09 जनवरी 2022
azaadbharat.org
भारत की स्वतंत्रता के गौरवशाली इतिहास के सही पन्ने वो नहीं जो हमें पढ़ाये या कहा जाय तो रटाये जा रहे हैं। स्वतंत्रता के वो पन्ने भी हैं जिन्हें हम जानते भी नहीं हैं। बहुत कम लोगों को पता होगा राजा नाहर सिंह जी के इतिहास के बारे में जिनका आज बलिदान दिवस है!
हरियाणा के उस राजा का बलिदान दिवस है जिसने अंग्रेजों के खून से बल्लभगढ के तालाब का रंग लाल कर दिया था। महाराजा नाहर सिंह के नाम से अंग्रेज थर थर कांपते थे। उन्होंने अंग्रेजों के अपनी रियासत में आने पर भी प्रतिबंध का फरमान जारी कर दिया था जो उस समय बड़े बड़े राजाओं के भी बस की बात नहीं थी।
जिसके कारण दिल्ली ने 134 दिन तक आजादी की सबेर देखी थी।
जिसने अंग्रेजों को हराकर अपने आस पास के क्षेत्र को आजाद कर लिया था। वह राजा जिसने शिव मंदिर में अंग्रेजों को देश से बाहर करने की कसम खाई थी।
वह राजा कोई और नहीं बल्कि हरियाणा के बल्लभगढ जाट रियासत के राजा नाहर सिंह थे जिनके नाम पर कुछ दिन पहले ही बल्लभगढ में राजा नाहर सिंह मेट्रो स्टेशन का उद्घाटन किया गया था। इससे पहले उनके नाम पर एक इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम बना है, शहर में एक द्वार है और बस स्टैंड का नाम भी उन्हींके नाम से है।
बल्लभगढ में उनका महल, किला, हवेलियां व अन्य चीजें आज भी शान से खड़ी उनकी वीरता की गवाही दे रही हैं।
राजा नाहर सिंह ने 1857 की क्रांति में सबसे महत्वपूर्ण योगदान दिया था। उसी वीरता के बल पर आज उन्हें शेर-ए-हरियाणा, आयरन गेट ऑफ दिल्ली और 1857 के सिरमौर जैसे अलंकारों से सुसज्जित किया जाता है।
राजा नाहर सिंह ने 1857 की क्रांति को जगाने के लिए देशभर के राजाओं की बैठक (मीटिंग) में हिस्सा लिया और बहुत से राजाओं को क्रांति में शामिल होने के लिए उकसाया।
जब 1857 की क्रांति के लिए नेतृत्व की मांग की जाने लगी तो सबसे आगे उन्हींका नाम था परन्तु मुस्लिम क्रांतिकारियों को इस मुहिम में जोड़ने के लिए बहादुर शाह जफर का नाम आगे किया गया। हालांकि जफर और राजा नाहर सिंह में बहुत कम बनती थी उसके बावजूद भी उन्होंने देश के लिए अपने मतभेद भुलाकर क्रांतिकारियों के निर्णय का सम्मान किया।
वे देश के एकमात्र ऐसे राजा थे जिन्होंने रियासत सुरक्षित होने के बावजूद भी 1857 की क्रांति में भाग लिया था।
मीटिंग में 1857 की क्रांति का दिनांक 10 मई फिक्स कर दिया गया और उनको दिल्ली का कार्यभार सौंपा गया।
परन्तु (8 अप्रैल 1857 को) क्रांतिकारी सैनिक मंगल पांडे की फांसी के साथ ही क्रांति समय से पहले भड़क उठी।
उस समय राजा साहब की बेटी का विवाह तय हो चुका था लेकिन उन्होंने इसकी जरा भी परवाह न करते हुए इस भव्य कार्यक्रम को रद्द कर दिया और राजकुमार की तलवार से ही अपनी बेटी का विवाह करवाकर क्रांति में कूद पड़े।
उनकी रियासत क्रांतिकारियों के लिए सबसे बड़ी सुरक्षित स्थली थी जहां उनके लिए दरवाजे खुले थे क्योंकि उन्होंने अपने राज्य में अंग्रेजों के बिना अनुमति प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया था जो उस समय का बहुत ही साहसिक कदम था।
उन्होंने अपने राज्य में ऐलान कर दिया था कि कोई भी अंग्रेज विरोधी क्रांतिकारी राज्य में आये तो उसका खुले दिल से स्वागत किया जाए, उसकी हर सम्भव सहायता की जाए, उनको खाने का सामान व अन्य सामान बाजार से बिना पैसे दिया जाए, उसका भुगतान राज्य के खजाने से कर दिया जाएगा।
मंगल पाँडे की रेजिमेंट के क्रांतिकारी भी उनके राज्य में घुस आए थे तो उन्होंने शरण दी व उनमें से ज्यादातर ब्राह्मण थे इसलिए उन्होंने हर गांव में उनके एक-एक, दो-दो परिवार बसा दिए ताकि अंग्रेज उनपर एक साथ हमला न कर सकें और वे अपनी जीविका भी कमा सकें। आज भी उन ब्राह्मणों के वंशज उन गांवों में बसे हुए हैं।
उन्होंने पलवल, फरीदाबाद, गुड़गांव के अंग्रेज अधिकृत क्षेत्रों पर हमला करके अंग्रेजों को मारकर भगा दिया।
उन्होंने क्रांतिकारियों के साथ मिलकर दिल्ली को आजाद करवा लिया व जफर को दिल्ली का कार्यभार सम्भालवा दिया।
राया मथुरा के क्रान्तिकारी देवी सिंह को उन्होंने राजा की पदवी दिलवाई। जगह जगह के क्रांतिकारियों को मदद दी।
राजा के समय दिल्ली पर अंग्रेजों ने हमले किये परन्तु उन्होंने उन्हें 134 दिन तक दिल्ली में नहीं घुसने दिया। अंग्रेज उन्हें आयरन वॉल ऑफ दिल्ली के नाम से पुकारने लगे थे और समझ गए थे कि उनके होते दिल्ली पर कब्जा करना असम्भव है। अंत में जफर के एक साथी इलाहिबख्श की गद्दारी से अंग्रेजों ने जफर को बंदी बना लिया, बल्लभगढ पर आक्रमण कर दिया जिसके कारण राजा को बल्लभगढ पहुंचना पड़ा।
उन्होंने वहां पहुंचकर अंग्रेजों से इतना भयंकर युद्ध किया कि पास में स्थित एक तालाब का रंग अंग्रेजों के खून से लाल हो गया था। अंग्रेजों को मारकर हरा दिया। मगर उनकी अनुपस्थिति में अंग्रेजों ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया।
अंग्रेजों ने राजा को बंदी बनाने के लिए छल का सहारा लिया। उन्होंने जफर के खास इलाहिबख्श व अन्य को भेजकर कहलवाया कि जफर ने उन्हें बुलाया है और वे अंग्रेजों से सन्धि करना चाहते हैं। जाट राजा छल को समझ न पाये। वे अपने कुछ 500 सैनिकों के साथ दिल्ली पहुंचे। वहां अंग्रेजों ने रात्रि के अंधेरे में रास्ते में उनपर अचानक आक्रमण कर दिया सभी सैनिक वीरता से लड़ते हुए शहीद हो गए। राजा को बंदी बना लिया गया। उनके कुछ नजदीकी अंग्रेज अधिकारियों ने उन्हें समझाने की कोशिश की कि वे अंग्रेजों के आगे झुक जाएं व उनसे दोस्ती कर लें तो उन्हें उनका राज वापिस कर दिया जाएगा और उन्हें सजा नहीं होगी।
लेकिन राजा ने साफ मना कर दिया कि वे अपने देश के दुश्मनों के आगे नहीं झुकेंगे। उन्हें राज व अपने जीवन की तनिक भी परवाह नहीं, एक नाहर सिंह मरेगा तो माँ भारती को आजाद करवाने वाले लाखों नाहर सिंह पैदा हो जाएंगे।
अंत में 9 जनवरी 1858 को राजा व उनके सेनापति भूरा सिंह वाल्मीकि को दिल्ली के चांदनी चौक पर सरेआम फांसी दे दी गई। जनता के लिए उनके अंतिम शब्द थे कि क्रांति की ये चिंगारी बुझने मत देना।
महान क्रान्तिकारी महाराजा नाहर सिंह अपनी वीरता और देशभक्ति का किस्सा हमारे बीच छोड़ गए। उनके नाम पर हर साल मेला भी लगता है। भारत में लुटेरे, आक्रमणकारी मुगलों और अंग्रेजों का इतिहास पढ़ाया जाता है पर ऐसे सच्चे वीर लोगों का नहीं पढ़ाया जाता है।
माँ भारती के वीर सपूत शहीद राजा नाहर सिंह पर पूरे भारतवर्ष को हमेशा गर्व रहेगा। राजा नाहर सिंह जी के बलिदान दिवस पर उन्हें कोटि कोटि प्रणाम।
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