भारत मे ही नहीं विदेशों में भी गणोशोत्सव की धूम मची है।

5 September 2022

azaadbharat.org

गणेश महोत्सव (31 अगस्त से 9 सितम्बर) के दिनों में दुनिया भर के लोग बड़ी धूम धाम से गणेशोत्सव मनाते हैं। लोग बड़े ही भक्ति भाव से गणेश की पूजा अर्चना करते हैं । हिन्दुओं के साथ-साथ गैर हिन्दुओं में भी बप्पा के बहुत भक्त हैं। परंतु आपको यह जानकर हैरानी होगी कि भगवान गणेश के जयकारे जिस तरह भारत में लगते हैं,उसी तरह भारत से हजारों मील दूर अफ्रीकी देश घाना में भी गूंज रहे हैं। यहां गणपति की वैसी ही भक्ति, उतनी ही धूमधाम से पूजा और उतने ही उत्साह के साथ मूर्ति विसर्जन किया जाता है,जैसे भारत में करते हैं।

अफ्रीकी देश घाना में गणपति बप्पा की पूजा अफ्रीकी हिन्दू करते हैं। यहां हर साल भगवान गणेश की पूजा धूमधाम से की जाती है और भारतीय हिन्दू की तरह ये भी गणेश मूर्ति का विसर्जन करते हैं। (बीबीसी) BBC की एक रिपोर्ट के अनुसार यहां के लोगों का हिन्दुत्व से परिचय वर्ष 1970 में हुआ था। आज लगभग 12 हजार हिन्दू इस अफ्रीकी देश में रहते हैं।

आरती के दौरान भगवान की शरण में माथा टेकना, शंख बजाना, फल या मोदक का भोग लगाना, आरती लेना या भजन कीर्तन करने जैसे सभी काम घाना में रहने वाले, ये लोग करते हैं।

घाना में रहने वाले हिन्दू समुदाय के लोगों का कहना है कि वे भगवान गणेश की पूजा करते हैं और फिर उनकी मूर्ति को समुद्र में विसर्जित कर देते हैं। समुद्र हर जगह फैला हुआ है। गणेश मूर्ति का विसर्जन समुद्र में करने से गणेश भगवान का आशीर्वाद पूरे विश्व में फैलता है इसलिए बड़े भक्ति भाव से गणेशजी का विसर्जन समुद्र में ही किया जाता है।

यहां न केवल भगवान गणेश बल्कि श्रीकृष्ण और शिवजी के भक्तों की भी कमी नहीं है। यहां हिन्दू धर्म के और भी कई देवी-देवताओं की पूजा होती है।

यहां के लोगों का कहना है कि हर किसी का भगवान में विश्वास होना चाहिए। वो हमारी सभी मुश्किलों को दूर कर सकते हैं।

आपको बता दें कि केवल अफ्रीका में ही नहीं बल्कि यूरोप के शहर हॉलैंड में भी गणपति महोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। वैसे, अन्य देशों में भी गणपतिजी का जन्मोत्सव मनाया जाता है।

गणेशोत्सव की शुरूआत:-

गणेशोत्सव के इतिहास पर गौर करें तो कहा जाता है है कि पेशवाओं ने गणेशोत्सव को बढ़ावा दिया था। शिवाजी महाराज की मां जीजाबाई ने पुणे में कस्बा गणपति नाम से प्रसिद्ध गणपति की स्थापना की थी।

लेकिन सन 1893 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने सार्वजनिक तौर पर गणेशोत्सव की शुरूआत की। तिलक के इस प्रयास से पहले गणेश पूजा सिर्फ परिवार तक ही सीमित थी। तिलक उस समय एक युवा क्रांतिकारी और गर्म दल के नेता के रूप में जाने जाते थे। वे एक बहुत ही स्पष्ट वक्ता और प्रभावी ढंग से भाषण देने में माहिर थे। तिलक ‘पूर्ण स्वराज’ की मांग को लेकर संघर्ष कर रहे थे और वे अपनी बात को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाना चाहते थे। इसके लिए उन्हें एक ऐसा सार्वजानिक मंच चाहिए था, जहां से उनके विचार अधिकांश लोगों तक पहुंच सकें।

तिलक ने गणेशोत्सव को सार्वजनिक महोत्सव का रूप देते समय उसे महज धार्मिक कर्मकांड तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि आजादी की लड़ाई, छुआछूत दूर करने, समाज को संगठित करने के साथ ही उसे एक आंदोलन का स्वरूप दिया, जिसका ब्रिटिश साम्राज्य की नींव को हिलाने में महत्वपूर्ण योगदान रहा।

तिलक द्वारा सार्वजनिक तौर पर गणेशोत्सव की शुरूआत करने से दो फायदे हुए; एक तो वह अपने विचारों को जन-जन तक पहुंचा पाए और दूसरा यह कि इस उत्सव ने आम जनता को भी स्वराज के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा दी और उन्हें जोश से भर दिया।

इस तरह से हुई गणेशोत्सव की शुरूआत।

बहरहाल आज़ादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले इस गणेशोत्सव को आज भी सभी भारतीय बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं।

इसलिए यह जरूरी है कि देशभर में आज भी उल्लास के साथ मनाये जाने वाले गणेशोत्सव में फ़िल्मी व पॉप आदि गाने नहीं बजाने चाहिए और ना ही दारू आदि का नशा करना चाहिए। यह मात्र तड़क-भड़क और गीत-संगीत के खर्चीले आयोजनों के बीच मनुष्यता व सामाजिक दायित्व जगाने की अपनी मूल प्रेरणा को ना खोये- इसका ध्यान रखना चाहिए।

गणेश महोत्सव के दिनों में ढोल, नगाड़े, बाजे,शहनाई, आदि भारतीय संस्कृति के अनुरूप संगीत,भजन, कीर्तन के आयोजन धूम धड़ाके से होना चाहिए।

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