न्यायपालिका पर उठे सवाल Asaram Bapu vs Salman Khan केस
न्याय का विश्वास अब डगमगाने लगा है, भारत में न्यायपालिका (judiciary) को लोकतंत्र की रीढ़ कहा जाता है। Asaram Bapu vs Salman Khan केस में कोर्ट और कानून पर जनता का विश्वास टूट रहा है।
लेकिन हाल के सालों में न्यायपालिका की निष्पक्षता पर सवाल उठने लगे हैं। खासकर कुछ चर्चित केस जैसे Asaram Bapu केस में कोर्ट के नाटकीय फैसलों ने देशभर में विवाद खड़ा कर दिया है।
सलमान खान को राहत, दूसरों को सख्ती?
काला हिरण शिकार मामला
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सलमान खान को कोर्ट ने दोषी करार दिया।
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लेकिन सिर्फ दो दिन में जमानत भी मिल गई।
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अगर उन्हें जेल भेजना था तो जमानत क्यों?
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और अगर जमानत देना था तो दोषी करार क्यों दिया?
हिट एंड रन मामला
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पहले सेशन कोर्ट ने सलमान खान को दोषी ठहराया।
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फिर मुंबई हाईकोर्ट ने तुरंत जमानत दी।
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बाद में हाईकोर्ट ने उन्हें पूरी तरह निर्दोष घोषित कर दिया।
यह सारे घटनाक्रम दर्शाते हैं कि कोर्ट का रवैया आम जनता और प्रभावशाली लोगों के लिए एक समान नहीं है।
Asaram Bapu को सजा, पर सह आरोपी बरी?
82 वर्षीय आसाराम बापू को छेड़छाड़ जैसे मामले में आजीवन कारावास की सजा दी गई।
वहीं, उसी केस में मुख्य सह आरोपी शिवा को कोर्ट ने निर्दोष बरी कर दिया।
अगर शिवा दोषी नहीं था, तो क्या आसाराम बापू अकेले अपराधी हो सकते हैं?
यह निर्णय पूरी तरह से विरोधाभासी और संदेहास्पद प्रतीत होता है। क्या इस निर्णय के पीछे कोई राजनीतिक दबाव या मीडिया ट्रायल का असर था?
क्या कोर्ट अब निष्पक्ष नहीं रही?
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2G स्पेक्ट्रम घोटाले में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि घोटाला हुआ है।
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लेकिन विशेष अदालत ने सभी प्रमुख अभियुक्तों जैसे ए. राजा और कनिमोझी को निर्दोष बरी कर दिया।
ये सब कैसे संभव हुआ?
किस दबाव में कोर्ट ने फैसला सुनाया?
आरुषि मर्डर केस और मीडिया ट्रायल
आरुषि मर्डर केस में बिना ठोस सबूत के सीबीआई कोर्ट ने माता-पिता को उम्रकैद की सजा सुना दी।
बाद में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उन्हें निर्दोष बताया।
क्या अब कोर्ट सिर्फ मीडिया ट्रायल के आधार पर फैसला कर रही है?
न्यायपालिका पर Asaram Bapu vs Salman Khan केस में क्यों उठ रहे हैं सवाल?
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क्या सलमान खान जैसे बड़े सितारों को कोर्ट से विशेष राहत मिलती है?
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क्या आसाराम बापू जैसे संतों को निशाना बनाकर राजनीति की जाती है?
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क्या हमारे जज अब राजनीतिक सत्ता या धनबल के दबाव में निर्णय ले रहे हैं?
Asaram Bapu केस में अगर ऐसा है तो यह देश की सबसे बड़ी संवैधानिक संस्था – न्यायपालिका (judiciary) की स्वतंत्रता पर सीधा प्रहार है।
Asaram Bapu vs Salman Khan अब जनता किस पर भरोसा करे?
अगर कोर्ट और जज निष्पक्ष नहीं रहेंगे, तो फिर आम जनता अपने लिए न्याय कहां मांगेगी?
ऐसे दोहरे मापदंडों से अराजकता, भ्रम और अविश्वास ही फैलेगा।
अब वक्त आ गया है कि देश के प्रबुद्ध नागरिक और बुद्धिजीवी इस विषय पर गहराई से मंथन करें और आवाज उठाएं।
“जब न्याय ही संदिग्ध हो जाए, तो अन्याय की पहचान कठिन हो जाती है।”
Aaj Pujya Bapuji ka live satsang sune