अरबोंपति की बेटी देवांशी ने 9 साल की उम्र में लिया संन्यास……

22 January 2023

azaadbharat.org

भारत की कुछ ना समझ लड़कियां पाश्चात कल्चर को अपनाकर डिस्को,डांस करना,क्लबो में जाना, दारू, सिगरेट पीना, अश्लीलता फैलना जैसे अनुचित कार्य करती है, लेकिन भारतीय संस्कृति के अनुसरण करने वाली भारत की बहादुर बेटियां है जो अरबों रुपए की लालच छोड़कर संन्यास लेती है।

गुजरात के सूरत में 9 साल की देवांशी ने संन्यास ग्रहण किया है। वह हीरा कारोबारी संघवी मोहन भाई की पोती और धनेश-अमी बेन की बेटी हैं। उन्होंने जैनाचार्य कीर्तियशसूरीश्वर महाराज से दीक्षा प्राप्त की है। देवांशी का दीक्षा महोत्सव शनिवार (14 जनवरी 2023) को शुरू हुआ था। बुधवार (18 जनवरी 2023) को पूरा हुआ।

देवांशी के संन्यास लेने से पहले दीक्षा महोत्सव के अवसर पर सूरत में वर्षीदान यात्रा निकाली गई थी। इसमें 4 हाथी, 11 ऊँट और 20 घोड़ों को शामिल किया गया था। यात्रा में हजारों की संख्या में लोग शामिल थे। देवांशी के दीक्षा ग्रहण करने कार्यक्रम में करीब 35 हजार लोग शामिल हुए।

देवांशी के घरवालों का कहना है कि बचपन से ही उनकी रुचि धार्मिक क्रियाओं में थी। उन्होंने आज तक कभी टीवी नहीं देखा है। यही नहीं, वह इस छोटी से उम्र में ही 357 दीक्षा प्राप्त कर चुकी हैं। साथ ही करीब 500 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर विहार और जैन समुदाय से जुड़े रीति-रिवाजों को समझा है।

देवांशी 5 भाषाओं की जानकार हैं। देवांशी के घरवाले कहते हैं कि उन्होंने हमेशा ही जैन समुदाय से जुड़े कार्य ही किए हैं। कभी भी ऐसा कोई काम नहीं किया जो जैन समुदाय में प्रतिबंधित हो। यहाँ तक कि देवांशी ने कभी भी अक्षर लिखे हुए कपड़े तक नहीं पहने हैं। इसके अलावा, देवांशी ने धार्मिक शिक्षा में आयोजित क्विज में गोल्ड मेडल हासिल किया था। वह संगीत, स्केटिंग, मेंटल मैथ्स और भरतनाट्यम में भी एक्सपर्ट हैं। देवांशी को जैन समुदाय से जुड़े वैराग्य शतक और तत्वार्थ के अध्याय जैसे महाग्रंथ कंठस्थ हैं।

देवांशी की माँ अमी बेन धनेश भाई संघवी कहतीं हैं कि उनकी बेटी जब महज 25 दिन की थी, तब से उसने नवकारसी का पच्चखाण लेना किया। देवांशी जब 4 महीने की हुई तब से ही शाम के बाद भोजन करना बंद कर दिया। जब वह 8 महीने की थी तो रोज त्रिकाल पूजन करती थी। 1 साल की हुई तब से प्रतिदिन नवकार मंत्र का जाप कर रही है। 2 साल और 1 माह की माह से गुरुओं से धार्मिक शिक्षा लेनी की शुरुआत की। देवांशी के जीवन का सबसे बड़ा बदलाव तब आया जब उसने 4 साल और 3 माह की उम्र से गुरुओं के साथ रहना शुरू किया।

बता दें कि देवांशी की दीक्षा से पहले उनके परिवार ने यूरोपीय देश बेल्जियम में भी सूरत की ही तरह जुलूस निकाला था। देवांशी का परिवार संघवी एंड संस कंपनी चलाता है। यह कंपनी हीरा का कारोबार करने वाली सबसे पुरानी कंपनियों में से एक है। संघवी एंड संस हर साल करोड़ों का कारोबार करती है। देवांशी के पिता धनेश संघवी अपने पिता मोहन संघवी के इकलौते बेटे हैं। देवांशी अपने परिवार की बड़ी बेटी हैं। उनकी छोटी बहन काव्या अभी 5 साल की है।

अरबों की संपत्ति छोड़कर छोटी उम्र में दीक्षा लेकर संन्यास लेना कोई विरला ही कर सकता है, धार्मिक जगत के लोग उनकी भूरी भूरी प्रशंसा कर रहे हैं।

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