12 August 2022
वर्तमान न्याय प्रणाली हमें अंग्रेजों से विरासत में मिली है। गांधीजी ने कहा था, ‘यह प्रणाली अंग्रेजों ने नेटिव इंडियंस ( मूलनिवासी भारतीयों ) को न्याय देने के लिए प्रस्थापित नहीं की थी, बल्कि अपना साम्राज्य मजबूत करने के लिए इस न्याय प्रणाली का गठन किया गया था। इस न्याय प्रणाली में ‘स्वदेशी’ कुछ भी नहीं है। इसकी भाषा, पोशाक तथा चिंतन सब कुछ विदेशी है। अतीत में भारत में जो न्याय दिलाने वाली संस्थाएँ विद्यमान थीं, उन्हें पूर्णत: समाप्त कर एक केंद्रीभूत तथा सर्वव्यापी न्याय व्यवस्था अंग्रेजों ने स्थापित की। गांधीजी ने यह भी कहा था, ‘जिसकी थैली बड़ी होगी, उसी को यह न्याय प्रणाली सुहाती है।’
इस कानून न्यायव्यवस्था के कारण और न्यायपालिका में भ्रष्टाचार इतना व्याप्त है कि आम आदमी और निर्दोष साधु-संतों को न्याय ही नही मिल पाता है।
सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों पर नाराजगी जताते हुए सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा कि उन्हें इस संस्था (सुप्रीम कोर्ट) से कोई उम्मीद नहीं बची है।
उन्होंने आईपीसी की धारा 120 B और इसकी कमियों के बारे में भी बताया। उन्होंने कहा कि जब भी कोई किसी निर्दोष व्यक्ति को फंसाना चाहता है तो उसके खिलाफ धारा 120 B (आपराधिक साजिश के लिए) के तहत मामला बनता है। उन्होंने कहा कि ऐसे आरोपी व्यक्तियों को तब तक जमानत नहीं दी जाती जब तक कि वे अपनी बेगुनाही साबित नहीं कर देते। उन्होंने कहा कि अगर इस तरह के कानून को सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा है तो ऐसी अदालत से कुछ भी उम्मीद नहीं की जा सकती। उन्होंने आगे कहा कि- “आप उस प्रणाली पर भरोसा नहीं कर सकते जहां इस तरह के कानूनों को बरकरार रखा जा रहा है।
आपको बता दे कि राष्ट्र, समाज और संस्कृति की सेवा करने के लिये अपना सर्वस्व अर्पण करने वाले हिन्दू संत आशारामजी बापू के खिलाफ क्या है ? वह 2013 से जेल के अंदर क्यों है ? चूंकि उन पर षडयंत्र के तहत आईपीसी की धारा 120 B के तहत आरोप लगाया गया है, इसलिए उन्हें जमानत नहीं दी जा रही है।
कपिल सिब्बल ने आगे बताया कि इस देश में आपको पहले एफआईआर पर गिरफ्तार किया जाता है और फिर जांच शुरू होती है। यह एक औपनिवेशिक प्रथा है। कानून ऐसा होना चाहिए कि गिरफ्तारी से पहले जांच हो। आपराधिक कानून को बदलने तक ऐसे कानून का कोई मतलब नहीं है। ..मैं ऐसी अदालत के बारे में बात नहीं करना चाहता जहां मैंने 50 साल तक प्रैक्टिस की है लेकिन समय आ गया है। अगर हम ऐसा नहीं करेंगे तो कौन करेगा। वास्तविकता यह है कि कोई भी संवेदनशील मामला जो हम जानते हैं उसमें समस्या है कि मुट्ठी भर न्यायाधीशों के सामने रखा जाता है।”
केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू कहा है कि न्याय में देरी न्याय से वंचित है !
आपको बता दे कि पूर्व मुख्य न्यायाधीश दीपक गुप्ता ने अपनी नौकरी के अंतिम दिन विदाई भाषण में कहा था कि देश का कानून और न्याय तंत्र चंद अमीरों और ताकतवर लोगों की मुट्ठी में कैद में है।
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायधीश काटजू ने कहा था कि भारतीय न्याय प्रणाली में 50% जज भ्रष्ट है।
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश संतोष हेगड़े भी सवाल उठा चुके है कि ‘धनी और प्रभावशाली’ तुरंत जमानत हासिल कर सकते हैं। गरीबों के लिए कोई न्याय की व्यवस्था नही है।
कर्नाटक हाईकोर्ट के पूर्व वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस के एल मंजूनाथ ने कहा कि यहाँ सत्यनिष्ठा और ईमानदारी के लिए कोई स्थान नहीं है और इस देश में न्याय के लिए कोई जगह नहीं।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी कहा था कि देश में निर्णय देने में विलंब होना चिंता की बात है।समाज में सबसे गरीब और सबसे वंचित लोग न्याय में देरी के पीड़ितों में शामिल हैं। उन्होंने कहा केस को जल्द निपटाने के लिए एक तंत्र बनाने की जरूरत हैं।
देश में न्याय इसलिए देरी से मिलता है कि अंग्रेजो द्वारा बनाये गए कुछ कानून है, देश में जजों की कमी, वकीलों द्वारा पैसे ऐठने के कारण केस लंबा खीचना, षडयंत्र के तहत बदला लेने या, पैसा नोचने की नीयत से झूठे केस दर्ज करना, और देश के जजों में रिश्वतखोरी के कारण भ्रष्टाचार इतना बढ़ गया है कि अपराधियों को सजा और निर्दोषों को न्याय मिलना ही मुश्किल हो गया है। कई जज तो रिश्वत लेते पकड़े भी गये है।
अभी समय आ गया है कि इन सभी पर सुधार किया जाए नही तो एक के बाद एक निर्दोष जूठे केस में जेल जाते जाएंगे।
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