प्रासंगिक है।
💠पहली पंक्ति: भाषा ही सब उन्नति का मूल आधार
भारतेंदु जी की पहली पंक्ति सीधे दिल को छू जाती है – “निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल”। इसका मतलब सरल है: अपनी मातृभाषा की उन्नति ही हर तरह की प्रगति का मूल स्रोत है। सोचिए, अगर कोई बच्चा अपनी माँ की भाषा में सोचता है, सपने देखता है, तो उसकी भावनाएँ कितनी गहरी और सच्ची होंगी। विज्ञान, तकनीक, कला, साहित्य – सब कुछ पहले हमारी भाषा में समझना जरूरी है। बिना भाषा के ज्ञान अधूरा है, जैसे बिना जड़ के पेड़। आज जब बच्चे अंग्रेजी में बात करने को स्टेटस सिंबल मानते हैं, भारतेंदु जी याद दिलाते हैं कि असली स्टेटस अपनी जड़ों से जुड़ना है। हिंदी, तमिल, बंगाली, मराठी – हर भाषा अपने समाज की आत्मा है।
💠दूसरी पंक्ति: भाषा के बिना हृदय का दर्द न मिटे
“बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल” – यह पंक्ति भावनाओं की गहराई छूती है। भाषा सिर्फ किताबी ज्ञान नहीं, हृदय की पीड़ा व्यक्त करने का माध्यम है। जब कोई माँ अपने बच्चे को डांटती है, पिता सलाह देते हैं, प्रेमी प्रेम पत्र लिखता है – ये सब अपनी भाषा में ही सच्चे होते हैं। विदेशी भाषा में भावनाएँ बँध जाती हैं, अपूर्ण रह जाती हैं। भारतेंदु जी कहते हैं कि बिना मातृभाषा के ज्ञान के मन का कष्ट कभी समाप्त नहीं होता। यह इसलिए क्योंकि हमारी सोच, हमारी कल्पना, हमारी सृजनशीलता भाषा से ही पनपती है। एक भाषा-रहित समाज कल्पना-रहित समाज है।
💠तीसरी-चौथी पंक्ति: विश्व ज्ञान को भाषा में समाहित करें
भारतेंदु जी का दृष्टिकोण संकीर्ण नहीं था। वे कहते हैं:
“विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार।
सब देसन से लै करहू, भाषा माहि प्रचार।।”
मतलब – दुनिया भर की कला, शिक्षा, ज्ञान को इकट्ठा करो और अपनी भाषा में प्रचार करो। यह आधुनिक ग्लोबलाइजेशन का सूत्र है। जापान ने चीनी तकनीक को जापानी भाषा में अपनाया, जर्मनी ने ग्रीक दर्शन को जर्मन में समाहित किया। भारत को भी यही करना चाहिए। न्यूटन के नियम हिंदी में, आइंस्टीन का सापेक्षता सिद्धांत तमिल में, शेक्सपियर के नाटक मराठी में – तभी ज्ञान आम जन तक पहुँचेगा।
📚ऐतिहासिक संदर्भ: भारतेंदु युग की चुनौतियाँ
भारतेंदु हरिश्चंद्र (1850-1885) उस दौर के थे जब ब्रिटिश शासन ने अंग्रेजी को राजभाषा बना दिया था। नौकरियाँ, शिक्षा, अदालतें – सब अंग्रेजी में। हिंदी जैसी भाषाएँ उपेक्षित हो रही थीं।भारतेंदु जी ने हिंदी को पुनर्जीवित किया। उन्होंने नाटक लिखे (‘अंधेर नगरी’), पत्रिकाएँ शुरू कीं (‘कविवचन सुधा’), और हिंदी को आधुनिक रूप दिया। उनकी यह कविता उसी आंदोलन का हिस्सा थी। आजादी के 75 साल बाद भी उनका संदेश प्रासंगिक है।
✴️उनकी दूरदृष्टि के प्रमाण:
🔅हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का आह्वान – जो आज भी अधूरा है
🔅क्षेत्रीय भाषाओं का सम्मान – एक भारत, श्रेष्ठ भारत का मंत्र
🔅महिलाओं की शिक्षा में भाषा का महत्व – घर से राष्ट्र तक
✴️आज का संकट: भाषा का संकट, संस्कृति का संकट
आज सोशल मीडिया पर अंग्रेजी के छोटे-छोटे शब्द ट्रेंड कर रहे हैं। बच्चे मातृभाषा में बात करने से शर्माते हैं। नतीजा?
🔅सांस्कृतिक अलगाव – अपनी कहानियाँ, लोकगीत भूल रहे
🔅भावनात्मक शुष्कता – गहरी संवेदनाएँ व्यक्त न कर पाना
🔅रचनात्मक क्षमता में कमी – विदेशी ढाँचे में सोचना।
NEP 2020 में मातृभाषा शिक्षा पर जोर इसी दिशा में कदम है। लेकिन असली बदलाव घरों से आएगा।
💠भाषा के व्यावहारिक लाभ: व्यक्ति और समाज दोनों के लिए
✴️व्यक्तिगत स्तर पर:
🔅आत्मविश्वास – अपनी भाषा में सहज सोचना
🔅सृजनशीलता – मौलिक विचार उत्पन्न करना
🔅भावनात्मक बुद्धिमत्ता – संवेदनाओं को सही व्यक्त करना
✴️समाजिक स्तर पर:
🔅सांस्कृतिक निरंतरता – परंपराएँ जीवित रहेंगी
🔅शिक्षा क्रांति – ग्रामीण बच्चे तेजी से सीखेंगे
🔅राष्ट्रीय एकता – विविधता में एकता का आधार
💠भाषा संरक्षण के लिए व्यावहारिक सुझाव
🔅घर में बोलें – बच्चों से मातृभाषा में बातचीत
🔅पढ़ें-लिखें – स्थानीय साहित्य को अपनाएँ
🔅 डिजिटल प्रयोग – हिंदी यूट्यूब, पॉडकास्ट बनाएँ
🔅स्कूलों में जोर – प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में
🔅सरकारी नीतियाँ – तीन भाषा फॉर्मूला सही लागू करें
💠भाषा और भविष्य की पीढ़ियाँ: विरासत का प्रश्न
हमारी भाषाएँ सिर्फ शब्द नहीं, बल्कि दादी-नानी की कहानियाँ, त्योहारों की खुशियाँ, गीतों की धुनें हैं। अगर ये खो गईं, तो हमारी पहचान खो जाएगी।
भारतेंदु जी का संदेश आज के युवाओं के लिए विशेष है।गूगल, अमेज़न में सफलता के बाद भी अपनी भाषा में सोचने वाले लोग ही सच्चे लीडर बनते हैं। सुंदर पिचाई तमिल जानते हैं, सत्य नडेला तेलुगु बोलते हैं।
🚩निष्कर्ष: भाषा से प्रारंभ, उन्नति तक का सफर
भारतेंदु हरिश्चंद्र की यह कविता समय की सीमा लाँघ चुकी है। यह हमें बताती है:
🔅भाषा उन्नति = व्यक्तिगत उन्नति
🔅भाषा ज्ञान = हृदय शांति
🔅भाषा प्रचार = सांस्कृतिक समृद्धि
तो आज से संकल्प लें – अपनी भाषा को अपनाएँ, संस्कृति को समृद्ध करें, आने वाली पीढ़ियों को धरोहर सौंपें। क्योंकि वही भाषा जो कल हमारी आवाज़ थी, आज हमारी ताकत है, कल हमारी विरासत होगी।
आप क्या सोचते हैं? क्या आप अपनी मातृभाषा को दैनिक जीवन में अधिक प्रयोग करते हैं? अपनी कहानी कमेंट्स में साझा करें।
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