Astronomy: प्राचीन भारतीय खगोलशास्त्र और पंचांग निर्माण
भारत में Astronomy का विकास वेदों से प्रारंभ होकर मध्यकाल तक जारी रहा।
इसने पंचांग निर्माण, ग्रहों की गति, ग्रहण और कालचक्र जैसे विषयों में गहन गणनाएँ और वैज्ञानिक विधियाँ प्रदान कीं।
Astronomy: प्राचीन भारतीय प्रमुख ग्रंथ
- वैदांग ज्योतिष – वेदों से जुड़ा खगोलशास्त्र और पंचांग विज्ञान।
- आर्यभट्टीयम् (499 ई.) – ग्रहों की गति, पृथ्वी के घूर्णन और ग्रहण सिद्धांत।
- पाराशर हरोदय – प्राचीन ज्योतिष और पंचांग निर्माण विधि।
- सूर्य सिद्धांत और चन्द्र सिद्धांत – सूर्य और चंद्रमा की गति और कैलेंडर के नियम।
- पंचसिद्धांतिका (वराहमिहिर) – खगोलीय सिद्धांतों का संग्रह।
- सिद्धांत शिरोमणि (भास्कराचार्य) – गणितीय और खगोलीय सिद्धांत।
पंचांग निर्माण की प्रक्रिया
पंचांग, भारतीय जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसके पाँच अंग हैं:
- वार: सप्ताह के दिन
- तिथि: चंद्रमा के चरण
- नक्षत्र: 27-28 तारामंडल
- करण: तिथि के आधे हिस्से की अवधि
- योग: सूर्य और चंद्रमा की स्थिति का योग
सटीक गणनाओं के लिए सूर्य-चंद्र गति, नक्षत्र और ग्रहण चक्र का अध्ययन किया जाता था।
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वैज्ञानिक गणना और गणितीय सिद्धांत
- त्रिकोणमिति का विकास – साइन, कॉसाइन अनुपात
- कालगणना – वर्ष, मास और दिवस की गणना
- ग्रहण चक्र – सारोस और मेटोनिक चक्र का अध्ययन
- गणितीय मॉडल – ग्रहों की गति के सूत्र और समीकरण
- पंचांग सूत्र – संक्रांति, अमावस्या और पूर्णिमा की गणना
Astronomy vs Antikythera Mechanism
- एंटीकाइथेरा यंत्र – यांत्रिक गियर्स द्वारा गणना।
- भारतीय खगोलशास्त्र – गणितीय और ज्यामितीय सूत्रों द्वारा गणना।
- दोनों ही प्रणालियाँ ग्रहों की गति और समय निर्धारण में अद्वितीय।
निष्कर्ष
प्राचीन भारतीय खगोलशास्त्र ने गणित और ज्योतिषीय सिद्धांतों के आधार पर खगोलीय पिंडों की गति और समय गणना में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
पंचांग निर्माण ने विज्ञान और जीवन के समन्वय को सशक्त बनाया।