भाईदूज: यम-यमी से लेकर श्रीकृष्ण-सुभद्रा तक — प्रेम, धर्म और मुक्ति का पर्व

23 October 2025

Home

भाईदूज: यम-यमी से लेकर श्रीकृष्ण-सुभद्रा तक — प्रेम, धर्म और मुक्ति का पर्व

भारतीय संस्कृति में हर पर्व केवल उत्सव नहीं होता, बल्कि जीवन के गूढ़ सिद्धांतों का प्रतीक होता है।
दीपावली के पश्चात आने वाला भाईदूज (भ्रातृ द्वितीया) ऐसा ही पर्व है जो भाई-बहन के पवित्र प्रेम, आत्मीयता और सुरक्षा का प्रतीक है।
यह दिन हमें यह सिखाता है कि –

“रिश्तों का सौंदर्य केवल जन्म से नहीं, बल्कि संस्कारों से बनता है।

नाम और तिथि का अर्थ

भाईदूज कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है।
संस्कृत में इसे भ्रातृ द्वितीया कहा गया है — “भ्रातृ” अर्थात भाई और “द्वितीया” अर्थात दूसरी तिथि।
यह तिथि सूर्य की पुत्री यमुना और मृत्यु के देवता यमराज के पुनर्मिलन की स्मृति में मनाई जाती है, इसलिए इसे यम द्वितीया भी कहा गया है।

इस दिन बहनें अपने भाइयों की दीर्घायु, समृद्धि और पापमुक्त जीवन की प्रार्थना करती हैं, जबकि भाई अपनी बहनों को सुरक्षा और स्नेह का वचन देते हैं।

️ पौराणिक कथाएँ और उनके रहस्य

यमराज और यमुना की कथा — मृत्यु पर विजय पाने वाला प्रेम

प्राचीन कथा के अनुसार, सूर्यदेव की संतान यमराज और यमुना में अत्यंत स्नेह था।
यमुना बार-बार अपने भाई से आग्रह करती थी कि वे उसके घर आएँ, पर यमराज अपने कर्मों में व्यस्त रहने के कारण नहीं जा पाते थे।
अंततः एक दिन वे अपनी बहन के घर पहुँचे।

यमुना ने उन्हें स्नान कराया, तिलक लगाया, स्वादिष्ट व्यंजन परोसे और हृदय से आतिथ्य किया।
यमराज अत्यंत प्रसन्न हुए और बोले —

“प्रिय बहन! जो भी इस दिन अपने भाई का आदरपूर्वक तिलक करेगी, उसे मृत्यु का भय नहीं रहेगा।
इस दिन तिलक करवाने वाला भाई दीर्घायु और धन-धान्य से संपन्न रहेगा।”

तब से इस दिन को यम द्वितीया कहा जाने लगा।
यह कथा इस बात का प्रतीक है कि स्नेह और शुद्ध भावना मृत्यु जैसी कठोर सच्चाई को भी निष्प्रभावी बना देती है।

श्रीकृष्ण और सुभद्रा की कथा — धर्म की विजय का प्रतीक

श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार, जब भगवान श्रीकृष्ण ने असुर नरकासुर का वध कर सोलह हज़ार कन्याओं को मुक्त कराया,
तो वे विजय प्राप्त कर द्वारका लौटे।
उनकी बहन सुभद्रा ने अत्यंत स्नेह से उनका स्वागत किया, तिलक किया और कहा —

“भैया, तुम्हारी विजय सदैव धर्म और सत्पथ के लिए बनी रहे।”

कृष्ण ने आशीर्वाद देते हुए कहा —

“बहन! आज से यह तिलक केवल भाई-बहन के प्रेम का नहीं, बल्कि धर्म की रक्षा और विजय का प्रतीक रहेगा।”

इस कथा से यह स्पष्ट होता है कि भाईदूज का भाव केवल पारिवारिक नहीं, बल्कि धर्म की रक्षा, अन्याय पर विजय और कर्तव्यनिष्ठा से जुड़ा है।

इंद्राणी की कथा — सप्तलोकों में कल्याण का वरदान

स्कंदपुराण में वर्णित है कि देवताओं के राजा इंद्र की पत्नी इंद्राणी ने अपने भाइयों की कुशलता और आयु-वृद्धि के लिए द्वितीया तिथि को व्रत किया।
उनके तप से प्रसन्न होकर देवताओं ने वरदान दिया —

“हे देवी! इस दिन जो बहन अपने भाई का तिलक करेगी,
उसका भाई सातों लोकों में सुख, यश और कीर्ति प्राप्त करेगा।”

इसलिए भाईदूज केवल सांसारिक प्रेम नहीं, बल्कि आध्यात्मिक कल्याण का प्रतीक है।

यमुना-पूजन की परंपरा — प्रकृति और संबंधों का संगम

गरुड़ पुराण में लिखा है —

“यमुनायां स्नानं कृत्वा भ्रातरं पूजयेद् द्विज।
तस्य मृत्युभयो नास्ति पितृलोकं स गच्छति॥”

अर्थात जो भाई-बहन इस दिन यमुना में स्नान कर पूजा करते हैं, वे अकाल मृत्यु से मुक्त होकर पितृलोक में प्रतिष्ठा पाते हैं।

इसलिए आज भी मथुरा, वृंदावन, यमुनोत्री, प्रयागराज और दिल्ली में यम-स्नान और यमुना-पूजन की परंपरा जीवित है।
यमुना केवल नदी नहीं, बल्कि स्नेह, पवित्रता और मोक्ष का प्रवाह है।

माता पार्वती और गणेशजी की कथा — मंगल का तिलक

एक दुर्लभ ग्रंथ में उल्लेख है कि दीपावली के पश्चात द्वितीया तिथि को
माता पार्वती ने अपने पुत्र श्री गणेशजी का तिलक किया और कहा —

“हे पुत्र! आज से तू इस सृष्टि के समस्त भाइयों का रक्षक बने।”

तभी से गणेशजी को भाईदूज का अदृश्य अधिदेवता (देव संरक्षक) माना गया।
इसलिए कई परंपराओं में तिलक से पूर्व ‘ॐ गं गणपतये नमः’ मंत्र बोला जाता है।

पूजा-विधि और पारंपरिक रीति

भाईदूज का दिन बहन और भाई दोनों के लिए विशेष होता है।

‍♂️स्नान और संकल्प:
प्रातःकाल स्नान करके सूर्य, यमराज और यमुना को अर्घ्य दिया जाता है।
बहन संकल्प लेती है — “मैं अपने भाई की दीर्घायु और सुख के लिए यह पूजन कर रही हूँ।”

पूजन सामग्री:
दीपक, अक्षत, कुमकुम, पुष्प, मिठाई और कलावा पूजा की थाली में रखे जाते हैं।

तिलक और आरती:
बहन अपने भाई के माथे पर चंदन, रोली और चावल का तिलक लगाकर आरती करती है,
फिर उसे मिठाई खिलाकर उसके मंगल की कामना करती है।

उपहार और आशीर्वाद:
भाई अपनी बहन को उपहार, वस्त्र या आभूषण देकर उसकी रक्षा का वचन देता है।

✨ आध्यात्मिक और सामाजिक अर्थ

भाईदूज केवल परंपरा नहीं, बल्कि परिवार के एकत्व और आत्मिक संबंधों का प्रतीक है।
बहन का तिलक स्नेह का संस्कार है, और भाई का उपहार कृतज्ञता का प्रतीक।

पौराणिक दृष्टि से यह दिन हमें सिखाता है कि —

“जहाँ प्रेम और करुणा है, वहाँ मृत्यु, भय या बंधन नहीं टिकते।”

यह पर्व बताता है कि संस्कार ही समाज की सबसे बड़ी सुरक्षा दीवार हैं।

आधुनिक युग में भाईदूज

आज के समय में जब परिवार दूरियों में बँटे हुए हैं, भाईदूज रिश्तों को जोड़ने का माध्यम बन गया है।
वीडियो कॉल, ऑनलाइन उपहार या वर्चुअल आरती — माध्यम चाहे जो हो, भाव वही रहता है —
“भाई की कुशलता और बहन का स्नेह।”

यह त्योहार याद दिलाता है कि डिजिटल युग में भी रिश्तों का स्पर्श और संस्कार आवश्यक हैं।

निष्कर्ष

भाईदूज के तिलक में केवल कुमकुम नहीं, बल्कि विश्वास का लाल रंग है।
दीपों की ज्योति केवल घरों में नहीं, बल्कि हृदयों में प्रेम का प्रकाश फैलाती है।
यह दिन हर भाई को यह याद दिलाता है कि —

“बहन केवल स्नेह का प्रतीक नहीं, बल्कि जीवन की शुभ ऊर्जा है।”

शुभकामनाएं

“भाईदूज के इस पावन अवसर पर
हर बहन के आँगन में प्रेम के दीप जलें,
और हर भाई का जीवन सदा मंगलमय, दीर्घायु और उज्जवल बने।”

Follow on

Facebook :
https://www.facebook.com/share/19dXuEqkJL/

Instagram:
http://instagram.com/AzaadBharatOrg

Twitter:
twitter.com/AzaadBharatOrg

Telegram:
https://t.me/azaaddbharat

Pinterest: https://www.pinterest.com/azaadbharat/

#BhaiDooj #BhaiDooj2025 #भाईदूज #BhaiDuj #YamDwitiiya #IndianCulture #SanatanDharma #AzaadBharat #FestivalOfIndia #HinduFestivals #LoveAndTradition #Sanskriti #BrotherSisterBond #SpiritualIndia #CulturalIndia